मोदी सरकार पर CAG का गंभीर सवाल, कहा- किसानों को पता नहीं क्या है फसल बीमा योजना?
सीएजी का यह भी कहना है कि कृषि बीमा कंपनी (एआईसी) निजी कंपनियों को धनराशि देने से पहले उनके दावों के सत्यापन में तत्परता दिखाने में असफल रहा है।
highlights
- सीएजी ने 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' पर उठाए सवाल
- जितने किसानों पर सर्वेक्षण किया गया, उनमें से दो तिहाई को इस योजना की जानकारी ही नहीं थी
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमबीएफवाई) सवालों के घेरे में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 67 प्रतिशत किसानों को योजना की जानकारी ही नहीं है।
साथ ही सीएजी ने कहा है कि राज्यों द्वारा प्रभावित किसानों को बीमा राशि मुहैया कराने में की जा रही देरी के चलते किसानों को समय से वित्तीय मदद प्रदान करने का लक्ष्य बाधित हुआ है।
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जितने किसानों पर सर्वेक्षण किया गया, उनमें से दो तिहाई (66.66 फीसदी) किसानों को इस योजना की जानकारी ही नहीं थी। आपको बता दें की मोदी सरकार ने पीएमबीएफवाई को खूब प्रचारित किया है।
संसद में शुक्रवार को पेश की गई सीएजी की रिपोर्ट में फसल बीमा योजना के तहत बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा किसानों के खातों में बीमा राशि जमा करने अनियमितता सहित कई खामियों का उल्लेख किया गया है और राज्य सरकारों को इस संबंध में उनके लिए आवंटित धनराशि समय पर देने के लिए एक प्रणाली विकसित करने की सिफारिश भी की गई है।
सीएजी का यह भी कहना है कि कृषि बीमा कंपनी (एआईसी) निजी कंपनियों को धनराशि देने से पहले उनके दावों के सत्यापन में तत्परता दिखाने में असफल रहा है।
बुआई के क्षेत्रफल और बीमित क्षेत्रफल से जुड़े आकड़ों में विसंगति को रेखांकित करते हुए सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'राज्य सरकारों द्वारा इस संदर्भ में एआईसी को मुहैया कराए गए आंकड़ों की सत्यता को सत्यापित नहीं किया जा सका है।'
केंद्र सरकार ने पिछले साल खरीफ की फसल की बुवाई के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमबीएफवाई) योजना शुरू की थी और पिछली योजना में सुधार कर इसे मौसम आधारित फसल बीमा योजना का रूप दिया था।
पीएमबीएफआई के तहत किसानों को खरीफ फसलों के लिए बीमा राशि का सिर्फ दो फीसदी, रबी फसल के लिए बीमा राशि का सिर्फ 1.5 फीसदी और बागवानी तथा नकदी फसलों के लिए बीमा राशि का सिर्फ पांच फीसदी देना होता है, जबकि शेष राशि केंद्र सरकार और राज्य सरकार बराबर मात्रा में वहन करती है।
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सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जितने किसानों पर सर्वेक्षण किया गया, उनमें से दो तिहाई (66.66 फीसदी) किसानों को इस योजना की जानकारी ही नहीं थी, योजना के तहत लाभान्वित किसानों की संख्या बेहद कम पाई गई, जबकि ऋण न लेने वाले किसानों को नजरअंदाज किया गया।
सीएजी ने योजना की निगरानी और योजना के क्रियान्वयन की निगरानी, नियमित मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने तथा राज्य स्तरीय तथा जिला स्तरीय समितियों को बांटे गए कार्यो के संपादन के लिए स्वतंत्र एजेंसी के गठन में असफल रहने के लिए भी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की आलोचना की है।
सीएजी ने कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा फसली जमीन से संबंधित आंकड़े जारी करने और वित्तीय एजेंसियों द्वारा दावों का निपटारा करने में देरी की बात सामने आई है।
सीएजी ने यह भी कहा है कि इस क्षेत्र में सीएजी ऑडिट करने में असमर्थ है, क्योंकि इस योजना के तहत निजी वित्तीय एजेंसियों द्वारा भारी मात्रा में धनराशि का लेन-देन होता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों को ऋण देने वाले बैंकों, वित्तीय संस्थानों और बीमा एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं पर निर्भर रहना होता है, क्योंकि योजना में बीमित किसानों का डाटाबेस तैयार करने का प्रावधान ही नहीं रखा गया है।
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