तमिलनाडु संकट: क्या SC का बोम्मई जजमेंट बनेगा पनीरसेल्वम का सहारा ?
तमिलानाडु में सत्ताधारी पार्टी AIADMK में उपजे वर्चस्व की लड़ाई के बाद वहां राजनीतिक पैदा हो गया है
नई दिल्ली:
तमिलानाडु में सत्ताधारी पार्टी AIADMK में उपजे वर्चस्व की लड़ाई के बाद वहां राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। पार्टी की जनरल सेक्रेटरी शशिकला और राज्य के कार्यकारी मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम में सत्ता को लेकर जंग छिड़ी हुई है।
ऐसे में अगर दोनों नेताओं में सहमति नहीं बनती तो केंद्र सरकार धारा 356 के तहत वहां राष्ट्रपति शासन लगा सकती है। शशिकला ने कई बार ये आरोप लगाया है कि उनके शपथ ग्रहण में जानबूझ कर देरी कराई जा रही और उन्हें विधानसभा में बहुमत परीक्षण का मौका नहीं मिल रहा है। इसी को लेकर एक दिन पहले शशिकला ने राज्यपाल को चिट्ठी भी लिखी थी।
यहां यह जानना दिलचस्प है कि पार्टी की जनरल सेक्रेटरी शशिकला ना तो किसी संवैधानिक पद पर है और ना ही उन्होंने कोई चुनाव लड़ा है। वो ना तो विधानसभा की सदस्य हैं और नहीं ही एमएलसी हैं। ऐसी संभावना भी जताई जा रही है कि राज्यपाल पहले पन्नीरसेल्वम को ही विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका दें । इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पन्नीरसेल्वम पहले भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और वो वर्तमान में भी विधायक होने के साथ राज्य के कार्यकारी सीएम भी है।
इससे पहले पन्नीरसेल्वम राज्यपाल से मिलकर कह चुके हैं कि वो अपना इस्तीफा वापस लेना चाहते हैं। ऐसे में गेंद अब राज्यपाल के पाले में है कि वो शशिकला और पन्नीरसेल्वम में से किसे पहले विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका देते हैं । हालांकि अभी भी पार्टी के ज्यादातर विधायक शशिकला के खेमे में ही है लेकिन धीरे धीरे ही सही पार्टी के मंत्री, सांसद और विधायक पन्नीरसेल्वम गुट में शामिल हो रहे हैं। इससे शशिकला के लिए मुख्यमंत्री बनने की राह मुश्किल हो सकती है।
राज्य में ऐसे राजनीतिक संकट में भी राज्यपाल के हाथ सुप्रीम कोर्ट के बोम्मई जजमेंट से बंधे हुए हैं। जजमेंट के तहत राज्यपाल विधानसभा में किसी एक पक्ष को पहले बहुमत साबित करने का मौका दिए बिना राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा सकते।
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तमिलनाडु में कुल 234 विधानसभा सीट है, यानी कि सदन में 50 फ़ीसदी समर्थन दिखाने के लिए AIADMK को 118 सदस्यों की ज़रूरत है। फिलहाल शशिकला खेमे में 127 सदस्य हैं, जो कि पहले 134 हुआ करते थे।
यहां यह जान लेना बेहद जरूरी है कि आखिर धारा 356 है क्या और उसके जरिए कैसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
क्या है धारा 356
संविधान निर्माताओं ने धारा 356 इसलिए बनाया था कि अगर किसी राज्य में लोकतांत्रिक या राजनीतिक संकट आ जाए तो केंद्र सरकार इस धारा की बदौलत वहां राष्ट्रपति शासन लगा सके। इस धारा के तहत अगर किसी राज्य में स्थानीय सरकार संविधान के तहत नहीं चल सकती या वहां गतिरोध इतना बढ़ जाए कि राज्य के कानून व्यवस्था पर भी संकट आ जाए तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
राष्ट्रपति शासन के लिए राज्यपाल को प्रतिवेदन देना पड़ता है। हालांकि कई पार्टियां जो केंद्र में सत्ता में रही हैं उनपर इस धारा के दुरुपयोग करने का आरोप लगता रहा है। केंद्र सरकार किसी भी राज्य में राजनीतिक संकट का फायदा उठाने के लिए राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की दलील देकर वहां राष्ट्रपति शासन लगा देती है।
केंद्र सरकार और धारा 356 के खिलाफ ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एस आर बोम्मई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे जिसे बोम्मई जजमेंट के नाम से जाना जाता है।
क्या है बोम्मई जजमेंट
धारा 356 के इसी गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए साल 1994 में 11 मार्च को देश के सर्वोच्च अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था जिसको बोम्मई जजमेंट के नाम से जाना जाता है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस आर बोम्मई के फोन टेंपिंग मामले में फंसने के बाद केंद्र सरकार ने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया था जिसके बाद ये मामला कोर्ट पहुंच गया था।सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने फैसले में कहा, 'किसी भी राज्य सरकार के बहुमत का फैसला राष्ट्रपति भवन की जगह विधानमंडल में होगा। कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्य सरकार को शक्ति परीक्षण का मौका देना होगा।'
हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के आधार पर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी राजनीतिक संकट के बावजूद स्थानीय सरकार को शक्ति परीक्षण का मौका मिला था।
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