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Chhath Puja 2023: जानें छठ पूजा में आलता पत्र का है खास महत्व? बिहार में यहां होता है तैयार

देश में हर तरफ दिवाली और छठ पूजा के त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह है, वहीं हम सभी जानते हैं कि छठ बिहार का प्रमुख त्योहार है, जिसमें लोक आस्था को महत्व दिया जाता है.

Updated on: 09 Nov 2023, 07:30 PM

highlights

  • छठ पूजा में आलता पत्र का है खास महत्व
  • इसके बिना पूजा होती है अधूरी 
  • बिहार में यहां होता है तैयार

 

 

chhapra:

Chhath Puja 2023: देश में हर तरफ दिवाली और छठ पूजा के त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह है, वहीं हम सभी जानते हैं कि छठ बिहार का प्रमुख त्योहार है, जिसमें लोक आस्था को महत्व दिया जाता है. छठ पूजा पर्व बिहार के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है और यह उनके रोजगार के साथ-साथ आस्था और विश्वास से भी जुड़ा है. वहीं छठ पूजा के दौरान लाल रंग के आलपत्र को विशेष महत्व मिलता है और इसका उपयोग सूप और दउरा में किया जाता है. ऐसे आलपत्र का निर्माण यहां के छपरा में बड़े पैमाने पर होता है. हालाँकि, मुद्रास्फीति के समय में, कारीगरों को उनके काम के लिए बहुत कम भुगतान मिलता है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं से संबंधित भौतिक चिंताओं के कारण कारीगर मुनाफे का आकलन नहीं करते हैं.

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आपको बता दें कि सारण जिले के दिघवारा प्रखंड अंतर्गत झोंवा और अन्य गांवों में अलता पत्ता का काम कुटीर उद्योग की तरह किया जाता है, लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण न तो यह रोजगार बढ़ रहा है और न ही इससे जुड़े लोगों को अच्छी कमाई हो रही है. वहीं, अलतापत्र की सप्लाई छपरा से पूरे बिहार में की जाती है, जहां बड़े-बड़े व्यापारी आकर इसे खरीदते हैं और मुनाफा कमाते हैं. इस क्षेत्र के लोगों के लिए अलता पात्रा ही मुख्य व्यवसाय है, जिससे पूरे वर्ष घर का भरण-पोषण होता है. इसे कपास से बनाया जाता है और सूर्य देव को अर्घ्य देने के अलावा इसे घर, दरवाजे और खिड़कियों पर चिपकाया जाता है.

आक की रुई से बनता है आलता पत्र

आपको बता दें कि जयराम साह ने बताया कि पूर्वज भी अलता पत्र बनाते थे. इसे बनाने में ज्यादा मेहनत लगती है. सबसे पहले आक की फली को तोड़कर रूई निकाली जाती है और फिर रूई में आटा या बेसन मिलाया जाता है. इसके बाद पानी में लाल रंग मिलाकर सभी चीजों को उबाला जाता है, फिर रुई को मिट्टी के बर्तन में गोल आकार दिया जाता है और उसके बाद गोल बर्तन बनाकर घर, छत, फुटपाथ आदि पर बड़ी सावधानी से सुखाया जाता है. इसके अलावा 20-50 अल्ता पत्तों के बंडल तैयार कर व्यापारियों के माध्यम से बाजार में बेचने के लिए भेजे जाते हैं. 20 पीस का बंडल 20 रुपये में बिकता है, जबकि बाजार में यह करीब 40 रुपये में बिकता है. वहीं एक परिवार औसतन 10,000 रुपये की कपास खरीदता है जिससे एक सीजन में 1000 बंडल बनाता है. पूरे सीजन में कुल कमाई करीब 20-25 हजार रुपये होती है, जबकि माल लाने का पैसा बड़े व्यवसायी ही देते हैं. यदि सरकार मशीनें उपलब्ध करा दे और प्रशिक्षण या ब्रांडिंग आदि के लिए कुछ ऋण की व्यवस्था कर दे तो यह काम बड़े पैमाने पर किया जा सकता है.

आलता पत्र का बड़े पैमाने पर होता है निर्माण

इसके साथ ही आपको बता दें कि, इसको लेकर जयराम साह ने बताया कि, लोगों की संख्या बढ़ गई है, जिसके कारण अब अधिक लोग यहां आलता पत्र बनाते हैं. वे कहते हैं कि बिहार, यूपी, असम, बंगाल समेत देश भर में जहां भी लोग छठ पूजा करते हैं, यहीं से आलता पत्र बनता है. वहां इसे व्यापारियों द्वारा खरीदा और बेचा जाता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, ''सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है. उनका यह भी कहना है कि अगर मदद मिल सके तो इस कारोबार को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सकता है.'' साथ ही उनका कहना है कि, ''कारोबार बढ़ाने के लिए लोन लिया जाता है, लेकिन लोन भी नहीं मिल पाता है.''