Swami Dayanand Saraswati: स्वामी दयानंद सरस्वती कौन थे? जानिए उनके बारे में 5 खास बातें
Swami Dayanand Saraswati: स्वामी दयानंद सरस्वती ने 'आर्य समाज' की स्थापना की, जो समाज में समाजिक असमानता, अंधविश्वास और अन्य परंपरागत अध्यात्मिक अनुचितताओं का खंडन करता है.
नई दिल्ली:
Swami Dayanand Saraswati: स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) आर्य समाज के संस्थापक थे, जो भारत में एक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन था. वह एक प्रमुख हिंदू सुधारक थे जिन्होंने वेदों की वापसी और मूर्तिपूजा और जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई थी. स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय समाज के प्रमुख समाज सुधारक, धर्म नेता और विद्वान थे. उन्होंने भारतीय समाज में समाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए काम किया. उन्होंने वेदों का अध्ययन किया और वेदों के शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया. स्वामी दयानंद ने 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने वेदों की महत्ता और उनके विचारों को विस्तार से व्याख्या की. उनका प्रमुख कार्य भारत में हिंदू समाज को पुनर्जागरूक करना था. उन्होंने वेदों को आधुनिक विज्ञान और तकनीक के अनुसार व्याख्या किया और हिंदू धर्म में सुधार के लिए अभियान चलाया. स्वामी दयानंद सरस्वती ने 'आर्य समाज' की स्थापना की, जो समाज में समाजिक असमानता, अंधविश्वास और अन्य परंपरागत अध्यात्मिक अनुचितताओं का खंडन करता है. उनका योगदान हिंदू धर्म को जीवनीय, आत्मनिर्भर और विश्वासी बनाने में था.
स्वामी दयानंद सरस्वती के बारे में 5 खास बातें:
वेदों की वापसी: स्वामी दयानंद सरस्वती का मानना था कि वेद ईश्वर की सर्वोच्च वाणी हैं और हिंदुओं को वेदों की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए. उन्होंने वेदों का हिंदी में अनुवाद भी किया ताकि वे आम लोगों के लिए सुलभ हो सकें.
मूर्तिपूजा का विरोध: स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे. उनका मानना था कि मूर्तिपूजा अंधविश्वास है और ईश्वर की पूजा केवल आध्यात्मिक रूप से ही की जानी चाहिए.
जाति व्यवस्था का विरोध: स्वामी दयानंद सरस्वती जाति व्यवस्था के भी विरोधी थे. उनका मानना था कि सभी मनुष्य समान हैं और किसी भी जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए.
महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण: स्वामी दयानंद सरस्वती महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे. उनका मानना था कि महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा और अधिकार प्राप्त होने चाहिए.
शिक्षा का प्रसार: स्वामी दयानंद सरस्वती शिक्षा के प्रसार के लिए भी प्रयासरत थे. उन्होंने भारत में कई स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की ताकि लोगों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल सके.
इन 5 बड़े संदेशों के अलावा, स्वामी दयानंद सरस्वती ने सामाजिक सुधार, राष्ट्रवाद और धार्मिक सहिष्णुता जैसे अन्य मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए. उनके विचारों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने भारत में आधुनिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया. स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान देशभक्त और समाज सुधारक थे. उन्होंने भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधारों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आर्य समाज
आर्य समाज एक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन है जिसकी स्थापना 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी. इस आंदोलन का उद्देश्य वेदों की वापसी और हिंदू धर्म में मौजूद सामाजिक बुराइयों को दूर करना था. आर्य समाज ने महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण, जाति व्यवस्था के उन्मूलन और मूर्तिपूजा के खिलाफ लड़ाई के लिए काम किया.
आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांत
- - वेद ईश्वर की सर्वोच्च वाणी हैं.
- - एक ही ईश्वर है और उसकी पूजा की जानी चाहिए.
- - मूर्तिपूजा अंधविश्वास है.
- - जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है.
- - महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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