पितृत्व के मामले में DNA टेस्ट से कथित पिता मना नहीं कर सकता : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने डीएनए जांच न कराने वाले एक कथित पिता की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने इस पर एक महत्वपूर्ण बात भी कही. कोर्ट ने कहा कि DNA जांच के मामले में किसी भी पक्षकार के साथ पक्षपात की गुंजाइश नहीं होती है.
लखनऊ:
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने डीएनए जांच न कराने वाले एक कथित पिता की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने इस पर एक महत्वपूर्ण बात भी कही. कोर्ट ने कहा कि DNA जांच के मामले में किसी भी पक्षकार के साथ पक्षपात की गुंजाइश नहीं होती है. जस्टिस अनिरुद्ध सिंह की बेंच ने कथित पिता की याचिका को लेकर फैसला दिया. इस याचिका में लखनऊ के अपर सत्र न्यायाधीश के 21 सितंबर के दिए आदेश को चुनौती दी गई थी. अपर सत्र न्यायाधीश ने याची की कथित पत्नी की मांग पर एक कथित बेटे के DNA जांच का आदेश दिया था.
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हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर डीएनए टेस्ट के अलावा पहचान का कोई और रास्ता नहीं है तो इससे भागा नहीं जा सकता है. दरअसल, एक महिला ने निचली में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर याची पर आरोप लगाया कि उन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. इसके बाद उनकी एक संतान भी हुई. लेकिन याची पहले से शादीशुदा था और उसके तीन बच्चे भी थे.
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बाद में याची ने बच्चे को स्वीकार करने से मना कर दिया. जिस पर शिकायतकर्ता कथित पत्नी ने अदालत में बच्चे व याची के डीएनए जांच की मांग उठाई. जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया. लेकिन सेशन कोर्ट ने शिकायतकर्ता की मांग को स्वीकार कर लिया व याची और ब्च्चे के डीएनए जांच का आदेश दिया.
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कथित पिता ने सेश कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के मुताबिक डीएनए जांच का आदेश सही नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत के उक्त निर्णय में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया यदि DNA टेस्ट का मजबूत केस बनता है और इसकी आवश्यक्ता होती है तो डीएनए टेस्ट करवाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता के पास अपना केस सिद्ध करने के लिए DNA टेस्ट के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. ऐसे मामलों में सिर्फ आधुनिक विज्ञान और तकनीक के सहारे ही निर्णय लिया जा सकता है.
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