logo-image

गलवान घाटी हिंसक झड़प को लेकर नेहरू के जरिए कांग्रेस ने केंद्र पर निशाना साधा

कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इतिहास की बातों का जिक्र करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चीन द्वारा अपना खुद से एलएसी तय करने के प्रति कठोर थे

Updated on: 04 Jul 2020, 11:29 PM

नई दिल्ली:

जहां एक ओर भारत और चीन के बीच लगातार तनाव बना हुआ है, वहीं भाजपा और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच भी टकराव कम नहीं हुआ है. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इतिहास की बातों का जिक्र करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चीन द्वारा अपना खुद से एलएसी तय करने के प्रति कठोर थे और दावा किया कि चीन ने उनके समय के दौरान स्वीकार कर लिया था कि गलवान घाटी भारत की है.

कांग्रेस ने शनिवार को कहा, वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी को चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई द्वारा 1956 में गढ़ा गया था और फिर 1959 में और 1962 के युद्ध के दौरान और उसके बाद दोहराया गया. चीन के भारत पर आक्रमण के बाद, झोउ एनलाई ने नेहरू को एक पत्र भेजकर उनसे 1959 के चीन के दावे वाली लाइन (रेखा) को स्वीकार करने के लिए कहा और कहा कि चीन इस रेखा से 20 किलोमीटर तक पीछे हटने को तैयार है.

कांग्रेस ने आगे कहा, जवाब में, नेहरू द्वारा 4 नंवबर को लिखे पत्र में कहा गया कि चीन का प्रस्ताव हुक्मनामे से कम नहीं है. कांग्रेस ने शनिवार को नेहरू की लिखी बातों का जिक्र किया, जिसमें लिखा है, भारत से चीन की 1959 की रेखा को स्वीकार करने की मांग कुछ ऐसी है, जिसे भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा, चाहे परिणाम कुछ भी हो और चाहे कितना ही लंबा और मुश्किल संघर्ष हो.

यह भी पढ़ें-प्रधानमंत्री ओली ने अपने मंत्रियों से कह दी ये बड़ी बात, ले सकते हैं ये बड़ा फैसला

केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कांग्रेस ने कहा कि जिन चीनियों ने 1959 की रेखा में पूरी गलवान घाटी को भारत का हिस्सा दर्शाया था, उन लोगों ने पहली बार औपचारिक रूप से पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा किया है.

यह भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने कसी कमर, आजमाएगी ये नया दांव

कांग्रेस ने यह हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लेह दौरे के एक दिन बाद किया है. मोदी ने लेह दौरे के दौरान चीन का नाम लिए बिना चेतावनी देते हुए कहा था कि विस्तारवाद का दौर अब खत्म हो गया है, यह दौर विकास का है और इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतें या तो हार गई हैं या उन्हें पीछे हटना पड़ा है.