राजस्थान का सियासी ट्रेंड, रिपीट चेहरों को चुनाव में नहीं मिलती तवज्जो
भाजपा ने तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए 131 की सूची 85 को रिपीट किया है. हालांकि राजस्थान का सियासी इतिहास कुछ अलग ही तस्वीर पेश कर रहा है. चेहरों का रिपीटीशन किसी भी पार्टी को रास नहीं आया.
जयपुर:
राजस्थान के सियासी रण में योद्धाओं का उतरना शुरू हो गया है. भाजपा ने पहली सूची जारी कर दी है और देर रात तक कांग्रेस की सूची आने की भी संभावना है. भाजपा ने तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए 131 की सूची 85 को रिपीट किया है. एंटी एनकंबेंसी और भितरघात से घबराई भाजपा ने पुराने चेहरों के ही दम पर चुनाव का सामना करने की रणनीति बनाई है. हालांकि राजस्थान का सियासी इतिहास कुछ अलग ही तस्वीर पेश कर रहा है. चेहरों का रिपीटीशन किसी भी पार्टी को रास नहीं आया. 2003 से ही राजस्थान की सियासत में पुराने चेहरे जनता को अधिक रास नहीं आये. एक रिपोर्ट:
बीजेपी की पहली सूची में 90 चेहरे रिपीट
सत्ता के संग्राम में जीत के लिए सही टिकट वितरण का अहम रोल होता है. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां गहन मनन के बाद टिकटों का एलान कर रही हैं. भाजपा की पहली सूची में 94 चेहरों को रिपीट किया गया है. सूची को लेकर भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि यह सूची सभी सर्वे,राय
मशविरा के आधार पर बनी है.
70 फीसद विधायक हार जाते हैं चुनाव
सत्ताधारी पार्टी जब भी चुनाव लड़ती है तो टिकट रिपीट करने पर 70 फीसदी विधायक हार जाते हैं. सियासत में शह-मात का यह ट्रेंड 1990 से कायम है. 2013 में कांग्रेस ने 105 टिकट उन लोगों को दिए, जिन्हें 2008 में भी दिए गए थे. इनमें से 91 को हार का सामना करना पड़ा. सिर्फ 14 ही जीत सके. रिपीट किए गए 75 विधायक में से 70 हार गए. सिर्फ
5 ही जीते. कांग्रेस ने 31 ऐसे लोगों
को टिकट दिया, जो पिछले चुनाव में हार गए थे. इनमें 22 प्रत्याशी 2013 में भी हार गए. सिर्फ 9 को ही जीत मिली. वहीं भाजपा ने 2008 में चुनाव लड़ चुके 68 लोगों को 2013 में भी टिकट दिया. इनमें से सिर्फ 28 लोग ही जीत सके जबकि इन चुनावों में भाजपा की जबरदस्त लहर थी. हारने वालों में ज्यादातर विधायक और मंत्री थे.
गहलोत सरकार में मंत्री रहे अधिकतर विधायक 2013 का चुनाव हार गए. तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मंत्री महेंद्रजीत मालवीय, गोलमा देवी, बृजेंद्र ओला और राजकुमार शर्मा के अलावा पूरा मंत्रिमंडल हार गया. गहलोत मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे 31 नेता सीट नहीं बचा पाए. इनमें दुर्रु मियां, भरतसिंह, बीना काक, शांति धारीवाल, भंवरलाल मेघवाल, ब्रजकिशोर शर्मा, परसादीलाल, डॉ. जितेंद्र सिंह, राजेंद्र पारीक, हेमाराम और हरजीराम बुरड़क जैसे दिग्गज नेता थे. असल में एंटी इन्कमबेंसी विधायकों से ज्यादा खतरनाक मंत्रियों के लिए साबित हुई.
11वीं विधानसभा- 1998-2003
1998 में भाजपा के 33 विधायक जीते. 2003 में इनमें से 19 विधायक ही दुबारा जीते.
12वीं विधानसभा- 2003-2008
इससे पहले कांग्रेस की सरकार थी. उसके 153 विधायक थे और भाजपा के 26 विधायक ही जीते. इसके बाद 2003 में भाजपा की सरकार बनी और कांग्रेस के सिर्फ 56 विधायक
ही जीते.
13वीं विधानसभा- 2008-2013
भाजपा सरकार थी. 120 विधायक थे. 2013 के चुनाव में भाजपा के 78 विधायक ही चुन कर आए. इसमें दोबारा चुनकर आने वालों की संख्या सिर्फ 17 थी.
14वीं विधानसभा- 2013
इससे पहले कांग्रेस के 102 विधायक थे। 2013 में 21 ही चुनकर आए जिनमें दोबारा चुनकर आने वाले केवल 7 ही थे.
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