12 रैट माइनर्स.. 41 मजदूर.. 400 घंटों में जिंदगी और मौत का खेल! ये है Inside Story
17 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार 41 मजदूरों को सुरक्षित बचा लिया गया है. इस ऑपरेशन में शुमार 12 रैट माइनर्स ने अपनी जान जोखिम में डालकर इस रेस्क्यू को अंजाम तक पहुंचाया. चलिए इसकी पूरी कहानी जानें...
नई दिल्ली:
जीत गई जिंदगी... करीब 400 घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार सिल्क्यारा सुरंग की कैद से सभी मजदूर आजाद हो गए. रेस्क्यू के आखिरी मिनटों में जब ऑगर मशीन ने साथ छोड़ दिया, तो इंसानी साहस के बदौलत चट्टान को चीरते हुए 41 जिंदगियों को रिहाई दिलाई गई. इस पूरे ऑपरेशन में शासन-प्रशासन समेत, अन्य तमाम एजेंसियां भी शुमार थी, लिहाजा हर एक ने काबिले तारीफ काम किया, मगर 12 रैट माइनर्स, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर इन 41 श्रमिक भाइयों की जान बचाई उनकी मेहनत और मशक्कत की पूरे देशभर में सरहाना हो रही है. इसलिए आज हम इन सहासी रैट माइनर्स के परिवार वालों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं...
'मैं बहुत खुश हूं, मेरे पापा ने 41 लोगों की जान बचाई...,' अपने पिता की जाबाजीभरे लम्हों को याद करते हुए एक बेटा पूरी दुनिया के सामने यही बोलता है. दरअसल दिल्ली के खजूरी खास इलाके में रिहाइश आरिफ मुन्ना, पेशे से एक रैट माइनर्स हैं. उत्तरकाशी सुरंग बचाव अभियान के लिए जब उन्हें बुलावा आया तो, वो अपने तीन बच्चों के साथ घर में बिल्कुल अकेले थे, मगर जिम्मेदारी के मद्देनजर उन्हें जाना पड़ा. हालांकि इसी बीच आरिफ मुन्ना के भाई ने उनके तीनों बच्चों की पूरी देखभाल की, क्योंकि कोरोना महामारी में तीनों बच्चों ने अपनी मां को खो दिया था. घर वालों का कहना था कि, मुन्ना मददगार स्वभाव के हैं. ये पहली बार नहीं है कि उन्होंने किसी की जान बचाई हो. इससे पहले भी वो कई बार ऐसा कर चुके हैं.
मालूम हो कि, उत्तरकाशी में रेस्क्यू पर जुटे सभी 12 रैट माइनर्स में से 6 आरिफ मुन्ना के साथ ही हैं. ये सभी लोग एक साथ काम करते हैं. चाहे काम कितना भी जोखिमभरा हो, डरते या हिचकिचाते नहीं, अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभाते हैं. हालांकि इनकी आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं, मगर हौसला काफी दृढ़ है.
अपने काम में माहिर हैं ये रैट माइनर्स
यहां मालूम हो कि, रैट माइनर्स अपने इस काम में काफी ज्यादा माहिर हैं. दरअसल ये दिल्ली जल बोर्ड और गैस का काम करते हैं, जहां इन्हें जमीन के अंदर सुरंग बनाने में महारत हासिल है. लिहाजा इस काम के लिए वो पहले से ही तैयार थे. हालांकि रिस्क बहुत था, मगर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को समझा और फिर 41 जिंदगियां बचाने में जुट गए और आखिरकार बेइंताही मशक्कत के बाद कामयाबी हाथ लगी.
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