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उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: गरीब बुंदेलखंड में 'लग्जरी गाड़ियों' की भरमार

देश और दुनिया में बुंदेलखंड की पहचान गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी बन गई है, इसे राजनीतिक दल और सरकारें भी स्वीकारती हैं, मगर यहां की सड़कों पर दौड़ती लग्जरी गाड़ियां बुंदेलखंड की गरीब छवि पर भारी पड़ती नजर आती हैं।

Updated on: 14 Feb 2017, 10:44 PM

नई दिल्ली:

देश और दुनिया में बुंदेलखंड की पहचान गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी बन गई है, इसे राजनीतिक दल और सरकारें भी स्वीकारती हैं, मगर यहां की सड़कों पर दौड़ती लग्जरी गाड़ियां बुंदेलखंड की गरीब छवि पर भारी पड़ती नजर आती हैं।

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 13 जिलों में फैला हुआ है, उत्तर प्रदेश के हिस्से के बुंदेलखड में झांसी, ललितपुर, जालौन, बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट आता है। यहां विधानसभा की कुल 19 सीटें हैं और मतदान 23 फरवरी हो होना है। चुनावी शोर तो नजर नहीं आता, वहीं गाड़ियों पर झंडे भी कम ही नजर आते हैं, अगर झंडे वाली गाड़ियां दिखती भी हैं तो सिर्फ उम्मीदवार के काफिले के साथ।

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चुनाव के बीच सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां एक बात का तो एहसास करा जाती हैं कि बुंदेलखंड की चर्चा भले गरीबी को लेकर होती हो, मगर यहां धन्ना सेठों की भी कमी नहीं है। स्पोर्ट्स यूटीलिटी व्हीकल (एसयूवी) में शुमार सफारी, स्कार्पियो, फॉरच्यूनर, इंडीवर जैसी गाड़ी हर पल सामने से गुजरती नजर आ जाती है।

झांसी के वाहन विक्रेता और जेएमके मोटर्स के प्रमुख राकेश बघेल भी आईएएनएस से चर्चा करते हुए स्वीकारते हैं कि बुंदेलखंड ग्रामीण इलाका है, लिहाजा लोगों की पहली पसंद एसयूवी गाड़ियां हैं। वे बताते हैं कि उनके यहां से हर माह लगभग 15 सफारी और सात से आठ फॉरच्यूनर गाड़ियां बिक जाती हैं।

बघेल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि इस क्षेत्र में सफारी हर दूसरे रोज और फॉरच्यूनर हर चौथे रोज एक बिकती है। साल भर में डेढ़ सौ से ज्यादा सफारी व सौ के लगभग फॉरच्यूनर बिकती हैं। इसके अलावा अन्य गाड़ियों की बिक्री का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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बुंदेलखंड के हाल पर गौर करें वह चाहे मध्यप्रदेश का हिस्सा हो या उत्तर प्रदेश का। यहां उद्योग है नहीं, पेट भरने का सबसे बड़ा साधन खेती और मजदूरी है। सूखा यहां की नियति बन चुकी है, लिहाजा खेती अच्छी होती नहीं, जिसके चलते दूसरे वर्ग को मजदूरी नहीं मिलती। इस स्थिति में लाखों लोग पलायन कर जाते हैं।

युवा कारोबारी ललित मिश्रा कहते हैं कि इस इलाके में असमानता बढ़ रही है, यही कारण है कि एक तरफ लोग रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं तो दूसरी ओर उन लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो बड़ी-बड़ी गाड़ियों पर चलते हैं। यहां दौड़ती गाड़ियां यह आभास करा सकती हैं कि यहां गरीबी नहीं है, मगर हकीकत देखना है तो दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में जाकर देखें।

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चुनाव के दौरान बुंदेलखंड के किसी भी विधानसभा क्षेत्र में पहुंचने पर उम्मीदवार किसी कार या जीप में मिल जाए तो इस बड़ी बात मानिए, जहां भी जाइए हर तरफ बड़ी गाड़ी में उम्मीदवार का मिलना आम है। ऐसे में कौन मानेगा कि बुंदेलखंड गरीब है!

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