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सेंदरा पर्व : पारंपरिक हथियारों से जानवरों का शिकार करते हैं आदिवासी, देते हैं युद्ध का दर्जा

अब झारखंड के एक अनोखी परंपरा के बारे में आपको बताएंगे, जिसे सेंदरा पर्व के नाम जाना जाता है. ये पर्व आदिवासी समुदाय में खास महत्व रखता है.

Updated on: 04 May 2023, 04:51 PM

highlights

  • सेंदरा पर्व... एक अनोखी परंपरा
  • जानवरों का शिकार करते हैं आदिवासी
  • पारंपरिक हथियारों से करते हैं शिकार
  • सेंदरा को युद्ध का दर्जा देते हैं आदिवासी

Saraikela:

अब झारखंड के एक अनोखी परंपरा के बारे में आपको बताएंगे, जिसे सेंदरा पर्व के नाम जाना जाता है. ये पर्व आदिवासी समुदाय में खास महत्व रखता है. सेंदरा वीर हाथों में परंपरागत हथियार, फंदा और बंदूक थामे रहते हैं और जो कदम से कमद मिलाकर जंगलों में शिकार करने जाते हैं. इस दौरान जानवरों का शिकार कोई मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि पर्व को मनाने के लिए किया जाता है. झारखंड की आदिवासी संस्कृति बेहद अनोखी है. यहां की कुछ परंपराएं आपका दिल जीत लेती हैं, लेकिन कुछ परंपराएं हैरान कर देती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है सेंदरा. वो पर्व जिसे आदिवासी समुदाय युद्ध का दर्जा देते हैं, जिसमें जानवरों का शिकार कर पर्व मनाया जाता है.

जानवरों का शिकार करते हैं आदिवासी

सरायकेला जिले के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के दलमा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में दो दिनों से चल रहे सेंदरा पर्व को देखते हुए सेंदरा वीरों ने हिरणों और सुअरों का शिकार शुरू कर दिया है. सेंक्चुरी क्षेत्र में आदिवासी डेरा डाले हैं और मौका देखते ही जानवरों का शिकार करते हैं. सेंदरा वीर उन आदिवासियों को कहते हैं जो इस पर्व के दौरान जानवरों के शिकार के लिए निकलते हैं. आदिवासी समुदाय में इस परंपरा की अहमियत बहुत है. क्योंकि ये परंपरागत प्राचीन काल से चलती आ रही है और आज भी आदिवासी समुदाय पूर्वजों की अपनी इस धरोहर को आगे बढ़ाते हैं.

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पारंपरिक हथियारों से करते हैं शिकार

सेंदरा पर्व को लेकर चांडिल वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी के अधिकारी अलर्ट मोड पर हैं. सेंक्चुरी के अलग-अलग जगहों पर पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है. अधिकारी भी लगातार जंगली इलाकों में नजर बनाए हुए हैं. वन विभाग की मानें तो शिकरियों ने जंगल में प्रवेश तो जरूर किया है, लेकिन अभी तक शिकार नहीं हुआ है. अधिकारियों ने साथ ही कहा कि अब इस पर्व को लेकर नई पीढ़ी में रुचि नहीं है. साथ ही लोगों को भी लगातार जागरूक किया जा रहा है.

सेंदरा को युद्ध का दर्जा देते हैं आदिवासी

आपको बता दें कि आदिवासी समाज हर साल सेंदरा पर्व मनाता है. इस मौके पर आदिवासी वनदेवी की पूजा करते हैं. पुराने समय में खूंखार जानवरों का पर्व के दौरान शिकार किया जाता था. आदिवासी समुदाय शिकार के लिए खुद के बनाए हथियारों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि पर्व को देखते हुए इस बार वन विभाग पहले से अलर्ट है.

रिपोर्ट : वीरेंद्र मंडल