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वर्षों पुरानी है भारतीय मिलिट्री बैंड की बीटिंग रिट्रीट परंपरा, जानें क्या है इतिहास

हमारे देश में हर साल गणतंत्र दिवस के तीन दिन बाद यानि की 29 जनवरी को राजधानी दिल्‍ली के विजय चौक पर इस सेरेमनी को इंडियन आर्मी, इंडियन नेवी और इंडियन एयरफोर्स के बैंड्स की ओर से परफॉर्म किया जाता है.

Updated on: 29 Jan 2020, 08:02 PM

नई दिल्ली:

बीटिंग रिट्रीट भारतीय मिलिट्री बैंड की सालों पुरानी शानदार परंपरा है. यह शंख, तुरही, सिंगी, नगाड़ा और रण भेरियों वाला पहला भारतीय मिलिट्री बैंड था. इसके बाद हिंदुस्तान ने सैकड़ों लड़ाइयां लड़ीं, जिनमें संगीत तकरीबन हर सैनिक अभियान का हिस्सा रहा, लेकिन आज हम जिस भारतीय मिलिट्री बैंड को जानते हैं, उसकी कहानी 300 साल के ब्रिटिश मिलिट्री बैंड के इतिहास से जुड़ी है. आइए आपको बताते हैं क्या है बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी का इतिहास 

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का असली नाम 'वॉच सेटिंग' है और बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी का समारोह हमेशा सूर्यास्त के समय होता है. 18 जून 1690 में इंग्‍लैंड के राजा जेम्‍स टू ने अपनी सेनाओं को उनके ट्रूप्‍स के वापस आने पर ड्रम बजाने का आदेश दिया था. सन 1694 में विलियम थर्ड ने रेजीमेंट के कैप्‍टन को ट्रूप्‍स के वापस आने पर गलियों में ड्रम बजाकर उनका स्‍वागत करने का नया आदेश जारी किया था. हमारे देश में हर साल गणतंत्र दिवस के तीन दिन बाद यानि की 29 जनवरी को राजधानी दिल्‍ली के विजय चौक पर इस सेरेमनी को इंडियन आर्मी, इंडियन नेवी और इंडियन एयरफोर्स के बैंड्स की ओर से परफॉर्म किया जाता है.

गणतंत्र दिवस के 3 दिन बाद होती है बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी
गणतंत्र दिवस के तीन दिन बाद ही राष्‍ट्रपति भवन के नॉर्थ और साउथ ब्‍लॉक पर बैंड्स की परफॉर्मेंस होती है और राजपथ की ओर इसका अंत होता है. तीनों सेनाओं के बैंड और अर्धसैनिक बल बीएसएफ के जवानों की मौजूदगी में होने वाला यह समारोह देश और गणतंत्र दिवस समारोह के लिए काफी अहमियत रखता है. इस सेरेमनी के साथ ही 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के समारोह का औपचारिक समापन होता है. कॉमनवेल्‍थ देशों की सेनाएं इस समारोह को परंपरा के तौर पर निभाती हैं. आपको बता दें कि इस समारोह के मुख्‍य अतिथि राष्‍ट्रपति होते हैं जो प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड्स के सुरक्षा घेरे में यहां पर आते हैं.

राष्ट्रपति को दिया जाता है नेशनल सैल्यूट
राष्‍ट्रपति के आने के बाद प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड्स के कमांडर की ओर से राष्‍ट्रपति को नेशनल सैल्‍यूट दिया जाता है. इसके साथ ही तिरंगा फहराया जाता और राष्‍ट्रीय गान भी गाया जाता है. बीटिंग रिट्रीट की शुरुआत साल 1950 से हुई, साल 1952 में बीटिंग रिट्रीट का एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था. बीटिंग रिट्रीट वो मौका है जब सेना के तीनों अंगों के मिलिट्री बैंड एकसाथ सेना के सर्वोच्च कमांडर भारत के राष्ट्रपति को सलामी देते हैं. कार्यक्रम में थल सेना , वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं, यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है.

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रायसीना हिल्स पर आयोजित होता है कार्यक्रम
गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, इस समारोह का स्थल रायसीना हिल्स पर किया जाता है. सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत 'अबाइड विद मी' की धुन बजाई और तभी से हर साल यही धुन बजती है. इस सेरेमनी की शुरुआत तीनों सेनाओं के बैंड्स के मार्च के साथ होती है और इस दौरान वह 'कर्नल बोगे मार्च', 'संस ऑफ द ब्रेव' और 'कदम-कदम बढ़ाए जा' जैसी धुनों को बजाते हैं. अब तक भारत के गणतंत्र बनने के बाद बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को दो बार रद्द करना पड़ा है. पहला 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण और दूसरी बार ऐसा 27 जनवरी 2009 को देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो जाने पर किया गया.

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तीनों सेनाओं के बैंड्स एकसाथ करते हैं परफॉर्म
सेरेमनी के दौरान इंडियन आर्मी का बैंड पारंपरिक स्‍कॉटिश धुनों और भारतीय धुनों जैसे ' गुरखा ब्रिगेड, 'नीर की 'सागर सम्राट' और 'चांदनी' जैसी धुनों को बजाती है. आखिर में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के बैंड्स एकसाथ परफॉर्म करते हैं. इसी तरह की सेरेमनी को वर्ष 1982 में देश में संपन्‍न हुए एशियन गेम्‍स के दौरान परफॉर्म किया गया था. इंडियन आर्मी के रिटायर्ड म्‍यूजिक डायरेक्‍टर स्‍वर्गीय हैराल्‍ड जोसेफ, इंडियन नेवी के जेरोमा रॉड्रिग्‍स और इंडियन एयरफोर्स के एमएस नीर को इस सेरेमनी का श्रेय दिया जाता है. भारत और पाकिस्‍तान के अमृतसर स्थित वाघा बॉर्डर पर इस सेरेमनी की शुरुआत वर्ष 1959 में की गई थी.

मध्यप्रदेश से हुई शुरूआत
पचमढ़ी मिलिट्री म्यूजिक स्कूल की स्थापना 1950 में की गई थी. ब्रिटिश हुकूमत खत्म हुई तो मिलिट्री बैंड का भारतीयकरण शुरू हुआ. कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने इस चुनौती को कबूला और 1950 में मध्य प्रदेश के पचमढ़ी इलाके में मिलिट्री स्कूल ऑफ म्यूजिक की नींव डाली. इसे आज लंदन के नैलर हॉल में मौजूद रॉयल मिलिट्री स्कूल ऑफ म्यूजिक की तर्ज पर ‘नैलर हॉल ऑफ इंडिया’ कहा जाता है. यही वो वक्त था जब मेजर राबर्टसन ने भारतीय धुनों पर आधारित हिंदुस्तानी मिलिट्री बैंड को आकार दिया था.

भारतीय मिलिट्री बैंड के चार हिस्से
भारतीय मिलिट्री बैंड के चार हिस्से हैं टॉप बैंड आर्मी, एयरफोर्स, नेवी और पैरामिलिट्री बैंड्स. वहीं आर्मी बैंड के दो हिस्से देखने को मिलते हैं. मिलिट्री बैंड, जिसे अलग-अलग रेजीमेंटल सेंटर्स के जवान पेश करते हैं. पाइप्स एंड ड्रम्स, एयरफोर्स और नेवी में जहां कमांड स्तर पर बैंड हैं तो आर्मी में हर रेजीमेंटल स्तर पर राजपूताना रेजीमेंटल सेंटर का बैंड जिसकी प्रस्तुति है सिंहगढ़, जो राजपूताना शौर्य को समर्पित है.

भारत ने कई विदेशी बैंडवादकों को दी है ट्रेनिंग
मिलिट्री म्यूजिक में भारतीय सेना की अलग पहचान है. भारतीय मिलिट्री बैंड ने कई विदेशी बैंडवादकों को भी ट्रेनिंग दी है, जैसे श्रीलंका, मालदीव, म्यानमार, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, फिजी, घाना, केन्या और मॉरीशस यहां तक कि उनका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज है. जब सिर्फ एक कंडक्टर के साथ करीब साढ़े चार हजार संगीतकारों ने अमेजिंग ग्रेस धुन बजाकर ये रिकॉर्ड बनाया था.

बजाया जाता है बिगुल
बीटिंग रिट्रीट के साथ एक और खासियत भी जुड़ी है. जब भारत के राष्ट्रपति विजय चौक से लिए निकलते हैं, तब 200 साल पुरानी परंपरा वाला एक बिगुल बजाया जाता है. इसका इस्तेमाल पहली बार जर्मन और अंग्रेज फौजों ने किया था. साउंडिंग ऑफ रिट्रीट एक पुरानी परंपरा है, जब जंग के मैदान से शाम को सैनिक अपने ठिकानों की तरफ लौटते थे तो उन्हें नगाड़ों या बिगुल के जरिए कैंपों में वापस बुलाया जाता था. इसलिए बीटिंग रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह का समापन भी होता है और ये समापन होता है एक खास धुन पर, वो धुन जो भारतीय मिलिट्री बैंड्स के साथ-साथ पूरे देश की पहचान बन गई है.