Gyanvapi Case: सुप्रीम कोर्ट करेगा इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुनवाई, मुस्लिम पक्ष की याचिका को SC की मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली ज्ञानवापी मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमती जताई गई है, जिसके बाद अब सर्वोच्च अदालत में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ में सुनवाई होगी.
नई दिल्ली :
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली ज्ञानवापी मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमती जताई गई है, जिसके बाद अब सर्वोच्च अदालत में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ में सुनवाई होगी. इस मामले की सुनवाई में शामिल मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि, "हम इसे मुख्य मामले के साथ टैग करेंगे." बता दें कि, ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष द्वारा याचिका दायर कर सिविल मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाया था, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.
अदालत ने कहा कि, वाराणसी अदालत के समक्ष लंबित मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग करने वाला एक दीवानी मुकदमा सुनवाई योग्य है. साथ ही हाई कोर्ट ने कहा था कि किसी विवादित स्थान का "धार्मिक चरित्र" केवल अदालत द्वारा तय किया जा सकता है.
मस्जिद का निर्माण एक मंदिर के अवशेषों पर किया गया था...
गौरतलब है कि, मुकदमा उस स्थान पर एक मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग करता है जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद है. हिंदू पक्ष के अनुसार, माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण एक मंदिर के अवशेषों पर किया गया था, जो इसे धार्मिक संरचना का एक अभिन्न अंग बनाता है.
मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति का तर्क...
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षों के साथ ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ तर्क दिया था. उनका कहना था कि, मुकदमे को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत प्रतिबंधित किया गया था. यह अधिनियम राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को छोड़कर, पवित्र स्थलों के धार्मिक चरित्र में बदलाव पर रोक लगाता है, जैसा कि भारत की स्वतंत्रता के दिन था. उच्च न्यायालय ने माना था कि जिला अदालत के समक्ष दायर मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित नहीं है, जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी स्थान के "धार्मिक चरित्र" के "रूपांतरण" पर रोक लगाता है.
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