ओवैसी अब बंगाल में दीदी का खेल बिगाड़ने पहुंचे, TMC को समर्थन का पहला दांव!
294 में से करीब 100-110 सीटें ऐसी हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में टीएमसी के मुसलमान वोटों में सेंधमारी तय मानी जा रही है.
नई दिल्ली:
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के समीकरण बिगाड़ते हुए शानदार ओपनिंग के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) ने ममता बनर्जी के गढ़ पश्चिम बंगाल पर अपनी निगाहें टिका दी हैं. इस कड़ी में पार्टी ने पश्चिम बंगाल के 23 में से 22 जिलों में अपनी पैठ बना ली है और वहां पर तेज़ी से भावी प्रत्याशियों का चयन भी शुरू किया जा रहा है. यही नहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने पहला दांव भी चल दिया है. ओवैसी ने ममता के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की पेशकश करते हुए कहा कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने में तृणमूल कांग्रेस की मदद करेगी.
ममता ने बताया था बाहरी
जाहिर है बिहार के सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम का जोश काफी बढ़ा हुआ है. ऐसे में ओवैसी का टीएमसी को समर्थन वाला बयान ऐसे समय पर आया है कि जब हाल ही में ममता बनर्जी ने एआईएमआईएम पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला बोलते हुए कहा था कि कुछ बाहरी लोगों को परेशान और आतंकित करेंगे. इसी के साथ उन्होंने राज्य की जनता से बाहरियों का विरोध करने का आग्रह किया था. टीएमसी सांसद सौगता रॉय ने तो दावा किया था कि एआईएमआईएम को भगवा पार्टी ने टीएमसी के वोट-प्रतिशत को कम करने के लिए लगाया है.
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टीएमसी समेत कांग्रेस-सीपीआई खेमे में भी चिंता
बता दें कि बंगाल चुनाव में एआईएमआईएम की एंट्री को टीएमसी खतरे के रूप में देख रही है. दरअसल इस बार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और टीएमसी के बीच होना तय है. वहीं बंगाल कांग्रेस और लेफ्ट की भी लड़ाई ममता से ही है. ऐसे में अगर ओवैसी की पार्टी बंगाल में मजबूती से उतरती है तो इसका सीधा नुकसान ममता को ही झेलना पड़ सकता है. सिर्फ टीएमसी ही नहीं बंगाल चुनाव में ओवैसी की पार्टी की एंट्री ने अन्य राजनीतिक दलों की चिंता और बढ़ा दी है. विधानसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ने का फैसला लेने वाली सीपीआई (एम) और कांग्रेस के बीच भी चुनाव की रणनीति निर्धारित करने को लेकर चर्चा हुई.
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100 से ऊपर सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक
एआईएमआईएम की तरफ़ से भले ही यह तय न हो सका हो कि राज्य की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा, लेकिन ये तो तय है कि आने वाले चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों के पतवार के सहारे अपनी नैया पार करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को इससे ख़ासा नुकसान होने वाला है. राज्य के लगभग 30 प्रतिशत मुसलमान वोटरों में लगभग 8-9 प्रतिशत उर्दू भाषी हैं, जिनका सीधे तौर पर ओवैसी की पार्टी के साथ जाना तय माना जा रहा है. बाकी 294 में से करीब 100-110 सीटें ऐसी हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में टीएमसी के मुसलमान वोटों में सेंधमारी तय मानी जा रही है.
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इन सीटों पर ओवैसी बनेंगे खतरा
माल्दा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, दक्षिण 24 परगना ये वे जिले हैं, जहां मुसलमान काफी संख्या में हैं और दक्षिण 24 परगना के अलावा बाकी सभी बिहार की सीमा से लगे हैं, जहां पर हुए चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतकर अपना लोहा मनवाया है. सिर्फ टीएमसी ही नहीं बल्कि राज्य में खुद सिमट चुकी कांग्रेस को भी उनके माइनॉरिटी वोट खिसकने से चिंता है. माना जा रहा है कि इसी कवायद में कल कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी फुरफुरा शरीफ दरगाह पर माथा टेकने पहुंचे. ऐसे में ओवैसी की एंट्री से बीजेपी उत्साहित है. इस पूरे मामले में बीजेपी के शिशिर बोजोरिया ने कहा, 'वाम-कांग्रेस दोनों ही अकेले शून्य हैं और साथ लड़ रहे हैं. अगला चुनाव केवल बीजेपी-टीएमसी के बीच है.'
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