आपातकाल के लिए कांग्रेस ने कभी नहीं जताया अफसोस: राकेश सिन्हा
राज्यसभा सदस्य और संघ विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने कहा कि आपातकाल देश पर कलंक की तरह है. उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि आज तक कांग्रेस की तरफ से न तो आपातकाल जैसे कलंक को लेकर अफसोस जताया गया और न ही कभी...
highlights
- आरएसएस विचारय प्रो राकेश सिन्हा का बड़ा बयान
- कांग्रेस माफी भी मांगे तो जनता नहीं करेगी माफ
- पीएम मोदी ने आपातकाल के दौर में निभाई सक्रिय भूमिका
नई दिल्ली:
राज्यसभा सदस्य और संघ विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने कहा कि आपातकाल देश पर कलंक की तरह है. उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि आज तक कांग्रेस की तरफ से न तो आपातकाल जैसे कलंक को लेकर अफसोस जताया गया और न ही कभी कोई माफी प्रस्ताव सामने आया. राकेश सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस कुछ भी कर ले, कलंक धुलने वाला नहीं है. माफी मांगने का कर्मकांड कांग्रेस अगर कर भी लेती है, फिर भी यह देश और यह जनतंत्र माफ नहीं करेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के दौरान लड़ाई बड़ी भूमिका
राकेश सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल में बड़ी भूमिका का निर्वहन किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस तपस्या से तपकर बाहर आए हैं. यही वजह है कि जनतंत्र में उनकी अटूट आस्था है. राकेश सिन्हा ने कहा कि बार-बार कांग्रेस की तरफ से उनके ऊपर अभद्र भाषा का प्रयोग होता है. राहुल गांधी ने तो लाठी मारने तक की बात कह दी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा मुस्कुरा कर जवाब देते रहे. यही वजह है कि आज उनके नेतृत्व में जन तंत्र मजबूत होता चला जा रहा है.
ये भी पढ़ें: आपातकाल की 47वीं बरसी: योगी-शाह ने कांग्रेस को दिखाया आईना, BJP ने बोला हमला
21 महीने तक चला था भारत में आपातकाल का दौर
गौरतलब है कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल लागू था. तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी. 2 साल तक का आपातकाल का सदस्य काले दिनों की तरह माने जाते हैं. नागरिक अधिकार छीन लिये गए थे. इस दौरान देश के लगभग सभी विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया था. हर तरफ पुलिस राज था. संगीनों के साए में काम चल रहे थे. प्रेस पर कड़ा नियंत्रण था, और सबकुछ स्क्रीनिंग के बाद ही छपता था. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद काल था.
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