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'दहेज उत्पीड़न' की 'धारा 498A' पर SC फिर से करेगा विचार, तुरंत गिरफ्तारी पर लगाई थी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।

Updated on: 14 Oct 2017, 05:23 AM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज़ उत्पीड़न संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के फैसले पर दोबारा विचार करने का फ़ैसला किया है। इस धारा के तहत पीड़िता के पति समेत अन्य परिजनों की तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है।

साथ ही कोर्ट ने 29 अक्टूबर तक केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस बार में अपना पक्ष रखने को भी कहा है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस फैसले से सहमति नहीं रखती जिसमें आईपीसी की धारा 498ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता से संबंधित) की सख्ती को दरअसल कमजोर किया गया था।

इस पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी हैं, जिसने नोटिस जारी किया और 29 अक्तूबर तक केंद्र का जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।

पीठ ने कहा, 'फैसले में आईपीसी की धारा 498ए के तहत गिरफ्तारी के लिए कुछ दिशानिर्देश तय किये गये थे जो विधायिका के अधिकार क्षेत्र की एक कवायद लगती है। हम इस विचार से सहमत नहीं हैं क्योंकि इससे महिलाओं के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।'

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पीठ एनजीओ 'न्यायाधार' की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की कुछ महिला अधिवक्ताओं ने यह संगठन बनाया था। इस याचिका में धारा 498 ए को धारदार बनाने की मांग की गयी थी और दावा किया गया था कि ऐसा नहीं होने पर पीड़ित महिलाओं का यह सहायक औजार कुंद हो गया है।

इससे पहले झूठे दहेज केस की बढ़ती संख्या को देखते हुए हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि दहेज उत्पीड़न को लेकर परिवार के सभी सदस्यों की तत्काल गिरफ्तारी न हो। आरोपी की गिरफ्तारी भी सिर्फ जरूरी होने पर ही हो।

कोर्ट ने कहा था कि समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। साथ ही इस काम के लिए सिविल सोसाइटी को शामिल करने के लिए कहा गया है।

वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रही है और विचार कर रही है कि इसे लागू कैसे किया जाए।

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