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सेना के जवानों को खुद खरीदनी पड़ेगी वर्दी, सरकार ने नहीं दिया अतिरिक्त बजट !

केंद्र सरकार की तरफ से वित्तीय साल 2018-19 में कम बजट मिलने के बाद भारतीय सेना ने आयुध फैक्ट्रियों से होने वाले आपूर्ति को कम करने का फैसला लिया है।

Updated on: 04 Jun 2018, 07:18 PM

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार की तरफ से वित्तीय साल 2018-19 में कम बजट मिलने के बाद भारतीय सेना ने आयुध फैक्ट्रियों से होने वाली आपूर्ति को कम करने का फैसला लिया है। यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि कटौती से बचे हुए पैसों का इस्तेमाल हथियारों और छोटे युद्धों के लिए जरूरी साजो-सामान को खरीदने में किया जा सके।

सरकार की तरफ से कम बजट मिलने के कारण इस कटौती का असर भारतीय सैनिकों की वर्दी और अन्य जरूरी सामानों की खरीद पर भी पड़ेगा। अब जवानों को अपनी वर्दी समते कई सामान खुद के पैसे से खरीदने होंगे।

जवानों को वर्दी के अलावा कॉम्बैट ड्रेस, बेरेट्स, बेल्ट्स, शूज अपने पैसे से लेने होंगे। इसके साथ ही कम बजट की वजह से सेना की गाड़ियों और अन्य मशीनों के लिए खरीदे जाने वाले कल पुर्जों की आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा।

इकॉनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सेना आयुध फैक्ट्रियों के उत्पादों की आपूर्ति को 94 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी करेगी। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि केंद्र सरकार की तरफ से सेना को हथियारों और पुर्जों की आपात खरीदारी के लिए अलग से फंड उपलब्ध नहीं कराया गया है।

सेना के एक अधिकारी के मुताबिक साल 2018-19 में कम बजट को देखते हुए सेना के पास आयुध फैक्ट्री से आपूर्ति घटाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। आपूर्ति में कमी से बची धनराशि को आपातकालीन खरीदारी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

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भारतीय सेना हथियारों और गोलाबारूद के स्टॉक को बनाए रखने के लिए तीन महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रही है जिसमें करीब 31 हजार 739 करोड़ रुपये खर्च होंगे। एक अधिकारी के मुताबिक 10 (I) ऑर्डर के तहत आपातकालीन खरीदारी के लिए पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और अभी 6 हजार 739 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि बचे हुए इन दोनों ही प्रोजेक्ट्स के लिए भुगतान सेना को अपने बजट से ही करना होगा।

गौरतलब है कि 10(I) नियम के तहत कम से कम 10 दिनों तक युद्ध के लिए जरूरी हथियार और गोला बारूद का भंडारण होना अनिवार्य होता है।

आयुध फैक्ट्री से आपूर्ति कम करने पर सेना को 11 हजार करोड़ की जगह 8 हजार करोड़ ही देने होंगे। बचे हुए पैसे को सेना आपातकाल के लिए शुरू किए गए प्रोजेक्ट पर खर्च करेगी।

सेना अगले तीन सालों में इस बचत में हर साल और 4 हजार करोड़ रुपये जोड़ेगी ताकि 24000 करोड़ रुपये जमा किया जा सके।

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