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Big Story: धोनी को आईसीसी से दो टूक के मायने, क्या है बलिदान निशान की कहानी

पूर्व कप्तान और विकेट कीपर एमएस धोनी को 2011 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल की मानद उपाधी दी गई थी. कपिलदेव के बाद यह सम्मान हासिल करने वाले धोनी देश के दूसरे क्रिकेटर हैं. धोनी कड़े नियमों वाली पैरा ट्रूपिंग का विधिवत प्रशिक्षण ले चुके हैं और इसीलिए वह बलिदान बैज पहनने के उत्तराधिकारी भी हैं.

Updated on: 08 Jun 2019, 12:51 PM

highlights

  • धोनी ने आगरा में 5 बार आसमान से छलांग लगा हासिल की बलिदान बैज की योग्यता.
  • फिर भी आईसीसी के नियम व्यक्तिगत संदेश दर्शाते लोगो की इजाजत नहीं देता.
  • बलिदान बैज चांदी से बना प्रतीक चिन्ह होता है, जो स्पेशल कमांडो ही धारण करता है.

नई दिल्ली.:

दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के खिलाफ विश्व कप 2019 (ICC World Cup 2019) मिशन का आगाज करते हुए टीम इंडिया ने शानदार जीत दर्ज की थी. हालांकि इस मैच के दौरान वीकेट कीपर और 'फ्लोटर' की भूमिका में उतरे पूर्व कप्तान एमएस धोनी (MS Dhoni) ने विकेट कीपिंग ग्लव्ज पर पैरा मिलिट्री (Para Military) के जिस 'बलिदान' लोगो का इस्तेमाल किया, उस पर अब विवाद खड़ा हो गया है. आईसीसी (ICC) ने अपने नियमों का हवाला देते हुए इस पर आपत्ति जताई है, तो बीसीसीआई (BCCI) ने इससे किसी नियम का उल्लंघन नहीं होने का तर्क देते हुए धोनी का समर्थन किया है. जनरल वीके सिंह, विनोद राय, अभिषेक मनु सिंघवी समेत विभिन्न क्षेत्रों की दिग्गज हस्तियां धोनी के साथ इस मसले पर खड़ी हैं. ऐसे में यह जानना रोचक होगा कि आखिर इस बारे में आईसीसी के नियम क्या कहते हैं और भारतीय सेना के बलिदान बैज का मतलब होता क्या है?

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आईसीसी नियम यह कहता है
सबसे पहले बात करते हैं आईसीसी (ICC) के नियमों की. आईसीसी के नियमों के तहत किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच (International Match) के दौरान कपड़ों या क्रिकेट से जुड़ी अन्य चीजों पर राजनीति (Politics), धर्म (Religion) या नस्लभेदी (Racism) बातों को बढ़ावा देता संदेश नहीं होना चाहिए. साथ ही निजी मैसेज (Personnal Message) देते प्रतीक को नहीं धारण किया जा सकता है. इसमें कॉमर्शियल ब्रांड को दिखाते टैटू तक शामिल हैं. आईसीसी के नियम कहते हैं किसी भी देश के क्रिकेट खिलाड़ी अपनी पोशाक और क्रिकेट से जुड़े अन्य साज-ओ-सामान पर कॉमर्शियल लोगो का इस्तेमाल अपने देश के क्रिकेट बोर्ड (Cricket Board) की मंजूरी के साथ कर सकते हैं. इस कड़ी में धोनी ने बीसीसीआई या आईसीसी से किसी किस्म की पूर्व अनुमति नहीं ली थी.

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क्या होता है बलिदान बैज
भारतीय सेना (Indian Army) के प्रशिक्षित पैरा कमांडो (Para Commando) ही 'बलिदान' बैज का इस्तेमाल कर सकते हैं. एक लिहाज से 'बलिदान' निशान पैरा स्‍पेशल फोर्सेज का सर्वोच्च सम्‍मान (Supreme Honour) है. इसे धारण करने की योग्यता भी आसानी से नहीं मिलती है. इसे पहनने की योग्‍यता हासिल करने के लिए कमांडो को पैराशूट रेजीमेंट (Parachute Regiment) के हवाई जंप के नियमों पर खरा उतरना पड़ता है. गौरतलब है कि अगस्‍त 2015 में धोनी ने आगरा में पांच बार छलांग (Sky Diving) लगाकर 'बलिदान' बैज को पहनने की योग्‍यता हासिल की थी. बावर्दी कमांडो की कैप पर चांदी से बना बलिदान का निशान होता है.

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कैसा होता है बलिदान निशान
शुद्ध चांदी (Silver) से बने 'बलिदान' निशान में दो पंखों (Wings) के बीच तलवार (Sword) होती है. साथ ही नीचे देवनागरी लिपि में 'बलिदान' लिखा होता है. अगर इसकी आकृति पर गौर करें तो यह बैज ब्रिटिश स्‍पेशल फोर्सेज (British Special Forces) के निशान जैसा ही है. इसे बलिदान कहने के पीछे की कहानी भी रोचक है. वास्तव में यह शब्‍द पैराशूट रेजीमेंट के ध्येय वाक्य से लिया गया है. पैरा स्‍पेशल फोर्सेज का ध्येय वाक्य है, 'शौर्यम् दक्षे युद्धम्, बलिदान परमो धर्म:'. इसी में से बलिदान शब्द लिया गया है. यही नहीं पैरा स्‍पेशल फोर्सेज का मोटो भी काफी प्रेरक है. अंग्रेजी में इसे 'मैन अपार्ट, एवरी मैन एन एम्परर' यानी इसका हिंदी अनुवाद हुआ भीड़ से अलग भी आप बादशाह हैं होता है.

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आजादी से पहले की है पैरा स्‍पेशल फोर्सेज
पैरा स्‍पेशल फोर्सेज का इतिहास आजादी (Independence) से पहले का है. वास्तव में भारतीय पैराशूट यूनिट दुनिया की चंद सबसे पुरानी पैराशूट यूनिटों में से एक है. इसका गठन 1941 में 50वीं भारतीय पैराशूट ब्रिगेड बतौर हुआ था. हालांकि पैराशूट रेजीमेंट का गठन 1952 में फिर से किया गया. हालांकि इस रेजीमेंट को लोकप्रियता या सार्वजनिक पहचान 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान मिली. पैराशूट रेजिमेंट (Parachute Regiment)के इतिहास के मुताबिक तत्कालीन ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स के मेजर मेघ सिंह ने सेना की अलग-अलग टुकड़ियों से जवानों को पैराशूट रेजीमेंट के लिए भर्ती किया और प्रशिक्षित किया.

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अब तक के खास अभियान
भारतीय सेना की खासतौर पर प्रशिक्षित ईकाई होती है पैरा स्पेशल फोर्स. आजादी के बाद से अब तक कई मौकों पर देश के लिए पैरा स्पेशल फोर्स ने काम किया है. इसने पाकिस्तान युद्ध (1971), ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) (Operation Bluestar), लिट्टे (LTTE) के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन (1987), करगिल युद्ध (1999) (Kargil War) में हिस्सा लिया था. इसके अलावा 2016 में पीओके में हुए सर्जिकल स्ट्राइक में भी अहम भूमिका थी.