अयोध्या केसः 491 साल पुराना विवाद, अब सुनवाई के बचे दिन चार
491 साल पुराने अयोध्या विवाद में अब जिरह पूरा करने की डेडलाइन 17 अक्टूबर होगी.
नई दिल्ली:
491 साल पुराने अयोध्या विवाद में अब जिरह पूरा करने की डेडलाइन 17 अक्टूबर होगी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षकारों से कहा है कि वो 17 अक्टूबर तक जिरह पूरी करे. अगले पूरे हफ्ते दशहरे के अवकाश के चलते सुप्रीम कोर्ट बंद रहेगा. अवकाश के बाद 14 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट खुलेगा और चार दिन (14, 15, 16 और 17 अक्टूबर) तक सुनवाई पूरी हो जाएगी. 14 अक्टूबर को सुन्नी वक्फ बोर्ड की राजीव धवन की दलीलें पूरी हो जाएंगी. उसके बाद एक बार फिर हिन्दू पक्ष को जवाब देने का अंतिम मौका मिलेगा. संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. इस लिहाज से फैसला सुरक्षित रखने के बाद करीब एक महीने का वक्त संविधान पीठ को फैसला लिखने के लिए मिल जाएगा.
'मस्जिद भी अपने आप में दिव्य'
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस बोबड़े ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन से सवाल किया कि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह की इबादत होती है, बाकी किसी और की इबादत की इजाज़त नहीं. इस्लामिक शिक्षाओं के मुताबिक सिर्फ अल्लाह ही पवित्र/दिव्य है, ऐसे में क्या बाकी वस्तु/जगह भी उतनी ही पवित्र मानी जा सकती है?. क्या मस्जिद की अपने आप में दिव्यता को लेकर किसी इस्लामिक विद्वान ने कुछ कहा है?.
(जस्टिस बोबड़े का ये सवाल दरअसल हिंदू पक्ष की ओर से रखी गई उस दलील के मद्देनजर था, जिसमें उन्होंने पूरे श्रीरामजन्मस्थान को देवता की तरह पूजनीय बताते हुए, उन्हें न्यायिक व्यक्ति का दर्जा होने की बात कही थी) इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने जवाब दिया कि एक मस्जिद भी अपने आप में हमेशा पवित्र और दिव्य है. ये वो जगह है जहां कोई अपने ख़ुदा की इबादत करता है. यहां पांचों वक़्त नमाज पढ़ी जाती है, जिस चीज़ के जरिये खुदा की इबादत हो, वो अपने आप में हर चीज़ पवित्र है.
'6 दिसंबर 1992 को जो हुआ'
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा कि हिंदू पक्ष मुस्लिमों पर साम्प्रदायिक हिंसा के आरोप लगाता रहा है. वो मुस्लिम बादशाहों के हमले और विध्वंस की बात करते हैं. लेकिन 6 दिसंबर 1992 को क्या हुआ, जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए ज़िम्मेदार तो वो भी हैं और बाबरी मस्जिद का विध्वंस कोई मुगल कालीन ऐतिहासिक घटना तो है नहीं. इस मामले में लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया, रथयात्रा निकाली गई, लंबित मामले में दबाव बनाया गया. बाबरी मस्जिद ध्वस्त की गई और उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने एक दिन की जेल अवमानना के चलते काटी. अदालत से गुजारिश है कि वो इन तमाम घटनाओं को भी ध्यान में रखे.
'मध्यस्थता प्रकिया लीक की गई'
राजीव धवन ने कहा कि मध्यस्थता से पहले हिंदू पक्ष की ओर से सोशल मीडिया पर फैलाया गया था कि 500 मस्जिद ऐसी है जिसकी लिस्ट तैयार की गई है, जो मंदिर की जगह पर बनाई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने पूरी मध्यस्थता प्रकिया को गोपनीय रखने को कहा था, लेकिन इस प्रकिया से जुड़ी जानकारी को भी मीडिया में लीक किया गया. हालांकि, रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने धवन की इन दलीलों पर आपत्ति जाहिर की.
'विवाद सिर्फ केंद्रीय गुंबद में श्रीराम जन्मस्थान को लेकर'
मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि किसी को इस बात पर एतराज नहीं है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे. ये विवाद काफी पहले सुलझ गया होता, अगर हिंदू ये मान लेते कि केंद्रीय गुम्बद के नीचे श्रीराम का जन्म नहीं हुआ था. हिंदू पक्ष इस बात पर अड़ा है कि इसी जगह पर ही श्रीराम का जन्म हुआ है और हमारा यही कहना है कि हिंदू पक्ष इसे साबित करने के लिए ठोस सबूत दे.
'मस्जिद की देखरेख के लिए मिलती रही रकम'
राजीव धवन ने दलील दी कि पुराने वक्त से बाबर की ओर से वहां मस्जिद के मुतवल्ली को मस्जिद की देखरेख के लिए 302 रुपये सालाना मिलता था. अंग्रेजों के वक़्त में मुतवल्ली को राजस्व हासिल करने के लिए कई गांव दे दिए गए. 1934 में बैरागियों के विद्रोह के बाद मस्जिद को जब नुकसान पहुंचा तो मुस्लिमों ने ही मुआवजे के लिए आवेदन किया और वो उन्हें मिला भी. ये दर्शाता है कि मुसलमानों का वहां पर कब्जा रहा है.
हालांकि. इस पर जस्टिस चन्दचूड़ ने धवन से पूछा कि क्या बाबर की तरफ से मिलने वाले रकम को लेकर कोई सबूत है. धवन ने ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत होने से इंकार करते हुए कहा कि हिंदू पक्ष के भी पास भी अपनी दलीलों के समर्थन में कोई रिकॉर्ड नहीं है, सिर्फ कहानियां हैं.
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