Ram Sita: भगवान राम ने सीता माता की प्रशंसा में पढ़ें ये तीन श्लोक, जानें इनका अर्थ
राम और सीता की कहानी हिन्दू धर्म के एक प्रमुख एपिक, रामायण, में उपस्थित है. यह कहानी प्रेम, धर्म, और सच्चे प्रेम के प्रति समर्पित है. राम, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और धरती पर आए विशेषाधिकारी राजा बने.
नई दिल्ली:
Ram Sita: राम और सीता की कहानी हिन्दू धर्म के एक प्रमुख एपिक, रामायण, में उपस्थित है. यह कहानी प्रेम, धर्म, और सच्चे प्रेम के प्रति समर्पित है. राम, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और धरती पर आए विशेषाधिकारी राजा बने. वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए गए, जिन्होंने धर्म का पालन करते हुए अपने जीवन को गुणवत्ता से भरा. सीता, भगवान जनक की पुत्री थीं, जो असली सुन्दरी थीं और पारम श्रीराम की पतिव्रता पत्नी बनी. उनकी पतिव्रता, त्याग, और पतिपरायणता की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है. राम और सीता का मिलन, स्वयंवर में हुआ था, जब राम ने धनुष तोड़ कर सीता के साथ विवाह किया. लेकिन उनकी खुशियां अद्वुत नहीं रहीं, क्योंकि दशरथ ने राजा की पत्नी के द्वारा दी गई वचनपुर्ति के कारण राम को वनवास जाना पड़ा. सीता ने भी पतिव्रता त्याग करते हुए राम के साथ वनवास में चली गईं. वनवास के दौरान, सीता को रावण ने हरण कर लिया और राम ने उसे लंका से मुक्ति दिलाने के लिए महायुद्ध किया. राम ने रावण को मारकर सीता को विशेष परीक्षण के बाद अपने साथ अयोध्या ला कर भगवान राजा बने. राम और सीता की कहानी में हमें प्रेम, धर्म, और वचनपुर्ति की महत्ता को सीखने को मिलता है, जो आज भी हमारे समाज में महत्त्वपूर्ण हैं.
भगवान राम ने सीता माता की प्रशंसा में अपनी भक्ति और प्रेम भरी भाषा में कई बार कहा है, जो रामायण ग्रंथ में उपलब्ध है. यहां कुछ प्रमुख प्रशंसा के श्लोक हैं:
"श्रीमती सीतारूपायै परात्परभयंकराय.
राघवायै नमस्तुभ्यं राजेन्द्राय वनेचर." - (रामायण, उत्तरकाण्ड, 31.12)
इस श्लोक में राम ने सीता को "श्रीमती सीतारूपा" और "परात्परभयंकरा" कहकर प्रशंसा की है, जिससे उनकी दिव्यता और अमृत समान भयंकर शक्तियों का स्वरूप दर्शाया गया है.
"त्वया हि रक्षिता सीता पश्य राम सरितां तत्.
सरितां वा नियुक्ता त्वां पश्य सीता जनस्थिताम्." - (रामायण, युद्धकाण्ड, 117.35)
इस श्लोक में राम ने युद्धकाण्ड में हनुमान से कहा है कि "त्वया हि रक्षिता सीता" यानी "सीता तुम्हारी रक्षा में है" और "सरितां वा नियुक्ता त्वां" यानी "तुम सरिता का स्वरूप हो".
"श्रीदा श्रीरूपा धर्मात्मा सत्यसन्धा प्रियंवदा.
वन्दे वाचनकोमला च पाणिमामलमुत्तमाम्." - (रामायण, बालकाण्ड, 340.28)
इस श्लोक में राम ने सीता को "श्रीदा" (धन्यवादी), "श्रीरूपा" (धन्यवाद की रूपा), "धर्मात्मा" (धर्म परायण), "सत्यसन्धा" (सत्य में स्थित), और "प्रियंवदा" (प्रिय वचन बोलने वाली) कहकर सीता माता की महिमा को स्तुति की है.
Religion की ऐसी और खबरें पढ़ने के लिए आप visit करें newsnationtv.com/religion
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Kya Kehta Hai Islam: मृत्यु के बाद क्या होता है आत्मा के साथ, इस्लाम धर्म में छिपा है मौत के बाद का पूरा सच
-
Bahai Religion: बहाई धर्म क्या है, जानें दुनिया का सबसे नया धर्म कब और कैसे आया
-
Shani Jayanti 2024: ये 4 राशियां हैं शनिदेव को बहुत प्रिय, शनि जयंती से इन राशियों के शुरू होंगे अच्छे दिन!
-
बड़ी रोचक है Somnath Jyotirlinga की कहानी, बहुत कम ही लोग जानते होंगे ये दिलचस्प बातें