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Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा पर जरूर पढ़ें ये कथा, मां लक्ष्मी खुशियों से भर देंगी आपकी झोली

Sharad Purnima Vrat Katha: मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास रखने के साथ ही इस दिन कथा भी जरूर पढ़नी चाहिए. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की कथा के बारे में.

Updated on: 28 Oct 2023, 04:15 PM

नई दिल्ली:

Sharad Purnima Vrat Katha: हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का व्रत किया जाता है. इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. आज शरद पूर्णिमा का व्रत है. इसके साथ ही आज साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भी है. हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का काफी महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा करने और व्रत करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है.  मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास रखने के साथ ही इस दिन कथा भी जरूर पढ़नी चाहिए. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की कथा के बारे में. 

शरद पूर्णिमा व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहुकार रहता था और उसकी दो पुत्रियां थीं. साहुकार की दोनों पुत्रियों को पूजा-पाठ में अधिक मन लगता है और दोनों पूर्णिमा व्रत रखती थीं. एक तरफ जहां बड़ी बेटी हमेशा अपना व्रत पूरा करती थी तो वही छोटी बेटी व्रत अधूरा ही करती थी. फिर कुछ समय के बाद दोनों बहनों की शादी हो गई.

शादी के बाद बड़ी बेटी ने स्वस्थ संतानों को जन्म दिया जबकि छोटी बेटी की संताने पैदा होने के बाद मर जाती थीं. इस वजह से परेशान होकर साहुकार की छोटी बेटी पंडित के पास पहुंची. पंडित ने उसे कहा कि तुमने पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा किया. यही वजह की तुम्हारी संताने जन्म लेते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती हैं. 

पंडित की बात सुनने के बाद साहुकार बेटी पूर्णिमा का पूरा पूरा किया जिसके बाद उसे एक स्वस्थ लड़का पैदा हुआ. लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया.

बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा. यह देखकर बड़ी बहन हैरान हो गई और कहा कि तुमने अपने पुत्र को यहां क्यों सुला दिया. अगर वह मर जाता तो मुझ पर कलंक लग जाता. क्या तुम ऐसा चाहती थी. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इसके बाद दोनों बहनों ने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और सभी नगर वासियों को शरद पूर्णिमा व्रत की महिमा और पूरी विधि बताई.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)

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