अब मध्य प्रदेश में प्रशासनिक मशीनरी पकड़ेगी रफ्तार, इसके पीछे की ये है बड़ी वजह
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, मगर उन फैसलों का असर जमीन पर होता नजर नहीं आ रहा था.
नई दिल्ली:
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, मगर उन फैसलों का असर जमीन पर होता नजर नहीं आ रहा था. इसकी वजह प्रशासनिक मशीनरी का साथ न मिलना मानी जा रही है. प्रशासनिक अमले सरकार की स्थिरता को लेकर आश्वस्त नहीं थे. मगर कई दलों के समर्थन से चल रही अल्पमत सरकार ने जब विधानसभा में अपनी ताकत साबित कर दी, उसके बाद राज्य की सुस्त पड़ी सरकारी मशीनरी के कामकाज में रफ्तार आने की संभावना बढ़ गई है.
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कमलनाथ के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार सात माह से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुकी है, मगर सरकार बनने के बाद से उसके भविष्य को लेकर सवाल लगातार उठाए जाते रहे हैं. विपक्ष यह प्रचारित करने में लगा रहा कि यह सरकार ज्यादा दिन चलनेवाली नहीं है. प्रशासनिक अमला भी यही मानकर चल रहा था कि सरकार कभी भी गिर सकती है. इसलिए सरकारी मशीनरी सरकार को भाव नहीं दे रही थी. विधानसभा में 24 जुलाई को कांग्रेस के एक विधेयक पर मत विभाजन में भाजपा के दो विधायकों का समर्थन मिल जाने के बाद अब सरकार के मंत्री भी यह मानकर चल रहे हैं कि बेलगाम हो चली नौकरशाही के रवैए में बदलाव दिखेगा.
राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी का दावा है कि विधानसभा में सरकार की ताकत दिखने के बाद नौकरशाहों को समझ में आ गया है कि यह सरकार चलेगी और अपना कार्यकाल पूरा करेगी. प्रशासनिक अधिकारी भी मानते हैं कि सरकार पर भरोसा बढ़ने से नौकरशाही के रवैए में बदलाव जरूर आएगा. सरकार की योजनाओं पर शुरू काम अब रफ्तार पकड़ेगा. पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का मानना है कि नौकरशाही हमेशा राजनीतिक हालात पर नजर रखता है. जब सरकार बदलती है, तब उसका असर नौकरशाही पर भी पड़ता है. जैसे-जैसे भरोसा बढ़ता है, हालात सामान्य होने लगते हैं और सभी लोग पहले की तरह अपने काम में लग जाते हैं.
एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, 'हमारे पास फाइलें कई-कई दिन तक पड़ी रहती थीं, क्योंकि हमेशा इस बात की आशंका रहती थी कि यह सरकार अब गई, तब गई. पूरी सरकारी मशीनरी ही पसोपेश में रहती थी, साथ ही पूर्ववर्ती सरकार से करीबी नाता रखने वाले अफसर वर्तमान सरकार को सहयोग देने के लिए तैयार नहीं थे. विधानसभा में मत विभाजन के दौरान सरकार की मजबूती दिखने के बाद अब सरकारी मशीनरी भी विश्वास करने लगी है कि अभी सरकार को कोई खतरा नहीं है.'
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सरकार के भविष्य के प्रति नौकरशाहों में बने संशय का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में कई मंत्रियों ने आरोप लगाया था कि अफसर उनके निर्देर्षो पर न तो अमल करते हैं और न ही विभागीय कामकाज में रुचि लेते हैं. कई अफसरों पर तो पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे नेताओं और भाजपा संगठन के नेताओं को ज्यादा महत्व देने तक के आरोप लग चुके हैं. प्रशासनिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ पूर्व में सरकारी मशीनरी में बदलाव लाने के कई प्रयास कर चुके हैं और इसी क्रम में बड़े पैमाने पर तबादले किए तो उन पर 'तबादला उद्योग चलाने' तक का आरोप लगाया गया. उसके बाद भी नौकरशाही के रवैए में बदलाव नहीं आ रहा था, मगर अब सरकार के भविष्य पर छाए कुहासे के छंटने से सरकारी मशीनरी के कामकाज में रफ्तार आने की पूरी संभावना है.
विधानसभा में बीते बुधवार को दंड विधि संशोधन विधेयक पर मत विभाजन में भाजपा के दो विधायकों- नारायण प्रसाद त्रिपाठी व शरद कोल ने कांग्रेस सरकार के पक्ष में मतदान कर राज्य की सियासी फिजा बदल दी. सरकार के भविष्य को लेकर छिड़ी चर्चाओं पर फिलहाल विराम लग गया है. कांग्रेस की सरकार को पूर्ण बहुमत नहीं है. राज्य की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 114 और भाजपा के 108 विधायक हैं. कमलनाथ सरकार को निर्दलीय, बसपा व सपा विधायकों का समर्थन हासिल है. भाजपा के दो विधायकों ने विधेयक का समर्थन कर कांग्रेस सरकार को और मजबूती दे दी है.
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