वो नारे जिनके चलते चली गईं सरकारें, आप भी जानें कितना था इनका असर
हर चुनावी नारा जुमला नहीं होता. नारों की ताक़त से उम्मीदवारों का खेल बनता और बिगड़ता है. नारों से न केवल सरकारें बदली हैं बल्कि सत्तारूढ़ दलों द्वारा गढ़े गए नारे उनके लिए आत्मघाती भी साबित हुए हैं.
नई दिल्ली:
हर चुनावी नारा जुमला नहीं होता. नारों की ताक़त से उम्मीदवारों का खेल बनता और बिगड़ता है. नारों से न केवल सरकारें बदली हैं बल्कि सत्तारूढ़ दलों द्वारा गढ़े गए नारे उनके लिए आत्मघाती भी साबित हुए हैं. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक,नारों की बदौलत सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे. आज हम ऐसे ही नारों की बात करेंगे जिनकी वजह से कइयों की सत्ता पलट गई थी.
नारे जो बच्चों की ज़ुबान पर चढ़ गए
16वीं लोकसभा यानी वर्ष 2014 का आम चुनाव. इसमें ‘अबकी बार मोदी सरकार’, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी आने वाले हैं’ जैसे नारे बच्चों की ज़ुबान पर चढ़ गए थे. बीजेपी का अच्छे दिन का नारा कांग्रेस के ‘हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की’ पर भरी पड़ गया. इन नारों का असर ये हुआ कि केंद्र की सत्ता पर 10 साल से काबिज मनमोहन सिंह की सरकार को जनता ने नकार दिया.
फेल हो गया कांग्रेस का ‘हर हाथ शक्ति हर हाथ तरक्की’ का नारा
कांग्रेस द्वारा दिया गया एक दूसरा नारा ‘जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से’, सुपर फ्लॉप हुआ.जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत से दिल्ली की गद्दी सौंप दी. 'सबका साथ सबका विकास' का नारा भी बीजेपी के लिए रामबाण साबित हुआ.
सहानुभूति की ऐसी लहर कि मिल गई दो-तिहाई बहुमत
नारों के जबरदस्त असर की जब भी बात होगी तो 1984 का लोकसभा चुनाव का जिक्र जरूर होगा. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया ‘इंदिरा तेरी यह कुर्बानी याद करेगा हिंदुस्तानी.’ सहानुभूति के इस नारे का जबर्दस्त असर रहा और जनता की पूरी सहानुभूति कांग्रेस को मिल गई और हाथ लगा दो तिहाई बहुमत. जब राजीव गांधी पहला चुनाव लड़े तो उनका नारा था ‘उठे करोड़ों हाथ हैं राजीव जी के साथ हैं’ इसका पार्टी को खूब लाभ मिला.
कांग्रेस के चर्चित नारे
•‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा’
•‘सोनिया नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है’
•‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’
•‘आम आदमी के बढ़ते कदम हर कदम पर भारत बुलंद’
•‘कांग्रेस को लाना है देश को बचाना है’
•‘उठे हजारों हाथ सोनिया जी के साथ’
अबकी बारी, अटल बिहारी ने कांग्रेस से छीनी सत्ता
1996 में भाजपा ने ‘अबकी बारी अटल बिहारी’ के नारे से कांग्रेस को ऐसा जोर का झटका दिया कि अटल बिहारी वाजपेयी सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे. 1996 में वाजपेयी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों से सत्ता में आई भाजपा 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ के अपने ही नारे में चमक खो बैठी और सत्ता से दूर हो गई.
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'इंडिया शाइनिंग’ का उल्टा पड़ा दांव
2004 में ही भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ पर जोर दिया. नारे का लोगों पर इतना असर हुआ कि उसने कांग्रेस को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया . बीजेपी ने भी सत्ता तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को चुभने वाले नारे गढ़े-‘ये देखो इंदिरा का खेल, खा गई शक्कर पी गई तेल, ‘आपका वोट राम के नाम’, हम सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘कल्याण सिंह कल्याण करो मंदिर का निर्माण करो’, ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘ये तो केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’. इतिहास गवाह है कि इन नारों ने बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचायाल..
विधानसभा चुनावों में इन नारों ने बदली थी सत्ता
तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने 2011 में नारा दिया, ‘मां माटी और मानुस’. इस नारे का इतना असर हुआ कि पश्चिम बंगाल में कई दशकों से काबिज़ वाम दलों के हाथ से सत्ता निकल गई,इसके सहारे ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल हुई. बात अगर बिहार की करें तो जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’, का ये नारा इतना गूंजा की लालू यादव कई साल तक सत्ता में बने रहे.
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अब बात करते हैं इन चुनावों की.पांच राज्यों में दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. प्रचार अभियान भी जोर पकड़ रहा है लेकिन नारे अभी नदारद हैं. चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में अबकी बार आदिवासी सरकार का नारा जरूर उठा था लेकिन अभी इसकी चर्चा भी नहीं हो रही है. वही राजस्थान में भी कुछ महीनों पहले 'मोदी तुझसे बैर नहीं पर वसुंधरा तेरी खैर नहीं' का नारा उछला था, लेकिन अभी यह सुनाई नहीं दे रहा. उम्मीद है जैसे जैसे चुनाव प्रचार तेज होगा कुछ नए नारे सुनने को मिलेंगे.
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