प्रख्यात कलाकार पद्म विभूषण सतीश गुजराल का 94 की आयु में दिल्ली में निधन
बहुमुखी प्रतिभा संपन्न सतीश गुजराल अपनी पेंटिंग्स के लिए जाने जाते थे. वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल (Indra Kumar Gujral) के छोटे भाई थे.
highlights
- पद्म विभूषण से सम्मानित सतीश गुजराल का कल रात निधन.
- पिछले काफी दिनों से चल रहे थे अस्वस्थ. बहुमुखी प्रतिभा संपन्न.
- डिएगो रिवेरा और सिक्वेरोस के साथ पढ़ने के लिए मैक्सिको गए थे.
नई दिल्ली:
भारत के मशहूर चित्रकार, वास्तुकार और लेखक सतीश गुजराल (Satish Gujral) का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है. बहुमुखी प्रतिभा संपन्न सतीश गुजराल अपनी पेंटिंग्स के लिए जाने जाते थे. वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल (Indra Kumar Gujral) के छोटे भाई थे. सतीश गुजराल का जन्म 25 दिसंबर 1925 में ब्रिटिश इंडिया के झेलम (Jhelum) (अब पाकिस्तान) में हुआ. लाहौर स्थित मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में पांच सालों तक उन्होंने विभिन्न विषयों में शिक्षा हासिल की. इस दौरान उन्होंने ग्राफिक डिजायनिंग का भी अध्ययन किया. गुजराल की कलाकृतियों में उनके शुरुआती जीवन के उतार-चढ़ाव की झलक देखने को मिलती है.
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पद्म विभूषण समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित
पद्म विभूषण से सम्मानित गुजराल वास्तुकार, चित्रकार, भित्तिचित्र कलाकार और ग्राफिक कलाकार थे. उनके प्रमुख कामों में दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर की दीवार पर अल्फाबेट भित्तिचित्र शामिल हैं. उन्होंने दिल्ली में बेल्जियम दूतावास को भी डिजाइन किया था. सतीश गुजराल का कला के क्षेत्र में अमुल्य योगदान के देने के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. यही नहीं, भारत सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 1999 में पद्म विभूषण भी प्रदान किया जा चुका है. अपनी जिंदगी में कठिन संघर्षों के बाद भी सतीश गुजराल ने कभी हार नहीं मानी. इसी का नतीजा था की उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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झंझावतों भरा जीवन
आठ साल की उम्र में पैर फिसलने के कारण इनकी टांगे टूट गई और सिर में काफी चोट आने के कारण इन्हें कम सुनाई पड़ने लगा. परिणाम स्वरूप लोग सतीश गुजराल को लंगड़ा, बहरा और गूंगा समझने लगे. सतीश चाहकर भी आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए. कानों में सुनने से दिक्कत के चलते कई स्कूलों ने उनका ए़डमिशन अपने स्कूल में करने से साफ इनकार कर दिया. एक दिन उन्होंने पक्षियों को पेड़ पर सोते हुए देखा. इसके बाद उन्होंने इस छवि की पेंटिंग बनाई. यह उनका चित्रकारी करने की तरफ पहला रुझान था. इसके बाद वर्ष 1939 में उन्होंने लाहौर में आर्ट स्कूल में एडमिशन लिया. वर्ष 1944 में वह मुंबई चले गए. जहां उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में एडमिशन लिया. बीमारी के कारण सन 1947 में उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.
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श्रद्धांजलियों का तांता
कला जगत से ताल्लुक रखने वाले रंजीत होसकोटे ने बताया कि गुजराल का बृहस्पतिवार देर रात यहां निधन हो गया. उन्होंने बताया, 'वह पिछले कुछ वक्त से अस्वस्थ थे.' होसकोटे ने अपनी संवेदनाएं जताते हुए ट्वीट किया, '1950 की शुरुआत में पेरिस या लंदन गए उनके कई साथियों से अलग गुजराल डिएगो रिवेरा और सिक्वेरोस के साथ पढ़ने के लिए मैक्सिको शहर गए थे. गुजराल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें.'
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