अयोध्या फैसले को ओवैसी ने ‘‘तथ्यों पर आस्था’’ की जीत करार दिया
उच्चतम न्यायालय के फैसले से असंतुष्ट ओवैसी ने संवाददाताओं से बातचीत में पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा के बयान का हवाला देते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय वस्तुत: सर्वोच्च है....और अंतिम हैं, लेकिन उससे भी गलती हो सकती है.’
Hyderabad:
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शनिवार को आये उच्चतम न्यायालय के फैसले को ‘‘तथ्यों पर आस्था की जीत’’ करार देते हुए मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दिये जाने के प्रस्ताव को खारिज करने की सलाह दी है. उच्चतम न्यायालय के फैसले से असंतुष्ट ओवैसी ने संवाददाताओं से बातचीत में पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे एस वर्मा के बयान का हवाला देते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय वस्तुत: सर्वोच्च है....और अंतिम हैं, लेकिन उससे भी गलती हो सकती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह तथ्यों के ऊपर आस्था की जीत वाला फैसला है .’’ उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्र मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए विकल्प के तौर पर पांच एकड़ जमीन मुहैया कराये.
इस पर ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम पक्ष कानूनी अधिकार के लिए लड़ रहा था और किसी से भी दान की जरूरत नहीं है . उन्होंने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है कि मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन दिये जाने के प्रस्ताव को खारिज कर देना चाहिए . उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘मैं अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के रुख का समर्थन करता हूं . हमारी लड़ाई न्याय के लिए और कानूनी अधिकार के लिए थी.
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हमें दान के तौर पर पांच एकड़ भूमि की आवश्यकता नहीं है.’’ मस्जिद निर्माण में किसी प्रकार का समझौता नहीं किये जाने पर जोर देते हुए ओवैसी ने कहा कि वह अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के निर्णय के साथ हैं . संघ परिवार और भाजपा पर देश को ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ की ओर ले जाने का आरोप लगाते हुए ओवैसी ने कहा, ‘‘जिन लोगों ने 1992 में बाबरी मस्जिद गिरायी थी, उन्हीं लोगों को न्यास का गठन करने और राम मंदिर निर्माण शुरू कराने के लिए कहा गया है .’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मोदी 2.0(दूसरा कार्यकाल) भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए है और इस दृष्टिकोण की शुरूआत अयोध्या से हो गयी है . भाजपा और संघ इस फैसले का इस्तेमाल अब राष्ट्रीय नागरिक पंजी, नागरिक संशोधन विधेयक जैसे अपने जहरीले एजेंडे को पूरा करने के लिए करेंगे .’’ उन्होंने सवाल किया कि 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त नहीं किया जाता और 1949 में मूर्तियां नहीं रखी जातीं तो उच्चतम न्यायालय का क्या फैसला होता.
उन्होंने दावा किया कि विवादित ढ़ांचा संघ परिवार एवं कांग्रेस की साजिश की ‘‘भेंट’’ चढ़ गया . हैदराबाद के सांसद ने कहा, ‘‘हम अपनी आगामी पीढ़ियों को बताते रहेंगे कि वहां 500 साल पुराना मस्जिद था और छह दिसंबर 1992 को संघ परिवार और कांग्रेस की साजिश से पूरी दुनिया के सामने उसे तोड़ दिया गया और उनलोगों ने उच्चतम न्यायालय को गुमराह किया .’’ शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए ओवैसी ने कहा, ‘‘अदालत ने सहमति जतायी है कि भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में (विवादित स्थल पर) मंदिर होने का कहीं जिक्र नहीं है.
अदालत ने यह भी कहा कि हम मस्जिद में नमाज अदा करते थे .’’ उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 142 में उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल अदालत द्वारा करने का औचित्य मुझे समझ में नहीं आता है. यह असामान्य है. हमलोग इससे संतुष्ट नहीं हैं .’’ ओवैसी ने कहा कि उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है कि वह इससे संतुष्ट नहीं हैं और यह अदालत की अवमानना नहीं हो सकती है . अयोध्या मुद्दे पर ‘खींचतान’ के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि मस्जिद गिराये जाने के वक्त सत्ता में रही पार्टी ने अब अपना ‘‘असली रंग’’ दिखा दिया है . उन्होंने कहा, ‘‘छह दिसंबर 1992 को जो हुआ वह केवल तोड़फोड़ नहीं था, यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और भाईचारे पर पर हमला था .’’
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