आरटीआई से खुलासा: शिकारियों ने 139 काले हिरणों को मार डाला
मध्य प्रदेश में शिकारियों ने सबसे अधिक 31 काले हिरण (Black Buck)मारे हैं. सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत ये आधिकारिक आंकड़े सामने आए हैं.
highlights
- मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा काले हिरणों का शिकार
- राजस्थान में 12, आंध्र प्रदेश में 10, गुजरात और हरियाणा में चार-चार शिकार
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत देश में काले हिरण (Black Buck)का शिकार प्रतिबंधित है
नोएडा:
देश में 2008 से दस वर्षों में शिकारियों ने 139 काले हिरणों को मार दिया. मध्य प्रदेश में शिकारियों ने सबसे अधिक 31 काले हिरण (Black Buck)मारे हैं. सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत ये आधिकारिक आंकड़े सामने आए हैं. पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत आने वाले वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश के बाद कर्नाटक में इस अवधि के दौरान 25 काले हिरणों जबकि उत्तर प्रदेश में 24 हिरणों को शिकारियों ने मार दिया.
आंकड़ों के अनुसार 2008 से 2018 के बीच काले हिरणों को मारने के लिए देशभर में 108 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया. सबसे अधिक 38 शिकारियों को मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया गया. नोएडा के पशु अधिकार कार्यकर्ता रंजन तोमर ने ब्यूरो से 2008 से शिकारियों द्वारा मारे गये काले हिरणों की संख्या के राज्यवार आंकड़े मांगे थे.
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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत देश में काले हिरण (Black Buck)का शिकार प्रतिबंधित है. देश में 1970 के दशक में काले हिरणों की संख्या में तेजी से गिरावट आई थी लेकिन अब यह संख्या बढ़ी है.
आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में शिकारियों द्वारा 21 काले हिरणों को मारने, राजस्थान में 12, आंध्र प्रदेश में 10, गुजरात और हरियाणा में चार-चार, ओडिशा में तीन, तेलंगाना में दो, दिल्ली, पंजाब और तमिलनाडु में एक-एक हिरण को मारे जाने की सूचना है.
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आंकड़ों के अनुसार हालांकि शिकार की इस तरह की घटनाओं में हाल के वर्षों में कमी आई है और 2018 में इस तरह के केवल दो मामले (दोनों महाराष्ट्र से) सामने आये है. वर्ष 2017 में भी दो ही मामले सामने आये है जिनमें से एक मामला मध्य प्रदेश और एक अन्य उत्तर प्रदेश से सामने आया है. तोमर ने कहा, ‘‘हाल के वर्षों में शिकारियों द्वारा काले हिरणों को मारे जाने की संख्या में लगातार गिरावट आई है. ये आंकड़े किसी भी जानवर और पर्यावरण प्रेमी के लिए संतोषजनक होंगे.’’
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