आज़ादी के 70 साल: 1857 की वो क्रांति जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बजा आज़ादी का पहला बिगुल
ब्रिटिश सरकार की गुलामी के खिलाफ जब पहली बार जागा विद्रोह। 1857 की क्रांति में पहली बार हिंदु-मुस्लिम की एकता की शक्ति का एहसास पहली बार ब्रिटिश सरकार को हुआ था। जिसे तोड़ने की अंग्रेजों ने बाद में सफल कोशिश की।
नई दिल्ली:
ब्रिटिश सरकार की गुलामी के करीब १५० साल से ऊपर हो चुके थे। ब्रिटिशर्स की ज़्यादतियां अब सहन के बाहर होती जा रही थी। देश के विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हिंदुस्तान अब तक राजाओं, मुगलों और अब ब्रिटिश सरकार की गुलामी झेलता ही तो आ रहा था..., लेकिन फिर भी ब्रिटिश सरकार के जुल्मों के जैसा कहर अब तक हिंदुस्तानियों के ऊपर न बरपा था।
ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब भारत में कदम रखा तो सबसे पहले राजाओं के साथ मिल कर अपनी हुकुमत हिंदुस्तान पर जमाने की कोशिश की। सबसे पहले उन्हें देश में अपने सामानों और भंडारों की देखरेख के लिए कर्मचारियों की ज़रुरत थी। इंग्लैंड से कर्मचारी बुलाना महंगा और लगभग नामुमकिन सा था इसीलिए ब्रिटिश कंपनी ने देश के ही गरीब तबके के लोगों को रोजगार देने की चाल के तह्त कामगार नियुक्त किए। यहीं से भारत के पहली सैन्य शक्ति की शुरुआत हुई जो शुरू में अंग्रेजों के भंडारों की रक्षा करने के लिए बतौर द्वारपाल तैनात होती थे।
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इसके बाद धीरे-धीरे अपने प्रशासन और अपनी सत्ता की पकड़ मज़बूत करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का कंट्रोल बिट्रेन की सरकार ने अपने हाथों में ले लिया और हिंदुस्तान को अपना उपनिवेश बना कर भारत को लूटना और अंतहीन जुल्मों की शुरुआत हो गई।
शुरु में भारत का कमज़ोर, ग़रीब नागरिक दो वक़्त की रोटी के लिए अंग्रेजों का गुलाम बन गया। करीब २०० सालों की गुलामी के बाद अंदर ही अंदर सुलगता गुस्सा ज्वाला बन रहा था। हद तो तब हो गई जब अंग्रेजों की बंदूक के लिए नए कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी की बात सामने आई।
यह बात हिंदु और मुस्लमानों दोनों के धर्मों के खिलाफ थी। यह सच है कि आज़ादी के पहले आंदोलन की शुरुआत धार्मिक मान्यताओं तक के कुचलने के खिलाफ ही मुखर हुई थी, लेकिन इसके बाद जो हुआ वो अकल्पनीय, अविश्वसनीय ही था।
सैन्य विद्रोह के चलते आज़ादी के पहले आंदोलन का आगाज़ हुआ। इस आंदोलन का महानायक बना मंगल पांडे जिसने लोगों के मन में छिपे अंग्रेजों के प्रति डर के भाव को उखाड़ कर फेंक दिया।
पहली क्रांति का आगाज़
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प. बंगाल के बैरकपुर छावनी में अंग्रेजी हुकुमत से मिले गाय-सूअरों के मांस से बने कारतूसों को भारतीय सैनिकों ने मुंह से छीलने इंकार कर दिया। यह स्वतंत्रता के लिए संघर्षों के विशाल इतिहास का पहला विद्रोह था। 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे जो इस विद्रोह का महानायक बना, अंग्रेजों के खिलाफ बगावती तेवर दिखाते हुए आगे बढ़ा और कारतूसों के ज़बरदस्ती इस्तेमाल के खिलाफ संघर्ष में मंगल पांडे के एक उच्च अंग्रेजी अधिकारी को गोली मार दी। इस हत्या के आरोप में 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे और ईश्वर पांडे को फांसी की सज़ा सुना दी गई।
मेरठ क्रांति
इन सैनिकों की मौत की ख़बर देश भर में फैल गई और इस घटना ने हिंदुस्तान के विभिन्न जगहों पर विद्रोह का रुप ले लिया। इस घटना के बाद 10 मई को मेरठ छावनी के पैदल सैन्य टुकड़ियों के जवानों ने भी इन कारतूसों के इस्तेमाल का विद्रोह कर दिया और अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया।
विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुंच वहां के राजा बहादुर शाह ज़फर द्वितीय को अपना सम्राट घोषित कर दिया और मात्र दो दिन के अंदर 12 मई 1857 को दिल्ली को अंग्रेजों से आज़ाद करा दिया।
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इसके बाद दिल्ली पर दोबारा अधिकार जमाने में अंग्रेजों के पसीने छूट गए और बमुश्किल करीब दो महीने बाद 20 सितंबर 1857 में अंग्रेज वापस दिल्ली को अपने कब्ज़े में ले सके।
1857 क्रांति का विशाल रुप
इन घटनाओं ने देश के अन्य क्षेत्रों में विद्रोह का रुप ले लिया। विद्रोह की यह आग कानपुर, लखनऊ, बरेली, बिहार के जगदीशपुर, झांसी, अलीगढ़, इलाहाबाद और फैजाबाद तक पहुंच गई।
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इन जगहों पर लड़ाई के महानायक रहे- कानपुर में नाना साहब तात्या टोपे, लखनऊ में हजरत महल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, इलाहाबाद के लियाकत अली, जगदीशपुर बिहार के कुंवर सिंह, बरेली के खान बहादुर खां, फैजाबाद के मौलवी अहमद उल्ला और फतेहपुर के अजीमउल्ला।
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छोटे-छोटे संगठनों में, अलग-अलग गुटों द्वारा लड़ी यह गई लड़ाई हालांकि सफल नहीं हो सकी और हर जगह भारतीयों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हारना पड़ा। बावजूद इसके यह लड़ाई आमजन के मन में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ संघर्ष और सोई देशभक्ति की भावना को जगाने में कामयाब रही।
जिसके परिणाम इतिहास में आगे चल कर देखे गए और चंपारण, चिटागोंग और कई और क्रांतियों का जन्म हुआ।
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