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इमरजेंसी के बाद शुरू हुई मीसा बंदियों की पेंशन गहलोत सरकार ने की बंद

बताया जा रहा है कि गहलोत सरकार का ये फैसला उन नेताओं या उनकी विधवाओं पर लागू होगा जो 26 जून 1975 से लेकर 1977 के दौरान जेलों में बंद रहे थे.

Updated on: 14 Oct 2019, 02:59 PM

नई दिल्ली:

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. इस फैसले के तहत उन सभी नेताओं या उनकी विधवाओं की पेंशन बंद कर दी गई है जो आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे. राजस्थान सरकार के इस फैसले से सियासी माहौल गरमा गया है. बताया जा रहा है कि गहलोत सरकार का ये फैसला उन नेताओं या उनकी विधवाओं पर लागू होगा जो 26 जून 1975 से लेकर 1977 के दौरान जेलों में बंद रहे थे.

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जानकारी के मुताबिक गहलोत सरकार के इस फैसले का प्रभाव सबसे ज्यादा बीजेपी और आऱएसएस के नेताओं पर पड़ेगा क्योंकि जेलों में बंद रहने वालों की संख्या उन्ही की ज्यादा थी. अब इन लोगों को सरकार 20 हजार पेंशन और  मेडिकल भत्ता अलग से देती थी लेकिन इस फैसले के बाज न तो अब उन्हें पेंशन दी जाएगी और न ही मेडिकल भत्ता मिलेगा. बता दें, आपातकाल के दौरान ये नेता मेंटीनेंस ऑफ इंटर्नल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) और डिफ़ेंस ऑफ इंडिया रूल्स (डीआईआर) के तहत जेलों में बंद रहे थे.

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एक तरफ जहां इमरजेंसी भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में दाग के तौर पर देखा जाता है तो वहीं अब कहा जा रहा है कि इस दौरान जेल में बंद रहने वालों की पेंशन खत्म कर राजस्थान की कांग्रेस सरकार इमरजेंसी के फैसले को सही साबित करने की कोशिश कर रही है. बता दें, 5 जून, 1975 को भारत में आपातकाल यानि इमरजेंसी घोषित की गई थी. ये दिन भारत के इतिहास में कभी भी ना बदलने वाला दिन बन गया. आपातकाल का कांग्रेस के दामन पर एक ऐसा दाग है जो कभी भी मिट नहीं सकता. आपातकाल की घोषणा के साथ ही सरकार का विरोध करने वाले हर नेता, युवा को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था. इसके साथ प्रेस की आजादी पर सरकारी पहरा भी लग गया और विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया.