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छत्तीसगढ़ में रेलवे की धीमी रफ्तार ने यात्रा पर लगाया ब्रेक? जानें क्या है वजह

कोरोना काल के बाद देशभर में शुरू हुए ट्रेनों के सफल संचालन ने लोगों का सफर आसान बना दिया, मगर इसका फायदा छत्तीसगढ़वासियों को अब भी नहीं मिल पा रहा है.

Updated on: 10 Jun 2022, 02:07 PM

नई दिल्ली:

कोरोना काल के बाद देशभर में शुरू हुए ट्रेनों के सफल संचालन ने लोगों का सफर आसान बना दिया, मगर इसका फायदा छत्तीसगढ़वासियों को अब भी नहीं मिल पा रहा है. कोरोना के बाद अब कोयला परिवहन के नाम पर प्रदेश में ट्रेनों का संचालन प्रभावित हो रहा है, जिस पर राजनीति भी खुल कर हो रही है. मगर इन परिस्थितियों ने छत्तीसगढ़ में रेलवे की धीमी रफ्तार की पोल खोल कर रख दी. जो पड़ोसी राज्यों से भी सुस्त है. अब इसकी वजह जो भी हो, लेकिन सच यही है कि प्रदेश में रेलवे के विस्तार की रफ्तार बेहद धीमी है. जिसका खामियाजा आज प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है.
 
छत्तीसगढ़ से बेहतर स्थिति तो पड़ोसी राज्यों की है, जहां इतने ही समय में ज्यादा काम हुए हैं. 22 सालो में प्रदेश में 105 किमी नई लाइन बिछाने काम हो सका. जहां साल 2000 में 1186 किमी रेल लाइनें थीं. जो 22 साल में बढ़कर 1291 किमी ही हो पाई. मतलब सालाना औसतन 4.72 किमी पटरियां ही बिछाई गईं, मगर पड़ोसी राज्य तेलंगाना में 202 किमी ट्रैक बनकर तैयार हो चुका है. जो छत्तीसगढ़ के 8 साल बाद राज्य बना. वहीं, झारखंड में 425 किमी से ज्यादा नई लाइन बिछा दी गई. हालांकि, इसके पीछे रेलवे के तर्क और दलील कुछ अलग हैं. जिसका कहना है कि कई लाइनों की डबलिंग या ट्रिपलिंग हुई है. इसे भी ट्रैक के विस्तार से जोड़कर ही देखना चाहिए.
 
मगर जब सवाल पूछा जाता है कि आखिर नई लाइन बिछाने में देरी क्यों हो रही है? तो बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ की भौगोलिक संरचना अलग है. प्रदेश में जंगल-पहाड़ ज्यादा हैं. जंगली इलाकों में काम में देरी होती है. जमीन अधिग्रहण एक सबसे बड़ी समस्या है. जमीन अधिग्रहण में देरी से काम पर असर पड़ता है. हालांकि, कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियां तो झारखंड में भी हैं. वहां की भोगोलिग परिस्थितियां भी छत्तीसगढ़ से मेल खाती हैं तो फिर वहां रेलवे ट्रैक का काम तेजी से कैसे हुआ? 

तो इसके लिए कहा जा रहा है कि ज्यादातर जगहों पर सांसद रेलवे के कामों की मॉनिटरिंग करते हैं. देरी होने पर वे सवाल करते हैं तो काम में तेजी आ जाता है. मगर प्रदेश में जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी इसकी वजह कही जा सकती है. ऐसे में सावल उठता है कि अगर ट्रैक के काम में देरी हो रही है तो फिर सांसदों ने इसकी सुध क्यों नहीं ली? जमीन अधिग्रहण में तेजी लाने के लिए स्थानीय प्रशासन पर दबाव क्यों नहीं बनाया? कहीं ना कहीं ये परिस्थिति धीमी रफ्तार के सियासी होने के भी संकेत देती हैं.

बहरहाल, वजह जो भी हो, लेकिन काम में तेजी आनी चाहिए, तभी प्रदेश में रेल नेटवर्क का विस्तार होगा. नहीं तो आज कोयले के संकट की वजह से ट्रेनें रद्द करनी पड़ रही है कल किसी और कारण से ये लोगों की परेशानी की वजह बनेगी.