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श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक : भारत के लिए कितनी गंभीर बात

श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक अगर चीन के इशारे पर हुई है तो यह भारत के लिए गंभीर बात है. चीन के दखल की बात इसलिए पुष्‍ट हो रही है कि प्रधानमंत्री नियुक्‍त किए गए महिंदा राजपक्षे चीन के काफी करीबी माने जाते रहे हैं.

Updated on: 29 Oct 2018, 10:03 AM

नई दिल्ली:

श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक अगर चीन के इशारे पर हुई है तो यह भारत के लिए गंभीर बात है. चीन के दखल की बात इसलिए पुष्‍ट हो रही है कि प्रधानमंत्री नियुक्‍त किए गए महिंदा राजपक्षे चीन के काफी करीबी माने जाते रहे हैं. दक्षिण एशिया में चीन पाकिस्‍तान के साथ मिलकर लगातार भारत को अलग-थलग करने की कोशिश करता रहा है. इससे पहले उसने मालदीव में यामीन सरकार का साथ देकर भारत को परेशान किया था. चीन की शह पर यामीन सरकार ने कुछ दिन पहले भारत को वहां से सैन्‍य हेलीकॉप्‍टर वापस बुलाने को कहा था. राजनीतिक उठापटक के बाद श्रीलंका में हिंसक झड़क की भी शुरुआत हो गई है. द्रमुक नेताओं ने इस पर चिंता जताई है और भारतीय मछुआरों को लेकर भारत सरकार को आगाह भी किया है. इससे भारत के लिए काफी असहज स्‍थिति पैदा हो गई थी. भारत सरकार का कहना है कि वह श्रीलंका में राजनीतिक उठापटक पर पैनी नजर रखे हुए है.

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सार्क देशों में पाकिस्‍तान पहले ही भारत के खिलाफ पूरी दुनिया में आवाज बुलंद करता रहा है. दोनों देशों के खिलाफ कई लड़ाइयां भी हो चुकी हैं. पिछले कुछ दशक से पाकिस्‍तान आतंकवाद के सहारे भारत को नुकसान पहुंचाता रहा है और आगे भी उसकी मंशा में बहुत सुधार की उम्‍मीद नहीं है. चीन पाकिस्‍तान को खुलेआम समर्थन देता रहा है. दोनों देशों में सैन्‍य सहयोग के अलावा और कई मामलों में आपसी सहमति है, जिसमें भारत को नुकसान पहुंचाना भी शामिल है. पाकिस्‍तान की इसी हरकत के कारण सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) अब बेमतलब हो गया है. भारत के इशारे पर इस्‍लामाबाद में होने वाला सार्क सम्‍मेलन स्‍थगित कर दिया गया था. भारत के अलावा भूटान, बांग्‍लादेश और अफगानिस्‍तान ने तब भारत का साथ दिया था. रणनीतिक रूप से बांग्‍लादेश, अफगानिस्‍तान और भूटान अब भी भारत के साथ हैं. अब अगर श्रीलंका में चीन के दखल की पुष्‍टि होती है तो यह भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा.

क्‍या कहा था भारत के विदेश मंत्रालय ने

विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि श्रीलंका में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीक नजर रखी जा रही है. मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘एक लोकतंत्र और नजदीकी पड़ोसी मित्र होने के नाते हमें आशा है कि लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाएगा. हम श्रीलंका के मित्रवत लोगों के लिए हमारी विकासात्मक सहायता देना जारी रखेंगे.'

श्रीलंका में पैदा हो सकता है संवैधानिक संकट

विश्लेषकों के अनुसार, राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाने से देश में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है. वहां के जानकारों का कहना है कि संविधान में 19वां संशोधन बहुमत के बिना विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाने की अनुमति नहीं देगा. राजपक्षे और सिरिसेना के पास कुल 95 सीटें हैं और बहुमत से पीछे हैं. विक्रमसिंघे की पार्टी के पास अपनी खुद की 106 सीटें हैं और बहुमत से केवल सात कम हैं.

हंबनटोटा बंदरगाह पर श्रीलंका ने दिया था चीन को झटका
सिरिसेना के राष्‍ट्रपति बनने के बाद से श्रीलंका और चीन के संबंध वैसे नहीं रहे, जैसे राजपक्षे के समय हुआ करते थे. राजपक्षे के नेतृत्‍व में श्रीलंका ने चीन को करारा झटका देते हुए चीन द्वारा विकसित किए जाने वाले हंबनटोटा बंदरगाह के करार में बदलाव किया था. बता दें कि चीन ने भारत को घेरने के लिए श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और वहां चीनी निवेश बनाने का करार किया था. इसमें अहम बात यह थी कि चीन इस बंदरगाह को सैन्य गतिविधियों के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता था. इसके तहत श्रीलंका सरकार ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग को 80 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात कही थी. इस बंदरगाह को विकसित करने में चीनी कंपनी 1.5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही थी.

मालदीव में भी दखल दे चुका है चीन

राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्‍व में मालदीव ने बीते महीनों में भारत के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी, जब वहां आपातकाल लगाया गया था और भारत व लोकतंत्र समर्थित नेताओं को जेल भेज दिया गया था. तब भारत ने राष्‍ट्रपति अब्‍दुल्‍ला यामीन के कदम की आलोचना की थी और चीन ने उसका समर्थन किया था. अब्‍दुल्‍ला यामीन ने चीन की शह पर भारत को झटका देते हुए अपने सैन्‍य हेलीकॉप्‍टर वापस बुलाने को कहा था. दूसरी ओर, चीन ने आपातकाल का समर्थन कर यामीन सरकार को पूरा समर्थन दिया था. वहां के विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य दखल की गुहार लगाई थी. लेकिन पिछले महीने हुए चुनाव में वहां भारत समर्थित मोहम्‍मद सालिह की जीत हुई थी, हालांकि यामीन सत्‍ता नहीं छोड़ रहे थे. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मोहम्‍मद सालिह 11 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। सोलिह के राष्ट्रपति बनने से दक्षिण एशिया के इस छोटे द्वीप पर फिर से भारत का प्रभाव स्थापित हो जायेगा.

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