अब कांग्रेस हो रही मजबूत...लेकिन बागडोर किसके हाथ में राहुल गांधी या प्रियंका ?
प्रियंका गांधी एक अलग ही रणनीति पर चल रही है. वो खुद को लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा ले जा रही हैं. जबकि राहुल गांधी खुद को जननेता के रूप में खुद को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं.
नई दिल्ली:
कांग्रेस एक बार से अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने लगी है. कम संख्या बल की वजह से उसकी आवाज जो दब गई थी वो फिर से मुखर होकर उठने लगी है. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और प्रस्तावित एनआरसी को लेकर कांग्रेस अब मजबूती से मोदी सरकार को घेर रही है. संसद में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने भले ही नागरिकता संशोधन बिल को पास होने से नहीं रोक सके, लेकिन सड़कों पर इस कानून के खिलाफ मुखरता से विरोध किया जा रहा है. जिसका असर पड़ता दिखाई भी दे रहा है.
एनआरसी को लेकर मोदी सरकार रुख पूरी तरह बदल गया है. संसद में एनआरसी को लेकर चुनौती देने वाले अमित शाह (Amit Shah) का सुर बदल गया. पीएम नरेंद्र मोदी का एनआरसी पर किसी तरह की चर्चा से इंकार कर दिया और बीजेपी के ट्विटर हैंडल से वो ट्वीट भी डिलिट हो गया जिसमें यह कहा गया था कि पूरे देश भर में एनआरसी लागू किया जाएगा.
पीएम मोदी ने हाल ही में रामलीला मैदान में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि 2014 में एनआरसी को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई. जबकि अमित शाह ने संसद में ताल ठोकते हुए कहा था कि पूरे देश में एनआरसी लागू होकर रहेगी.
इसे भी पढ़ें:नागरिकता संशोधन बिल पर हंगामा है क्यों बरपा! पढ़ें पूरा विश्लेषण
पीएम मोदी के इस बयान के बाद गृहमंत्री अमित शाह भी बैकफुट पर आ गए. एनआरसी पर शाह ने कहा कि पीएम ने जो रविवार को कहा है वो सही कहा है. इसपर अभी कोई विचार नहीं किया गया है. अगर एनआरसी करना होगा तो कोई चोरी-छिपे थोड़े ही ना किया जाएगा.
एनआरसी पर सरकार का बैकफुट पर आना कहीं ना कहीं कांग्रेस और विपक्ष की मजबूती से जोड़कर देखा जाए तो गलत नहीं होगा. लोकतंत्र में बेहद जरूरी है कि विपक्ष की आवाज बुलंद रहे ताकि सत्ता की बागडोर संभालने वाले तानाशाह ना बन पाए.
आज की तारीख में कांग्रेस गठबंधन के पास छह राज्य हैं. जिसमें मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड शामिल है. भले ही बीजेपी के पास अभी भी कई राज्यों की बागडोर है और केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है, इसके बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी देश के बड़े राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हारी है. और इसका मतलब है कांग्रेस और विपक्षी दलों का मजबूत होना.
कांग्रेस को मजबूत करने में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी पूरी कोशिश में लगे हुए हैं. वो मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका चूक नहीं रहे हैं. हाल ही में सीएए और एनआरसी के मुद्दे को लेकर अभी कांग्रेस की बागडोर संभाल रही सोनिया गांधी ना सिर्फ सड़क पर उतरी, बल्कि सीएए को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात कर इसपर चिंता भी जताया.
वहीं, प्रियंका गांधी एक अलग ही रणनीति पर चल रही है. वो खुद को लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा ले जा रही हैं. वो सड़क पर उतरकर प्रदर्शनकारियों के बीच जाकर उनके सुर में सुर मिलाती हैं. सुरक्षा घेरा तोड़कर उनके पास आने वाले कार्यकर्ता से गर्मजोशी से मिलती हैं उनकी राय को सुनती हैं. योगी सरकार को चुनौती देते हुए यह कहती है कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष डरा हुआ है लेकिन हम डरने वाले नहीं है. मतलब प्रियंका गांधी वो सबकुछ कर रही हैं जो राहुल गांधी को करना चाहिए था. राहुल गांधी खुद को जन नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पा रहे हैं.
कांग्रेस का भविष्य कहे जाने वाले राहुल गांधी कई मोर्चों पर पीछे नजर आते हैं. वो मौका भुनाने से चूक जाते हैं. मसलन जब वो रैली करने जाते हैं तो एक ही बात बार-बार दोहराते नजर आते हैं. सीएए और एनआरसी इतना बड़ा मुद्दा था और जब पूरा देश सड़क पर उतरा था तब राहुल गांधी यहां रहने की बजाय दक्षिण कोरिया चले गए. झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी के चेहरे के रूप में केवल पांच रैलियों को संबोधित किया. वायनाड से सांसद राहुल गांधी 25 नवंबर को समाप्त हुए शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के दौरान संसद में भी मौजूद नहीं थे.
और पढ़ें:कानून अंधा है तो एनकाउंटर गलत कैसे? आखिर इस दरिंदगी की दवा क्या है...
मतलब कई ऐसे मौके आते हैं जब राहुल गांधी बीजेपी को घेर सकते हैं, लेकिन वो हर मौके को गंवा देते हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हो सकता है. अगर कांग्रेस राहुल गांधी को अपना भविष्य बनाना चाहती है तो क्या वो पार्टी को मजबूती देने में उसे उस ऊंचाई पर पहुंचाने में सक्षम होंगे जहां कांग्रेस पहले थी. अभी तक तो उनके द्वारा उठाए गए कदम से ऐसा नहीं लगता है कि वो कांग्रेस को पहले वाले स्थिति में ले जाएंगे.
हालांकि प्रियंका गांधी में वो छवि नजर आती है कि वो जननेता के रूप में खुद को स्थापित कर सकती हैं. इसकी तस्वीर तब भी दिखी जब राजघाट पर सीएए के खिलाफ सत्याग्रह पर कांग्रेस बैठी थी. इस दौरान सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ा. लेकिन अंतर सिर्फ इतना था राहुल गांधी ने संविधान की अंग्रेजी में प्रस्तावना पढ़ा वहीं प्रियंका गांधी ने ना सिर्फ हिंदी में संविधान की प्रस्तावना पढ़ा बल्कि सीएए के दौरान विरोध प्रदर्शन करते वक्त पुलिस के शिकार हुए युवकों के बारे में भी बोला और इसके जरिए सरकार के कदम पर सवाल उठाए.
लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है कि मजबूत सरकार के साथ मजबूत विपक्ष भी मिले. इसके साथ ही बेहद जरूरी होता है कि विपक्ष की बागडोर एक ऐसे हाथ में हो जो उसे सही दिशा दे सके और आवाज को बुलंद कर सके. वो मजबूत चेहरा प्रियंका गांधी में दिखाई दे रहा है.
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Kajol Workout Routine: 49 की उर्म में ऐसे इतनी फिट रहती हैं काजोल, शेयर किया अपना जिम रुटीन
-
Viral Photos: निसा देवगन के साथ पार्टी करते दिखे अक्षय कुमार के बेटे आरव, साथ तस्वीरें हुईं वायरल
-
Moushumi Chatterjee Birthday: आखिर क्यों करियर से पहले मौसमी चटर्जी ने लिया शादी करने का फैसला? 15 साल की उम्र में बनी बालिका वधु
धर्म-कर्म
-
Vikat Sanakashti Chaturthi 2024: विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कब? बस इस मूहूर्त में करें गणेश जी की पूजा, जानें डेट
-
Shukra Gochar 2024: शुक्र ने किया मेष राशि में गोचर, यहां जानें किस राशि वालों पर पड़ेगा क्या प्रभाव
-
Buddha Purnima 2024: कब है बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख मास में कैसे मनाया जाएगा ये उत्सव
-
Shani Shash Rajyog 2024: 30 साल बाद आज शनि बना रहे हैं शश राजयोग, इन 3 राशियों की खुलेगी लॉटरी