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बीजेपी को लग सकता है एक और झटका, मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने कहा- उचित समय का इंतजार

कोनराड संगमा ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी नागरिकता संशोधन बिल, 2016 के मुद्दे पर एनडीए सरकार के साथ गठबंधन से अलग होने का निर्णय 'उचित समय' पर करेगी.

Updated on: 06 Feb 2019, 01:08 PM

नई दिल्ली:

मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष कोनराड संगमा ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी नागरिकता संशोधन बिल, 2016 के मुद्दे पर एनडीए सरकार के साथ गठबंधन से अलग होने का निर्णय 'उचित समय' पर करेगी. अभी हाल ही में पूर्वोत्तर में 11 राजनीतिक पार्टियां इस विधेयक के खिलाफ एकजुट होकर मोदी सरकार से इसे रद्द करने की मांग की थी. संगमा ने कहा कि अगर केंद्र सरकार इस विधेयक को राज्यसभा में लेकर जाती है तो हम उचित समय पर फैसला कर लेंगे.

एनपीपी मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन कर रही है, वहीं मेघालय में एनपीपी के नेतृत्व वाली मेघालय लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार का बीजेपी समर्थन कर रही है.

नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ असम, मणिपुर, मेघालय और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले कई महीनों से एक बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. इस विधेयक को लोकसभा में पारित किया जा चुका है लेकिन राजनीतिक दलों के विरोध की वजह से राज्यसभा में इसे पारित नहीं किया जा सका था.

कोनराड संगमा ने कहा, 'हमने राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी लाइन से हटकर कई नेताओं से मुलाकात की और राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में वोट न करने की मांग की थी. हम समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं के संपर्क में भी हैं.'

संगमा ने कहा, 'हम एनपीपी के साथ कई और राजनातिक पार्टियों के साथ पूरी तरह से नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ हैं, क्योंकि इससे इस क्षेत्र की डेमोग्राफी बदल जाएगी.'

इससे पहले 8 जनवरी को लोकसभा में इस विधेयक के पारित होने के बाद संगमा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा था कि बीजेपी से संबंध तोड़ने पर वह अपनी पार्टी के नेताओं से चर्चा करेंगे. उन्होंने कहा था, 'इस विधेयक का पारित होना दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि हमने इसका व्यापक तौर पर विरोध किया है.'

असम में लग चुका है बीजेपी को झटका

केंद्र में बीजेपी सरकार को इस बिल के खिलाफ भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इससे पहले असम में एनडीए की सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने राज्य सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. वहीं असम में बीजेपी के एक नेता मेंहदी आलम बोरा ने पार्टी से इस्तीफा भी दे दिया था. वहीं बिहार में बीजेपी की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) भी राज्यसभा में इस विधेयक का विरोध करने की बात कह चुकी है.

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इसके अलावा कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) समेत कुछ अन्य पार्टियां भी लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

क्या है नागरिकता संशोधन बिल

लोकसभा में पारित हो चुका यह विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है.

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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.