इन वजहों से हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हावी रहे राष्ट्रीय मुद्दे
इस बार हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के राष्ट्रीय मुद्दे पूरी तरह हावी रहे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी हर रैली में अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों को बड़ी ही चतुराई से जनता के सामने रखा. दरअसल बीजेपी ने पूरी रणनीति के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर इन राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला किया.
highlights
- हरियाणा में जाट आरक्षण और किसान तो महाराष्ट्र में मराठा और भीमा-कोरेगांव मामले नहीं बन पाए मुद्दे
- हरियाणा की 90 और महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 21 अक्टूबर को होना है मतदान
- दोनों की राज्यों में स्थानीय मुद्दों के बजाए राष्ट्रीय मुद्दों पर किया गया चुनाव प्रचार
नई दिल्ली:
हरियाणा की 90 और महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार शाम प्रचार थम गया. दोनों की राज्यों में सभी सीटों पर 21 अक्टूबर को मतदान होगा. इस बार हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के राष्ट्रीय मुद्दे पूरी तरह हावी रहे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी हर रैली में अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों को बड़ी ही चतुराई से जनता के सामने रखा. दरअसल बीजेपी ने पूरी रणनीति के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर इन राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला किया.
कुछ महीनों पहले तक हरियाणा में जाट आरक्षण और किसान तो महाराष्ट्र में मराठा और भीमा-कोरेगांव मामले स्थानीय मुद्दों में सबसे ऊपर थे. बीजेपी के रणनीतिकारों को इस बात का अंदाजा था कि अगर यह मुद्दे हावी हुए तो दोनों ही राज्यों में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. पार्टी ने पहले ही स्थानीय मुद्दों के इतर राष्ट्रवाद और केंद्रीय राजनीति से जुड़े मुद्दों को केंद्र में लाने की रणनीति बनाई थी. ऐसे में भाजपा ने अपनी रणनीति बदलते हुए अनुच्छेद 370 और तीन तलाक को खत्म करने के फैसले को प्रमुखता से उठाया.
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स्थानीय मुद्दों पर बीजेपी का कमजोर प्रदर्शन की बना वजह
दरअसल पिछले कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था की लगातार खराब होती हालत बीजेपी की चिंता बढ़ा रही हैं. रोजगार के मुद्दे पर विपक्षी दल लगातार बीजेपी पर हमलावर हैं. वहीं किसानों के मामलों पर बीजेपी कुछ अच्छा नहीं कर पाई है. लगातार बढ़ती महंगाई और स्थानीय मुद्दे बीजेपी के लिए बैरियर का काम कर सकते हैं. ऐसे में बीजेपी की रणनीतिकारों ने स्थानीय मुद्दों के बजाए राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चुनाव के मैदान में उतरने की फैसला लिया.
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राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय पार्टी की कमजोरी को बनाया हथियार
हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी और कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियों का भी अच्छा ख़ासा प्रभाव है. महाराष्ट्र में जहां एनसीपी, शिवसेना का प्रभाव है वहीं हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल, जेजेपी जैसी पार्टियों का प्रभाव है. क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीति को करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि क्षेत्रीय पार्टियों का आधार जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे हैं लेकिन जब बात राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय मुद्दों की होती है तो उनके पास बात करने के लिए कोई स्पष्ट राजनीतिक लाइन नहीं होती. ऐसे में चुनाव सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच सिमट जाता है. वर्तमान में कांग्रेस की हालत किसी से छुपी नहीं है. बीजेपी सूत्रों की मानें तो पार्टी ये जानती है कि इन चुनावों में यदि तीन तलाक, धारा- 370 जैसे राष्ट्रीय मुद्दे को पार्टी चुनावी मुद्दा बना ले जाती है तो चुनाव एक तरफा बीजेपी के पक्ष में हो जाएगा.
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स्थानीयता पर राष्ट्रीयता भारी
चुनाव प्रचार में स्थानीय मुद्दों के मुकाबले राष्ट्रीय मुद्दों का शोर ज्यादा सुनाई पड़ा. स्थानीय मुद्दों का भी राष्ट्रीयकरण किया गया. जब बात किसानों की हो तो पानी की समस्या को भी बड़ी चतुराई से पाकिस्तान से जोड़ दिया गया. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की नदियों का पानी पाकिस्तान नहीं जाने दिया जाएगा, जिससे किसानों को पानी की कमी नहीं होगी.
2014 में भी प्रधानमंत्री के चेहरे पर चला था दाव
2019 के चुनाव में बीजेपी के पास भले ही महाराष्ट्र में देवेन्द्र फड़णवीस और हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर जैसे मुख्यमंत्री के चेहरे हों लेकिन 2014 में पार्टी के पास हरियाणा में कोई चेहरा नहीं था और महाराष्ट्र में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का चेहरा होने के बाद भी बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर दांव लगाया और दोनों राज्यों में पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली. ऐसे में बीजेपी जानती है कि प्रधानमंत्री के चेहरे पर वह लगातार लोकसभा और विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन कर रही है. ऐसे में प्रधानमंत्री के चेहरे पर एक बार फिर दाव लगाकर चुनाव में नैया पार लगाई जा सकती है.
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जाट पॉलिटिक्स ने खोया असर
किसी समय हरियाणा की राजनीति तीन लाल बंशीलाल, भजनलाल, देवीलाल के इर्द गिर्द की घूमा करती थी. हरियाणा ही वह राज्य है जहां की सियासत ने 'आया राम-गया राम' जैसे मुहावरे को जन्म दिया. जो जाट पॉलिटिक्स का केन्द्र माना जाता था। हालांकि, वक्त के साथ हरियाणा की सियासी पहचान भी बदलती गई। मजबूत और स्थाई सरकारों का दौर आया. राज्य के तीनों 'लाल परिवार' का वजूद धीरे-धीरे खत्म होता गया.
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विपक्ष की कमजोरी बनी बीजेपी की ताकत
हरियाणा में विपक्ष लगभग न के बराबर होना है. यहां कांग्रेस का बुरा हाल है तो दूसरे सबसे प्रमुख स्थानीय दल- इंडियन नेशनल लोकदल का हाल और भी ज्यादा बुरा है. पारिवारिक कलह के कारण इंडियन नैशनल लोकदल यहां दो हिस्सों में बंट चुकी है. दोनों हिस्से इतने कमजोर हैं कि राज्य के चुनाव में उनकी तरफ से बीजेपी को कहीं कोई चुनौती मिलती नहीं दिख रही है. वहीं कांग्रेस की यहां लगातार खिसकती जमीन भी बीजेपी के लिए संजीवनी बना हुआ है.
प्रधानमंत्री की रैलियों में हावी रहे यह मुद्दे
प्रधानमंत्री मदी ने बल्लभगढ़ की रैली में दो लाख पूर्व फौजियों के आंकड़े गिनाते हुए उन्हें वन रैंक वन पेंशन (One Rank One Pension) का लाभ मिलने की बात कही थी. प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) इस रैली में यूं तो कई मुद्दों पर बोले, मगर उन्होंने सेना (Military), जवान, राफेल (Rafale), राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security), अनुच्छेद 370 (Article 370), शहीदों के बच्चों को स्कॉलरशिप (Scholarship) जैसी बातों पर खास फोकस किया.
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