सोहराबुद्दीन मामला: 21 पुलिसकर्मियों सहित सभी 22 आरोपी बरी, पढ़ें पूरा Timeline
सीबीआई के विशेष जज एसजे शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष कथित साजिश को साबित करने के लिए किसी भी प्रकार के दस्तावेजी और ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा है.
नई दिल्ली:
गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख (Sohrabuddin fake encounter case), उसकी बीवी कौसर बी और सहयोगी तुलसी प्रजापति के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 21 पुलिसकर्मियों समेत सभी 22 आरोपियों को मुंबई स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को बरी कर दिया. सीबीआई के विशेष जज एसजे शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष कथित साजिश को साबित करने के लिए किसी भी प्रकार के दस्तावेजी और ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा है. आरोपियों में 21 गुजरात और राजस्थान पुलिस के कनिष्ठ स्तर के कर्मी हैं. 22वां आरोपी गुजरात के फार्म हाउस का मालिक है जहां कथित रूप से हत्या किये जाने से पहले शेख और कौसर बी को अवैध हिरासत में रखा गया था.
कथित फर्जी मुठभेड़ में घटनाक्रम हैं: (Sohrabuddin fake encounter case)
22 नवंबर, 2005 : हैदराबाद से बस से सांगली लौटने के दौरान पुलिस की एक टीम ने उन्हें रोक कर पूछताछ की और हिरासत में ले लिया. शेख और उसकी पत्नी को एक वाहन में रखा गया जबकि प्रजापति दूसरी गाड़ी में.
22 से 25 नवंबर 2005 : शेख और कौसर बी को अहमदाबाद के पास एक फार्म हाउस में रखा गया. प्रजापति को उदयपुर भेजा गया जहां उसे सुनवाई के लिये एक जेल में रखा गया.
26 नवंबर 2005 : गुजरात और राजस्थान पुलिस की संयुक्त टीम ने कथित फर्जी मुठभेड़ में शेख को मार दिया.
29 नवंबर 2005 : कौसर बी की भी पुलिस ने कथित रूप से हत्या कर दी. उसके शव को जला दिया गया.
27 दिसंबर 2006 : राजस्थान और गुजरात पुलिस की संयुक्त टीम प्रजापति को उदयपुर केंद्रीय कारागार से लेकर आयी और गुजरात-राजस्थान सीमा पर सरहद छपरी के पास एक मुठभेड़ में कथित तौर पर मार दिया.
2005-2006 : शेख परिवार ने मुठभेड़ मामले में जांच के लिये उच्चतम न्यायालय का रुख किया और कौसर बी का पता मांगा. उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि गुजरात राज्य सीआईडी को मामले में जांच शुरू करने का निर्देश दिया.
30 अप्रैल 2007 : गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रिपोर्ट पेश कर बताया कि कौसर बी की मौत हो गयी है और उसके शव को जला दिया गया है.
जनवरी 2010 : उच्चतम न्यायालय ने मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा.
23 जुलाई 2010 : सीबीआई ने मामले में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों सहित 38 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया.
25 जुलाई 2010 : सीबीआई ने मामले में अमित शाह को गिरफ्तार किया.
27 सितंबर 2012 : उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख-कौसर बी के कथित मुठभेड़ मामले में सुनवाई गुजरात से मुंबई स्थानांतरित की और सीबीआई से निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने को कहा.
30 दिसंबर 2014 : मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले से अमित शाह को आरोपमुक्त कर दिया. इसके बाद मामले में कटारिया और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों समेत 15 आरोपियों को भी आरोपमुक्त कर दिया गया.
नवंबर 2015 : शेख के भाई रुबाबुद्दीन ने मामले में अमित शाह की आरोपमुक्ति को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया. उसी महीने उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया कि वह मामले में सुनवाई आगे नहीं बढ़ाना चाहते इसलिए वह अपनी याचिका वापस लेना चाहते हैं.
अक्टूबर 2017 : मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये.
नवंबर 2017 : सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस जे शर्मा ने मामले में सुनवाई शुरू की. अभियोजन पक्ष ने 210 लोगों की गवाही ली जिनमें से 92 मुकर गये.
सितंबर 2018 : बंबई उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों डी जी वंजारा, राजकुमार पांडियन, एन के अमीन, विपुल अग्रवाल, दीनेश एमएन और दलपत सिंह राठौड़ को आरोपमुक्ति कायम रखी.
पांच दिसंबर 2018 : अदालत ने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के वकीलों की ओर से अंतिम दलीलें पूरी होने के बाद 21 दिसंबर 2018 को फैसले के लिये मामला बंद कर दिया.
और पढ़ें- 1984 दंगा : आत्मसमर्पण का समय बढ़ाने की सज्जन कुमार की याचिका खारिज
21 दिसंबर 2018 : अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने में नाकाम रहने पर अदालत ने मामले में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया.
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