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झारखंड में OBC आरक्षण पर आर-पार, राज्यपाल के फैसले पर सियासत जोरदार

झारखंड में अब OBC आरक्षण का मुद्दा सियासी तपिश को बढ़ाने लगा है. प्रदेश में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग वाले विधेयक को राज्यपाल की ओर से लौटाने के बाद से ही मसले पर सियासत तेज हो गई है.

Updated on: 24 Apr 2023, 03:47 PM

highlights

  • OBC आरक्षण पर आर-पार
  • आंदोलन से आरक्षण के लिए हुंकार
  • पक्ष-विपक्ष में वार-पलटवार
  • राज्यपाल के फैसले पर सियासत जोरदार

Dumka:

झारखंड में अब OBC आरक्षण का मुद्दा सियासी तपिश को बढ़ाने लगा है. प्रदेश में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग वाले विधेयक को राज्यपाल की ओर से लौटाने के बाद से ही मसले पर सियासत तेज हो गई है. इस बीच एक वर्ग ऐसा भी है जो सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है. दरअसल ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर संथाल परगना ओबीसी संघर्ष मोर्चा ने बैठक कर आंदोलन का ऐलान करते हुए आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की और सरकार पर OBC वर्ग के साथ बेइमानी करने का आरोप लगाते हुए अपने हक के लिए हुंकार भरने की चेतावनी दी.

OBC आरक्षण पर आर-पार

दरअसल राज्य सरकार ने ओबीसी, एससी, एसटी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने से जुड़ा बिल विधानसभा में पारित किया था और मंजूरी के लिए इसे राज्यपाल के पास भेजा गया था. बिल में ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने, अनुसूचित जाति (एससी) को मिलने वाला आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने, अनुसूचित जनजाति (एसटी) का आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत करने का प्रावधान किया गया था.

आंदोलन से आरक्षण के लिए हुंकार

अगर ये बिल मंजूर हो जाता तो प्रदेश में कुल मिलाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 67 प्रतिशत हो जाता. ऐसे में राज्यपाल ने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देते हुए विधेयक लौटा दिया. दरअसल सुप्रीम कोर्ट की ओर से जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय है. लिहाजा राज्यपाल ने विधेयक को लौटाते हुए सरकार को बड़ा झटका दे दिया. जिसके बाद से ही सत्ता पक्ष बीजेपी पर हमलावर होने लगी है. प्रदेश के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र और बीजेपी की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मुद्दे पर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है. OBC के साथ अन्याय नहीं होने देंगे.

पक्ष-विपक्ष में वार-पलटवार

दरअसल, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से पहले पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने भी आरक्षण प्रतिशत को बढ़ाने वाले इस विधेयक को लौटा दिया था. ऐसे में दोबारा बिल का वापस होना प्रदेश सरकार के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है और अब इस मामले पर सियासत के साथ ही आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार होने लगी है. देखना ये होगा कि आरक्षण पर शुरू हुआ ये संग्राम कहां जाकर खत्म होता है.
 
रिपोर्ट : विकास कुमार