कर्नाटक चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर, जाने क्या हैं कारण
सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता दी जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा है।इसके साथ ही बीजेपी-आरएसएस का संगठन जमीनी स्तर पर काफी मजबूत रहा जिसका फायदा बीजेपी को मिला।
नई दिल्ली:
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पुरजोर कोशिश के बाद भी हार का सामना करना पड़ रहा है। बीजेपी लगातार विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करती आ रही है वहीं कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ रहा है।
आइये जानते हैं कि इन चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन का कारण क्या रहा है।
मोदी-शाह फैक्टर
2014 के बाद हुए चुनावों में बीजेपी पंजाब, बिहार और दिल्ली को छोड़ बाकी सभी राज्यों में सत्ता में आई है और इन चुनावों में उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सामने रखकर चुनाव लड़ा है। बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी को अपना ट्रम्प कार्ड मानती है और उन्होंने खुद को साबित भी किया है।
कर्नाटक चुनाव में भी पीएम मोदी का करिश्मा बीजेपी के लिये काम कर रहा था। हालांकि राज्य में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर थी। लेकिन पीएम के चुनाव प्रचार के बाद राज्य में बीजेपी के लिये संभावनाएं मजबूत होने लगीं।
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इस चुनाव में पीएम ने करीब 20 रैलियां की थीं और NAMO ऐप के जरिए भी उन्होंने बीजेपी के कार्यकर्ताओं से संवाद किया। जिसमें उन्होंने महिलाओं, अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों की बात की।
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति चुनाव में माइक्रोमैनेजमेंट के मास्टर माने जाते हैं। वो अपनी रणनीति जमीनी स्तर से लेकर ऊपर के स्तर तक तैयार करते हैं। शाह की रणनीति की कांग्रेस के पास कोई काट नहीं है।
आरएसएस फैक्टर-
बीजेपी का संगठन काडर आधारित है, और ये कांग्रेस की तुलना में काफी मजबूत है। इसके साथ ही आरएसएस भी चुनाव में बीजेपी का साथ देता रहा है और इसका परिणाम ये हुआ कि बूथ लेवल कार्यकर्ता से लेकर ऊपर तक बीजेपी मजबूत है।
इस बात को बीजेपी के नेता राम माधव ने भी माना है और कहा है कि तटीय कर्नाटक में आरएसएस ने काफी सहायता की है।
सरकार विरोधी लहर-
पिछले पांच साल से कांग्रेस कर्नाटक में सत्ता में है और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे थे। राज्य में 1985 के बाद से कर्नाटक में किसी भी दल की लगातार दो बार सत्ता में नहीं आई है।
बीजेपी ने सिद्धारमैया सरकार पर विभाजनकारी और जाति आधारित राजनीति का भी आरोप लगाया। अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की राजनीति के भी आरोप लगे। भ्रष्टाचार भी सिद्धारमैया के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा था।
कांग्रेस का लिंगायत कार्ड का दांव हुआ फेल-
सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता दी। ऐसा लगा था कि बीजेपी को कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में चित कर दिया है। लेकिन बीजेपी ने साफ कर दिया कि लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा नहीं दिया जाएगा। साथ ही कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वो हिंदू धर्म और संस्कृति को बांटने का काम कर रही है। लिंगायत की मांग थी उन्हें अलग धर्म का दर्जा दिया जाए।
लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने से दूसरे समुदाय के लोग नाराज़ हुए यहां तक कि लिंगायत के दूसरे पंथ ने भी कांग्रेस के कदम का विरोध किया था। जिसका फायदा बीजेपी को मिला।
इसके साथ ही टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को लेकर भी काफी विवाद हुआ। कांग्रेस के इन कदमों को तुष्टीकरण की नीति के तहत देखा गया।
लिंगायत बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुलू को अपना नेता मानते हैं। बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार घोषित किया था जिसका फायदा भी बीजेपी को हुआ। येदियुरप्पा का लिंगायत समुदाय में बड़ा प्रभाव है।
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