Mahavir Jayanti 2019: जानिए भगवान महावीर के 5 सिद्धांतों और उनकी माता के 16 सपनों का रहस्य
भगवान महावीर की जयंती (Mahavir Jayanti 2019) चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है. यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के मौके पर मनाया जाता है.
नई दिल्ली:
भगवान महावीर की जयंती (Mahaveer Jayanti 2019) चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है. यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के मौके पर मनाया जाता है. यह जैन समुदाय के लोगों का सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है. भगवान महावीर का जन्म 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर में हुआ था. उनके बचपन का नाम वर्धमान था जो उनके जन्म के बाद से राज्य की होने वाली तरक्की को लेकर दिया गया था.
जैन ग्रंथों के अनुसार 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण प्राप्त करने के 188 सालों बाद महावीर जी का जन्म हुआ था. उन्होंने ही अहिंसा परमो धर्म: का संदेश दुनिया को दिया था. जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तपस्या करके अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी. इसलिए उन्हें जिन, मतलब विजेता कहा जाता है.
दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने कठिन दिगंबर चर्या को अंगीकार किया और बिना कपड़ों के रहे. हालांकि इस तथ्य को लेकर श्वेतांबर संप्रदाय के लोगों में मतभेद हैं. उनका मानना है कि भगवान महावीर दीक्षा के बाद कुछ ही समय तक निर्वस्त्र रहे. उन्होंने दिगंबर अवस्था में केवल ज्ञान की प्राप्ति की. यह भी कहा जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल के दौरान मौन थे.
महावीर जी के पांच सिद्धांत
ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद, भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत लोगों को बताया. ये पांच सिद्धांत समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति के लिए हैं. ये पांच सिद्धांत इस प्रकार हैं. पहला है अहिंसा, दूसरा सत्य, तीसरा अस्तेय, चौथा ब्रह्मचर्य और पांचवा व अंतिम सिद्धांत है अपरिग्रह. इसी तरह कहा जाता है कि महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता जी ने 16 स्वप्न देखे थे, जिनके स्वप्न का अर्थ राजा सिद्धार्थ द्वारा बतलाया गया है.
महारानी त्रिशला के स्वप्न और उनके अर्थ
- त्रिशला ने सपने में चार दांतों वाला हाथी देखा, सिद्धार्थ द्वारा जिसका अर्थ बताया गया था कि यह बालक धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करेगा.
- दूसरे सपने में त्रिशला ने एक वृषभ देखा जो बेहद ही ज्यादा सफेद था. इसका अर्थ है कि बालक धर्म गुरू होगा और सत्य का प्रचार करेगा.
- सिंह, जिसका अर्थ था कि बालक अतुल पराक्रमी होगा.
- सिंहासन पर स्थित लक्ष्मी, जिसका दो हाथी जल से अभिषेक कर रहे हैं, इसका अर्थ बताया गया कि बालक के जन्म के बाद उसका अभिषेक सुमेरू पर्वत पर किया जाएगा.
- दो सुगंधित फूलों की माला, जिसका अर्थ था की बालक यशस्वी होगा.
- पूर्ण चंद्रमा, जिसका अर्थ था कि इस बालक से सभी जीवों का कल्याण होगा.
- सूर्य, जिसका अर्थ बताया गया कि यह बालक अंधकार का नाश करेगा.
- दो स्वर्ण कलश, जिसका अर्थ था निधियों का स्वामी.
- मछलियों का युगल जिसका अर्थ था अनंत सुख प्राप्त करने वाला.
- सरोवर, जिसका अर्थ था अनेक लक्षणों से सुशोभित.
- समुद्र, जिसका मतलब था कि बालक केवल ज्ञान प्राप्त करेगा.
- स्वप्न में एक स्वर्ण और मणि जड़ित सिंहासन, जिसका अर्थ था कि बालक जगत गुरू बनेगा.
- देव विमान भी महारानी त्रिशला ने देखा, जिसका मतलब था कि बालक स्वर्ग से अवतीर्ण होगा.
- नागेंद्र का भवन, जिसका मतलब था कि बालक अवधिज्ञानी होगा.
- चमकती हुई रत्नराशि, जिसका अर्थ होगा कि बालक रत्नत्रय, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र धारण करने वाला होगा.
- महारानी त्रिशला ने निर्धूम अग्नि को भी स्वप्न में देखा जिसका अर्थ था कि बालक कर्म रूपी इंधन को जलाने वाला होगा. जैन ग्रंथों के मुताबिक महावीर के जन्म के बाद देवों के राजा इंद्र ने उनका सुमेरु पर्वत पर क्षीर सागर के जल से अभिषेक किया था.
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