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राष्ट्रमंडल खेल 2022 से पहले ही भारत को लगा जबरदस्त झटका, देश को होगा ये भारी नुकसान

निशानेबाजी के न होने से निश्चित ही भारत की पदक तालिका पर जबरदस्त फर्क पड़ेगा और साथ ही खिला़ड़ियों से एक बड़ा मंच भी छिन जाएगा, जहां वह अपने आप को परख और साबित कर सकते थे.

Updated on: 21 Jun 2019, 04:26 PM

नई दिल्ली:

राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (सीजीएफ) ने गुरुवार को एक ऐसा फैसला लिया जो भारत के लिए बड़ी निराशा लेकर आया. सीजीएफ ने बर्मिंघम में 2022 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में से निशानेबाजी को हटा दिया है. निशानेबाजी वह खेल है जो राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को हमेशा से ज्यादा से ज्यादा पदक दिलाता है. 2018 में ऑस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में आयोजित किए गए खेलों में भारत ने कुल 66 पदक जीते थे, जिनमें से 16 पदक सिर्फ निशानोबाजी में थे. भारत ने 2018 में इन खेलों में पदक तालिका में तीसरा स्थान भी हासिल किया था.

निशानेबाजी के न होने से निश्चित ही भारत की पदक तालिका पर जबरदस्त फर्क पड़ेगा और साथ ही खिला़ड़ियों से एक बड़ा मंच भी छिन जाएगा, जहां वह अपने आप को परख और साबित कर सकते थे. इस सबंध में जब भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) के सचिव राजीव भाटिया से बात की तो उन्होंने कहा कि संघ ने बहुत कोशिश की कि ऐसा न हो, लेकिन आयोजन समिति अपनी बात पर अड़िग है. भाटिया ने कहा, यह सिर्फ निशानेबाजी के लिए नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए बड़ा झटका है. भारत पदक तालिका में जो ऊपर रहता है, उसका एक बड़ा कारण निशानेबाजी से आने वाले पदक होते हैं.

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2022 राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाजी को बाहर करने को लेकर चर्चा काफी पहले से थी. भाटिया से जब पूछा गया कि इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए थे तो उन्होंने कहा कि कोशिशें बहुत की गईं लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. भाटिया ने कहा, आपको मैं क्या बताऊं कि हमने क्या-क्या नहीं किया. लेकिन आयोजन समिति हमारी सुनने को तैयार नहीं थी. उसने हमसे कहा कि हम निशानेबाजी पर पैसा खत्म नहीं करना चाहते. फायनेंस ही उन्होंने एक मात्र कारण दिया. वो कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं. हमने काफी कुछ किया, हमने इस पर संसद में बहस भी करवाई, लेकिन आयोजन समिति मानने को ही तैयार नहीं है. अब हम कुछ नहीं कर सकते, नहीं है तो नहीं है. वो सुनने को तैयार नहीं हैं, हम वहां जबरदस्ती नहीं जा सकते.

पहले जब इस तरह की बात उठी थी तो एनआरएआई के अध्यक्ष रनिंदर सिंह ने यहां तक कह दिया था कि अगर निशानेबाजी को बाहर किया जाता है तो खेलों का बहिष्कार कर देना चाहिए. इस पर भाटिया से जब प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने कहा, इस पर कोई फैसला लेना है तो सरकार को लेना है या आईओए को लेना है. हम तो बस एक छोटा से एलिमेंट हैं. भाटिया ने कहा, हमें पहले से पता था कि ऐसा होने वाला है. आईओए ने अपनी तरफ से पत्र भी लिखे, लेकिन वो (बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति) मान ही नहीं रहे. हम आईओए से बात कर रहे थे. हम सीधे बात नहीं कर सकते. आईओए ने भी काफी कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ.

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इस संबंध में जब आईओए महासचिव राजीव मेहता से बात करने की कोशिश की गई तो वह फोन पर उपलब्ध नहीं हुए. राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाजी का न होना खिलाड़ियों को भी परेशान करेगा. यह ऐसा मंच है जो निशानेबाजों को अपने आप को साबित करने का मौका देता है. गोल्ड कोस्ट 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन में रजत पदक जीतने वाली महिला निशानेबाज अंजुम मोदगिल ने भी इस पर निराशा जताई लेकिन साथ ही कहा कि यह नहीं तो कुछ और टूनार्मेंट्स सही.

अंजुम ने कहा, हमें काफी समय पहले से पता था कि ऐसा होने वाला है, लेकिन यह बुरा है क्योंकि भारतीय निशानेबाजी के लिए यह काफी बड़ा टूर्नामेंट था. हमारे पास उनके (आयोजन समिति) के फैसले के साथ जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं हैं. संघ ने अपनी तरफ से कोशिश की थी लेकिन जो उच्च स्तर पर लोग हैं उनके सामने कुछ नहीं कर सकते. उनके कुछ कारण है इसिलए वो निशानेबाजी को नहीं ले रहे. इसके अलावा और भी टूनार्मेंट है इसिलए हम उन पर ध्यान देकर बेहतर करने की कोशिश करेंगे. निशानेबाजी ऐसा खेल है जिसने भारत को ओलम्पिक में अभी तक का इकलौता व्यक्तिगत स्वर्ण (2008 बीजिंग, अभिनव बिंद्रा) पदक दिलाया है. इस खेल में भारत का हमेशा से हर जगह वर्चस्व रहा है. राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाजों को न खेलता देख देश के प्रशंसकों को भी निराशा होगी.