Hamari Sansad Sammelan मोदी लहर का सामना नहीं कर पाया विपक्ष, आड़े आ गईं निजी महत्वाकांक्षाएं
hamari-sansad-sammelan ममता दी ने साफ कर दिया कि अपने-अपने राज्य में तो कोई गठबंधन नहीं होगा, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को केंद्र में दोबारा नहीं आने देने के लिए एकजुट हैं.
highlights
- विपक्ष एनडीए सरकार के खिलाफ प्रभावी मुद्दे नहीं उठा सका.
- संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर कोई सहमति नहीं.
- इधर बीजेपी मोदी नाम के विश्वास को भुनाने में सफल रही.
नई दिल्ली.:
लोकसभा चुनाव से काफी पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को पदच्युत करने के लिए महागठबंधन का नारा दिया था. हालांकि यह कवायद शुरुआत से ही दिग्भ्रमित रही. ऐसे कई कारण रहे जिस कारण समग्र विपक्ष भारतीय जनता पार्टी या पीएम नरेंद्र मोदी के लिए सशक्त या सक्षम चुनौती नहीं पेश कर सका. दूसरे शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री पद नरेंद्र मोदी का विकल्प पेश करने में महागठबंधन नाकाम रहा.
गौरतलब है कि सीबीआई और राजीव कुमार प्रकरण से केंद्र और ममता सरकार सीधे तौर पर आमने-सामने आ गए थे. इसके बाद ममता बनर्जी के समर्थन में कांग्रेस, टीडीपी, आप, जदयू, राजद, नेशनल कांफ्रेस, राकपा, सपा, बसपा जैसे 21 दल कोलकाता में जुटे. यह अलग बात है कि उसके तुरंत बाद ही लोकसभा चुनाव घोषित हो गए. ममता दी ने साफ कर दिया कि अपने-अपने राज्य में तो कोई गठबंधन नहीं होगा, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को केंद्र में दोबारा नहीं आने देने के लिए एकजुट हैं.
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महागठबंधन की यह वह पहली दरार थी, जो बाद के दिनों में और भी चौड़ी होती गई. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और रालोद ने गठबंधन कर कांग्रेस को किनारे कर दिया, तो यही हाल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी हुआ. दिल्ली में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन के लिए लगभग रिरियाती रही. अरविंद केजरीवाल से लेकर शीला दीक्षित पीसी चाको अलग-अलग राग अलापते रहे. कभी हां कभी ना की तर्ज पर अंतिम समय तक लोगों में कांग्रेस, आप, सपा-बसपा को लेकर भ्रम रहा. जाहिर है इसका सीधा फायदा बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला.
विपक्ष के आधे-अधूरे मन से किए गए महागठबंधन के हश्र को बीजेपी के रणनीतिकारों ने भांप लिया. यही वजह है कि पीएम मोदी ने महागठबंधन को महामिलावट करार देना शुरू कर दिया. बार-बार महागठबंधन को महामिलावट कह-कह कर पीएम मोदी आम ने जनता में यह बात धर करा दी कि विपक्ष मोदी सरकार से डरा हुआ है. वह बगैर किसी दूरदृष्टि, ठोस योजना यहां तक कि संभावित प्रधानमंत्री के नाम के बगैर सिर्फ मोदी को सत्ता तक दोबारा पहुंचने से रोकने के लिए एकता की बात कर रहा है.
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हुआ भी लगभग ऐसा ही. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जब केरल या प. बंगाल में सभा करें तो तृणमूल कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैया न रखें. उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस के लिए दो सीटे छोड़ कर भी यही संदेश दिया कि उनकी मदद के बगैर कांग्रेस जीतने वाली नहीं. कह सकते हैं कि महागठबंधन लोकसभा चुनाव तक आते-आते अपने ही विरोधाभास के कारण बिखर गया. वह जनता को यह संदेश देने में विफल रहा है कि मोदी सरकार को क्यों हटाना है और उसकी तरफ से अगले पीएम का दावेदार कौन होगा?
जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औऱ बीजेपी नीत एनडीए को बिखरे विपक्ष का भरपूर लाभ मिला. आम लोगों ने विपक्ष की ओर से उछाले जा रहे बेरोजगारी, किसान समस्या, राफेल, धर्म की राजनीति जैसे नारों और मसलों की ओर ध्यान न देकर बीजेपी के सबका साथ सबका विकास नारे पर भरोसा जताया. सच तो यह है कि बीजेपी ने कमजोर विपक्ष और उसके गायब मुद्दों का ही फायदा उठाया. कह सकते हैं पीएम पर नरेंद्र मोदी की दोबारा ताजपोशी जनता में मोदी नाम की विश्वास की जीत है औऱ विपक्ष की हार का एक बड़ा कारण विश्वसनीयता का अभाव ही है.
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