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अखिलेश यादव से हाथ मिलाने के लिए शिवपाल यादव ने रखीं ये दो बड़ी शर्तें

लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव दोनों के सामने अपने-अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती है. यही वजह है कि दोनों के बीच जमी कड़वाहट की बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है. मगर समाजवादी कुनबे में सब कुछ बनते बनते बिगड़ता भी जा रहा है.

Updated on: 29 Sep 2019, 07:05 AM

लखनऊ:

लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव दोनों के सामने अपने-अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती है. यही वजह है कि दोनों के बीच जमी कड़वाहट की बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है. मगर समाजवादी कुनबे में सब कुछ बनते बनते बिगड़ता भी जा रहा है. पिछले कुछ दिनों से चर्चा थी कि शिवपाल यादव एक बार फिर समाजवादी हो जाएंगे. इसके संकेत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी दिए थे. लेकिन अब जब बात आगे बढ़ी तो शिवपाल यादव ने दो ऐसी शर्तें रख दी हैं, जो अखिलेश यादव के सामने मुश्किल बन रही हैं.

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पहली शर्त रखी है कि उनकी पार्टी का विलय नहीं होगा, बल्कि दोनों पार्टियां गठबंधन में रहेगा. इसके साथ ही शिवपाल ने दूसरी शर्त रखी है कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर धर्मेंद्र यादव को जिम्मेदारी मिले, तभी बात आगे बन पाएगी. आपको बता दें कि धर्मेंद्र यादव इन दिनों शिवपाल यादव और अखिलेश यादव को एक करने का प्रयास कर रहे हैं. मुलायम सिंह यादव ने धर्मेंद्र यादव को इसकी जिम्मेदारी सौंप रखी है.

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अहम बात यह है कि शुरू से यादव वोट का मूल आधार मुलायम और शिवपाल ही रहे हैं. अखिलेश अभी तक अपना अकेला कोई ऐसा मुकाम भी नहीं बना पाए, जिस कारण पूरा वोट बैंक खुलकर उनकी ओर आ जाए. राजनीतिक विशेषज्ञों का मामला है कि अब यादव वोट सुशासन और राष्ट्रवाद के नाम पर छिटक रहा है. शिवपाल के पार्टी से हटने के बाद और मुलायम की सक्रिय राजनीति में न होने के कारण भी यादव वोट बैंक भी इधर-उधर हो रहा है. वह सत्ता की ओर खिसक रहा है. शिवपाल के सपा के साथ मिलने से सीटे भले न बढ़े लेकिन यादव वोट एक हो जाएगा और पार्टी भी मजबूत हो जाएगी.

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यही मुलायम भी चाहते हैं यही कारण है कि शिवपाल और अखिलेश के एक होने के सुर तेज होने लगे हैं. हालांकि खुलकर न तो अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का नाम लिया और न ही शिवपाल ने साजिशकर्ता के तौर पर किसी का नाम लिया है. अखिलेश यादव के सारे राजनीतिक प्रयोग फेल हो चुके है. शिवपाल ने भी अभी न कुछ खोया है और न ही उन्हें कुछ मिला है. ऐसे में अब देखना यह है कि क्या चाचा-भतीजे अपने सारे गिले शिकवे भुलाकर एक हो पाएंगे.