मराठा आरक्षण एक्ट: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया कैवियेट, जानिए क्या है यह...
सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली कोई याचिका दाखिल होती है तो कोर्ट एकतरफा रोक का आदेश न दे.
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण एक्ट मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केवियट दाख़िल किया है. सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली कोई याचिका दाखिल होती है तो कोर्ट एकतरफा रोक का आदेश न दे. कोई भी आदेश देने से पहले सरकार का पक्ष सुना जाए. बता दें कि गुरुवार को महाराष्ट्र विधानसभा ने सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े वर्ग के तहत मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव आम सहमति से पारित कर दिया.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में बिल को पेश किया और आम सहमति से बिल को पारित करने में मदद के लिए धन्यवाद दिया. इस बिल को ऊपरी सदन में भेजा जाएगा. विधेयक के अनुसार, शिक्षण संस्थानों और सरकारी सेवाओं में सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर घोषित पिछड़े मराठा लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा.
इससे पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने संबंधी राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) की सिफारिशों पर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) सदन में रखा था. रिपोर्ट के आधार पर तैयार किए गए मसौदा विधेयक में कहा गया है कि सरकार को ऐसा लगता है कि मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देना उचित है.
एटीआर के साथ ही फडणवीस ने मराठा समुदाय के सामाजिक, शैक्षिक तथा आर्थिक दर्जे के बारे में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अंतिम सिफारिशों और निष्कर्षों को भी पेश किया.
बता दें कि महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से प्रभुत्व मराठा समुदाय की राज्य में 30 फीसदी आबादी है जो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण देने की मांग लंबे समय से कर रही थी.
पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में मराठा समुदाय को 'सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नागरिक' के तौर पर पहचाना गया था जिनका सरकारी और अर्द्ध-सरकारी सेवाओं में बहुत कम प्रतिनिधित्व बताया गया.
क्या है कैवियेट पेटिशन
कैविएट पेटिशन 148 ए के तहत दायर की जाती है. महाराष्ट्र सरकार द्वारा कैवियेट दाख़िल करने का मतलब है कि राज्य सरकार पहले ही कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रही है. जिससे की अगर कोई इसके विरोध में याचिका दाख़िल करता है तो उन लोगों की याचिका पर सुनवाई से पहले कोर्ट सरकार का पक्ष सुनेगी. यानी कि किसी तरह की कानूनी कार्रवाई पर रोक.
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हालांकि कैवियेट दाख़िल होने के बाद असन्तुष्ट व्यक्ति कोर्ट तो जा सकता है किन्तु संतुष्ट व्यक्ति की नियुक्ति में कोई दिक्कत नहीं आ सकती है.
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