Navratri 2020 1st Day: नवरात्रि के पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा, जानें कथा और मंत्र
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री को पहला रूप माना गया है. मां शैलपुत्री की पूजा से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है.
नई दिल्ली:
'या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:' आज से पावन पर्व शारदीय नवरात्रि का त्योहार प्रारंभ हो चुका है. इसी के साथ मां दुर्गा अपने भक्तों के घर सिंह पर सवार होकर पधारेंगी. नवरात्रि 17 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर तक सभी भक्त माता रानी की पूजा-अर्चना में लीन रहेंगे. मंदिर, पंडालों से लेकर घरों तक में नवरात्र की धूम और रौनक रहेगी.
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मां शैलपुत्री के माथे पर अर्ध चंद्र होता है, इसलिए मान्यता है कि मां शैलपुत्री चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करती हैं. मां शैलपुत्री की आराधना से व्यक्ति चंद्रमा के सभी प्रकार के दोषों और दुष्प्रभाव से बच सकता है.
मान्यता है कि नवरात्र में पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को चंद्र दोष से मुक्ति मिल जाती है. हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा.
मां शैलपुत्री का वाहन वाहन वृषभ है और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है. इन्हें पार्वती का स्वरूप भी माना गया है. मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी.
मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत भाता है इसलिए मान्यता है कि नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग का भोग लगाया जाता है. तो आप आज चावल, मखाना या साबूदाना की खीर का भोग मां को लगा सकते हैं.
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मां शैलपुत्री के मंत्र-
- ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
- वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
- या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
- वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
माता शैलपुत्री की कथा-
पौराणिक कथा के मुताबिक, दक्षप्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया. उसमें समस्त देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया. सती यज्ञ में जाने के लिए आतुर हो उठीं. भगवान शिव ने बिना निमंत्रण यज्ञ में जाने से मना किया लेकिन सती के आग्रह पर उन्होंने जाने की अनुमति दे दी. महायज्ञ में पहुंचीं देवी सती ने वहां महादेव के प्रति अपमान का भाव महसूस किया. स्वयं उनके पिता दक्ष से भी उन्होंने महादेव के बारे में अपमानजनक शब्द सुने. समस्त देवी-देवताओं के बीच अपने पति के अपमान की बातें सुनकर आहत हुईं देवी सती ने उसी महायज्ञ में स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया. देवी सती के भस्म होने पर अति क्रोधित हुए महादेव ने उस यज्ञ को ही विध्वंस कर दिया. बताया जाता है कि देवी सती ने ही शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में दोबारा जन्म लिया और उनका नाम शैलपुत्री पड़ा.
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