बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं ने किया ऐसा काम कि बुलानी पड़ी पुलिस
चीवर दान कार्यक्रम के दौरान रविवार को सैकड़ों बौद्ध भिक्षुओं ने महाबोधि मंदिर परिसर में विशेष पूजा के लिए पहुंचे थे.
highlights
- रविवार को भगवान बुद्ध की नगरी बोधगया में उनके ही अनुयायियों ने ताख पर रख कर हिंसा पर उतारू हो गए.
- विश्वविख्यात महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) के परिसर में रविवार को दो बौद्ध भिक्षु (Monk) लड़ाई करने लगे.
- उन दोनों की लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि महाबोधि मंदिर के मुख्य पुजारी भिक्षु चालिंदा ने बोधगया थाने में प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ी.
नई दिल्ली:
वैसे तो भगवान बुद्ध ने भी अहिंसा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी है. लेकिन रविवार को भगवान बुद्ध की नगरी बोधगया में उनके ही अनुयायियों ने ताख पर रख कर हिंसा पर उतारू हो गए. दरअसल, विश्वविख्यात महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) के परिसर में रविवार को दो बौद्ध भिक्षु (Monk) लड़ाई करने लगे. उन दोनों की लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि महाबोधि मंदिर के मुख्य पुजारी भिक्षु चालिंदा ने बोधगया थाने में प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ी.
जानकारी के मुताबिक, महाबोधि मंदिर में रविवार को दो बौद्ध भिक्षुओं के बीच जबरदस्त मारपीट हुई. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, चीवर दान कार्यक्रम के दौरान रविवार को सैकड़ों बौद्ध भिक्षुओं ने महाबोधि मंदिर परिसर में विशेष पूजा के लिए पहुंचे थे.
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वहीं पूजा में बैठने को लेकर दो बौद्ध भिक्षु आपस में भिड़ गए. इन दो भिक्षुओं की लड़ाई से माहौल इतना खराब हो गया कि पूजा नहीं हो सकी. इसके बाद अन्य बौद्ध भिक्षुओं ने हस्तक्षेप कर दोनों को शांत कराया, फिर जाकर पूजा शुरू हुई.
बौद्ध भिक्षुओं की मारपीट की बात को पुलिस ने भी स्वीकारा है. मारपीट की पुष्टि करते हुए थानाध्यक्ष मोहन कुमार सिंह ने बताया कि पूजा में बैठने को लेकर बौद्ध भिक्षु आपस में लड़ गए. हालांकि दूसरे बौद्ध भिक्षु ने मामले को शांत कराया. पुलिस के मुताबिक, सीसीटीवी के फुटेज के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.
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बता दें कि बौद्ध भिक्षुओं के लिए वर्षावास बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम है. हर साल 16 जुलाई से 13 अक्टूबर तक वर्षावास चलता है. बौद्ध भिक्षु वर्षावास में बौद्ध कुटिया या बौद्ध विहार में आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक यहीं रहते हैं. वर्षावास के दौरान पूरे तीन माह तक एक वक्त भोजन कर साधना और अध्ययन करना पड़ता हैं. वर्षावास के समाप्ति पर बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिए निकलते हैं.
बताया जाता है कि यह परंपरा करीब ढाई हजार साल से की जा रही है. वर्षावास समाप्ति के बाद 1 माह तक बौद्ध भिक्षुओं के लिए चीवर दान कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.
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