इजराइली हथियारों से खत्म होगा पाकिस्तान का खेल
इजराइल के बहुत से हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल कश्मीर में भी किया जाता है और कई ऐसे भी हथियार हैं जिनका भविष्य में कश्मीर में इस्तेमाल किया जा सकता है.
नई दिल्ली:
इजराइल के बहुत से हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल कश्मीर में भी किया जाता है और कई ऐसे भी हथियार हैं जिनका भविष्य में कश्मीर में इस्तेमाल किया जा सकता है. परंपरागत सैन्य उपकरणों के साथ सीमा पर बाड़ लगाने से संबंधित तकनीक का भी भारत, इसराइल से निर्यात कर रहा है. इसका इस्तेमाल जम्मू कश्मीर के लाइन ऑफ कंट्रोल पर किया गया है. पूर्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नवंबर 2014 के इसराइली दौरे के समय नेतन्याहू ने कहा था कि इसराइल भारत के साथ सीमा सुरक्षा की तकनीकों को शेयर के लिए तैयार और इच्छुक है. सीमा पार से घुसपैठ के बढ़ते मामले को देखते हुए इस दिशा में ज़्यादा सहयोग की उम्मीद है.
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Skunk : स्कंक का इस्तेमाल इजराइल डिफेंस फोर्स प्रदर्शन कर रही उग्र भीड़ को भगाने के लिए करती है. इजराइल इसे अन्य देशों को भी बेचता है, जिसका इस्तेमाल वहां पर प्रदर्शनकारियों को भगाने के लिए किया जाता है. यह हथियार रबर बुलेट और टीयर गैस जैसे हथियारों से भी अधिक असरदार है. भारत ने भी इजराइल से यह हथियार खरीदा है. Skunk हथियार से एक बदबूदार तरल पदार्थ भीड़ पर फेंका जाता है. इसे बेकिंग पाउडर, यीस्ट और कुछ अन्य चीजों से बनाया जाता है, जो जहरीला नहीं होता है और पूरी तरह से ऑर्गेनिक भी है. इस हथियार का नाम स्कंक नाम के एक जानवर पर पड़ा है, जो खुद को खतरे में देखते हुए अपने बचाव के तौर पर पीले रंग का ऐसा पदार्थ छोड़ता है, जिससे खतरनाक बदबू आती है. इस बदबू की वजह से दुश्मन भाग जाता है. हालांकि, भारत में यह अधिक असरदार नहीं दिख रही. सीआरपीएफ ने कहा है कि उन्होंने भीड़ के एक हिस्से पर इसका इस्तेमाल भी किया था, लेकिन वह लोग इस बदबू को आसानी से सहन कर ले रहे थे.
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The Scream : यह एक ऐसा हथियार है, जिसका इस्तेमाल इजराइल प्रदर्शनकारियों को भगाने के लिए करता है. The Scream हथियार से एक तेज आवाज निकलती है, जो लोगों के कानों के लिए बेहद दर्दनाक होती है. इसका इस्तेमाल किसी गाड़ी पर इसे लगाकर किया जाता है. इस हथियार की खास बात यह है कि इससे जो तेज आवाज निकलती है उससे सीधे किसी खास जगह को टारगेट किया जा सकता है. इसे इजराइल की इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट लिमिटेड कंपनी ने बनाया.
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Stun Grenades : स्टन ग्रेनेड इजराइल में इस्तेमाल किए जाने वाले वह हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल आंसू गैस के गोलों के साथ खूब किया जाता है. यह एक ग्रेनेड की तरह फटता है, जिससे तेज रोशनी और खतरनाक आवाज होती है. इनका इस्तेमाल लोगों को डराने के लिए किया जाता है. कश्मीर में प्रदर्शन कर रही उग्र भीड़ पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, जो लोग स्कंक की बदबू के सामने भी टिके रहे, उन पर स्टन ग्रेनेड पता नहीं अपना असर दिखा पाएगा या नहीं.
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Pellet Gun : कश्मीर में हिंसा कर रही भीड़ को भगाने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें 5 से 12 तक की रेंज के कारतूस पड़ते हैं. इसमें पांच की रेंज को सबसे तेज और खतरनाक माना जाता है. इन कारतूस में लोहे के छर्रे होते हैं. हर कारतूस में करीब 500 तक छर्रे हो सकते हैं. इसे फायर करने के बाद कारतूस हवा में फूटता है और फिर छर्रे चारों ओर बिखर जाते हैं. इससे काफी दूर खड़े लोगों को भी नुकसान होता है. पैलेट गन की वजह से कश्मीर में बहुत से लोग अंधे तक हो चुके हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि पैलेट गन इंसान को जिंदा लाश बना सकती है. लेकिन जब प्रदर्शन बहुत अधिक उग्र हो जाता है तो सेना के पास कोई और चारा भी नहीं बचता है. इजराइल में भी इसका इस्तेमाल उग्र भीड़ को भगाने के लिए किया जाता है.
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भारत का मददगार रहा है इजरायल
- अविश्वास से शुरू हुए दोनों देशों के रिश्ते : इजरायल और स्वतंत्र भारत का उदय एक ही वर्ष 1947 में हुआ था। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इजरायल को स्वतंत्रता 1948 में मिली. दोनों देशों के शुरुआती संबंध अच्छे नहीं थे. 1947 में ही भारत ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने के विरोध में वोट किया था. इसी तरह से 1949 में एक बार फिर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल को सदस्य देश बनाने के विरोध में वोट किया था. इजरायल के उदय के साथ शुरुआती 2 साल में भारत का पक्ष हमेशा इजरायल के खिलाफ ही रहा.
- 50 के दशक में भारत का रुख इजरायल के लिए बदला : 1950 में पहली बार भारत ने बतौर स्वतंत्र राष्ट्र इजरायल को मान्यता दी थी. इसके साथ ही भारत ने इजरायल का काउंसल को मुंबई में एक स्थानीय यहूदी कॉलोनी में 1951 में नियुक्त किया था. इसे 1953 में अपग्रेड कर काउंसलेट का दर्जा दिया. 1956 में इजरायल के विदेश मंत्री मोशे शेरेट ने भारत का दौरा स्वेज नहर को लेकर जारी विवाद के बीच किया था. स्वेज नहर का विवाद मिस्र और इजरायल के बीच था.
- चीन युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच गुप्त भाईचारा : 1962 के चीन युद्ध के दौरान इजरायल ने पुरानी घटनाओं को एक सिरे से भुलाकर भारत की हथियारों और दूसरे युद्ध साधनों से मदद की थी. उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने इजरायली समकक्ष से पत्र लिखकर मदद मांगी थी. इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेन गुरियन ने हथियारों से भरे जहाज को भारत रवाना कर पत्र का उत्तर दिया. हालांकि, सार्वजनिक तौर पर दोनों देशों ने एक-दूसरे से दूरी ही बरती क्योंकि तेल अवीव की निकटता वॉशिंगटन से हमेशा रही. दूसरी तरफ भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था और 1961 में बनाए गुट निरपेक्ष राष्ट्रों का संगठन उसूलन सोवियत रूस की तरफ झुका था. हालांकि, भारत के सभी प्रमुख युद्धों में इजरायल ने भरपूर मदद की. 1971 में पाकिस्तान युद्ध और 1999 में करगिल युद्ध में भी इजरायल ने भारत को अत्याधुनिक हथियारों से मदद की. इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने जब भारत की खुफिया एजेंसी रॉ का गठन किया था तब भी इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने काफी मदद की.
- 90 के दशक में इजरायल के साथ भारत ने द्विपक्षीय संबंध बनाए : 1992 में पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे उस वक्त भारत ने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए. हालांकि, इस फैसले के पीछे बहुत से वैश्विक कारण भी थे. सोवियत रूस के विघटन और इजरायल और फलस्तीन के बीच शांति प्रक्रिया के शुरू होना दो प्रमुख कारण थे. इजरायल के साथ भारत के बदलते संबंधों की एक वजह जॉर्डन, सीरिया और लेबनान जैसे अरब मुल्कों ने भी भारत को अपनी रूस और अरब की ओर झुकी विदेश नीति पर सोचने के लिए मजबूर किया. पीएलओ (फलस्तीन की आजादी के लिए संघर्ष करनेवाली संस्था) के प्रमुख यासिर अराफात के व्यक्तिगत तौर पर इंदिरा गांधी से अच्छे संबंध थे.
- कारगिल युद्ध में इजरायल ने भारत की मदद की थी : कारगिल जीत में इजरायल ने अहम भूमिका निभाई थी. अगर इजरायल वक्त पर साथ न देता तो जीत में देरी होती और जानमाल का ज्यादा नुकसान होता. भीषण युद्ध के दौरान भारतीय सेना पाकिस्तान के सामने थोड़ी कमजोर साबित हो रही थी, क्योंकि दुश्मन ऊपर था जवाबी कार्रवाई नीचे से करना थी. ऐसे मुश्किल समय में इजरायल भारत के लिए संकट मोचन बनकर उभरा. लड़ाकू विमानों को विजन देने और दुश्मन के इलाके की तस्वीरें मिलना मुश्किल हो रहा था. युद्ध के दौरान यह एक बड़ा कारण रहा कि लड़ाकू विमान दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई करने में कारगर साबित नहीं हो रहे थे. इस बीच इजरायल भारत का सच्चा साथी बनकर उभरा और अमेरिकी दबाव के बावजूद उसने भारत की मदद की. इजरायली सेना के पास सीमापार पर आतंकवाद से लड़ने के लिए विशेष अनुभव और ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सक्षम तकनीक थी. एक समझौते पर हस्ताक्षर कर इजरायल ने भारत को तुरंत युद्ध सामग्री जरुरी हथियार सप्लाई किए. युद्ध के अंत तक इजराइल भारत की मदद के लिए खड़ा रहा. उन्नत तकनीक के इजरायली टोही विमान किसी भी क्षेत्र की साफ तस्वीरें ले सकते थे. रिपोर्ट्स की माने तो इस दोरान इजरायल ने न सिर्फ मानव रहित टोही विमान बल्कि अपनी मिलिट्री सेटेलाइट से इलाके की तस्वीरें भी भारत को उपलब्ध करवाईं थी. इसके साथ ही ऊंची चौटी पर तैनात करने के लिए जरूरी हथियार और गोला बारूद भी उपलब्ध करवाए. इसके अलावा इजराइल ने हवा से जमीन में मार करने के लिए लेजर तकनीक से चलने वाली सक्षम मिसाइलें जो कि 2000एच लड़ाकू विमान से दागी जा सकती थीं, उपलब्ध करवाईं. युद्ध के दौरान इजराइल भारत के साथ साथ आया जिसने दोनों देशों के रिश्तों और दोस्ती का नया बीज बोया. दोनों ही देशों के रिश्तें अब एक उच्च स्तर पर हैं.
- पीएम मोदी के नेतृत्व में इजरायल के साथ बदले भारत के संबंध : इजरायल और भारत के बीच बदले संबंधों की असली कहानी सार्वजनिक तौर पर 2015 से नजर आने लगी। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल में मानवाधिकार अधिकारों के हनन संबंधी वोट प्रस्ताव के वक्त भारत गैर-मौजूद रहा. इसके बाद ही किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा इजरायल में 2017 में हुआ और पीएम नरेंद्र मोदी ने 3 दिनों का इजरायल दौरा किया. 2018 में बेंजामिन नेतन्याहू ने 6 दिनों का भारत का विस्तृत दौरा किया। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में भारत ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता संबंधी प्रस्ताव के विरोध में वोट किया.
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