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Maharashtra assembly elections 2019: इस कारण शरद पवार को सता रही पश्चिम महाराष्ट्र की चिंता

पश्चिम महाराष्ट्र को शरद पवार का गढ़ माना जाता है लेकिन बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन ने शरद पवार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यह गठबंधन शरद पवार (Sharad Pawar) के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी कर चुका है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra assembly elections 2019) में शरद पवार के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है.

Updated on: 15 Oct 2019, 12:59 PM

highlights

  • 1999 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर कांग्रेस छोड़ किया था एनपीसी का गठन
  • पश्चिम महाराष्ट्र माना जाता है शरद पवार का गढ़, इसी इलाके से किंगमेकर की भूमिका में रही है एनपीसी
  • 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से एनपीसी के कई नेता बीजेपी और शिवसेना के पाले में जा चुके हैं

मुम्बई:

महाराष्ट्र की राजनीति में फिलहाल NCP प्रमुख शरद पवार से बड़ा कोई नेता नहीं है. कई बार वह महाराष्ट्र में किंगमेकर की भूमिका में रहे हैं. पश्चिम महाराष्ट्र को शरद पवार का गढ़ माना जाता है लेकिन बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन ने शरद पवार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यह गठबंधन शरद पवार (Sharad Pawar) के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी कर चुका है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra assembly elections 2019) में शरद पवार के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है.

शरद पवार ने अपना राजनीतिक सफर कांग्रेस के साथ शुरु किया था. 1999 में सोनियां गांधी के अध्यक्ष बनने पर हुए विरोध में कांग्रेस से अलग होने वाले नेताओं में शरद पवार का नाम सबसे ऊपर था. तब उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया. महाराष्ट्र की राजनीति में उनका कद इतना बड़ा था कि वह प्रदेश में कांग्रेस से अलग होकर न सिर्फ अपना संगठन खड़ा करने में कामयाब रहे बल्कि किंगमेकर की भूमिका में आ गए. यही कारण है कि एमसीपी के गठन के बाद से ही न तो कांग्रेस और ही बीजेपी कभी शरद पवार को नजरअंदाज कर सकी. कांग्रेस इतनी सीटें भी लाने में कामयाब नहीं रही कि एनसीपी के बिना सत्ता में काबिज हो सके.

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पश्चिम महाराष्ट्र है शरद पवार का गढ़
2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यहां देश भर में मोदी लहर दिखी. वहीं पश्चिम महाराष्ट्र में मोदी लहर को रोकने में शरद पवार कामयाब रहे. 2014 के लोकसभा चुनाव में राकांपा को मिली सभी चार लोकसभा सीटें इसी इलाके से आई थीं. पांच भागों में बंटे महाराष्ट्र में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में
कोकण, विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में भाजपा-शिवसेना गठबंधन 80 फीसद से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में अपनी बढ़त दिखा चुका है. जबकि पश्चिम महाराष्ट्र ऐसा अकेला भाग था, भाजपा-शिवसेना दो-तिहाई विधानसभा क्षेत्रों से आगे नहीं बढ़ पाईं. इसी बढ़त की बदौलत छह माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 226 पर भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बढ़त मिली थी. पिछले छह महीने में एनसीपी के कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इससे शरद पवार की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है.

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बीजेपी गठबंधन के पाले में आए कई एनसीपी नेता
लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस और एनसीपी में टूट का सिलसिला जारी है. करीब दो दर्जन विधायक और पूर्व विधायक पाला बदलकर बीजेपी और शिवसेना के खेमे में आ चुके हैं. कभी कांग्रेस-राकांपा की ताकत रहे इन नेताओं के पाला बदलने से कांग्रेस और राकांपा का सबसे मजबूत किला पश्चिम महाराष्ट्र लगातार कमजोर होता जा रहा है. शरद पवार के सामने अब इसे बचाने की बड़ी चुनौती है.