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भीमा-कोरेगांव हिंसा: RSS प्रमुख मोहन भागवत बोले- समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद उपजे तनाव के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए।

Updated on: 05 Jan 2018, 11:39 AM

highlights

  • भीमा-कोरेगांव हिंसा का जिक्र किये बिना भागवत ने कहा- समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए
  • कांग्रेस-बीएसपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने भीमा-कोरेगांव हिंसा को लेकर आरएसएस को ठहराया था जिम्मेदार

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद उपजे तनाव के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए। सबको बराबरी की नजर से देखा जाना चाहिए।

भागवत ने हालांकि सीधे तौर पर पुणे के भीमा-कोरेगांव हिंसा का जिक्र नहीं किया। आपको बता दें कि कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सीधे तौर पर हिंसा के लिए आरएसएस और बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि संघ ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है।

पिछले दिनों उज्जैन में संघ की समन्वय बैठक में हिस्सा लेने आए संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा था, 'संघ पर आरोप लगाना कांग्रेस की पुरानी आदत है, इसमें कुछ नया नहीं है। इस समय ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड देश को तोड़ने का काम कर रही है। यह ब्रिगेड भाषा और जाति के नाम पर तोड़ने के प्रयास में लगी है।'

आपको बता दें कि महाराष्ट्र के पुणे के वाधु बुद्रुक में 29 दिसंबर को दलित योद्धाओं के एक स्मारक को अपवित्र किए जाने के बाद भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी को हिंसा भड़क उठी थी।

जिसमें एक दलित युवक की मौत हो गई थी। उसके बाद महाराष्ट्र बंद के दौरान राज्यभर में दलित युवकों ने बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की और इस दौरान हिंसा में एक युवक की मौत हो गई थी।

भागवत ने क्या कुछ कहा?

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित 'भारत माता मंदिर' के लोर्कापण में आरआरएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत सिर्फ भूमि नहीं है, भारत माता के अखंड स्वरूप की भक्ति चाहिए, और सतत् उसी के बारे में सोचना चाहिए, अगर उसके लिए मरना भी पड़े, तो उसे अपना सौभाग्य समझना चाहिए।

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भागवत उज्जैन में 30 दिसंबर से ही मौजूद हैं। उन्होंने गुरुवार को भारत माता मंदिर के लोकार्पण समारोह और एक यज्ञ में हिस्सा लिया। मंदिर के लोकार्पण मौके पर भागवत ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए हिंदू धर्म को सत्य की सतत साधना बताया, तो भारत माता के प्रति भक्ति को जरूरी कहा।

संघ प्रमुख महात्मा गांधी का जिक्र तो करते हैं, लेकिन उनके प्रिय भजन- 'ईश्वर-अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान' की चर्चा कभी नहीं करते, क्योंकि गांधी के इस मूलमंत्र से उनके संगठन का उद्देश्य और हित सधने वाला नहीं है।

भागवत ने कहा, 'भारत सिर्फ धरती नहीं है, वह धरती तो है ही, हमारी माता भी है, उसके अखंड स्वरूप के प्रति भक्ति का भाव चाहिए। भक्ति का अर्थ है, उससे सतत् जुड़े रहना। उसके प्रति सतत् मन में भाव होना चाहिए। उसी के लिए हमारा जीवन है, उसके लिए मरना भी पड़े तो यह हमारा सौभाग्य है।'

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भागवत ने आगे कहा, 'हमारे यहां कहा गया है कि सारी वसुधा कुटुंब है, यह सही बात है। भारत में ऐसा जीवन खड़ा करेंगे, जिसमें सारी पृथ्वी और सृष्टि को अपना परिवार मानकर भारत को होनहार सुपुत्र की तरह परम वैभव, संपन्न, समरस, संपूर्ण, षोषण मुक्त होकर अवतरित होने से संपूर्ण दुनिया का चित्र बदलेगा।'

उन्होंने आगे कहा कि भारत माता के प्रति भक्ति का भाव और भारत को अवतरित करने के लिए अपने को बदलना होगा। अपने को बदलने के लिए संकल्प जरूरी है, संकल्प के मुताबिक, अपने को बनाना साधना है। इसके लिए निष्ठुर और कठोर भाव से अपनी एक एक चीज का परीक्षण करना होगा। इसमें मन सबसे ज्यादा बाधा डालता है, लिहाजा उससे बचना होगा।

भागवत ने हिंदू धर्म का जिक्र करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था, 'हिंदू धर्म सत्य की सतत साधना है। इस सत्य की सतत् साधना में जीना होगा।'

अफसोस की बात यह है कि आजकल राजनीति में सत्य के बजाय असत्य का प्रयोग ज्यादा होने लगा है, प्रधानमंत्री तक पर असत्य बोलने का आरोप लगता है और संसद में उनके मंत्री सफाई देकर इस ओर इशारा करते हैं कि वह तो चुनावी जुमला था। यानी प्रधानमंत्री ने जो कहा, उसे सत्य न माना जाए। ऐसे में भागवत के उपदेश किसके लिए हैं, यह गहरे मंथन का विषय है।

इस मौके पर साध्वी ऋतंभरा, संघ के भैयाजी जोशी सहित अनेक लोग मौजूद रहे। लाल पत्थर से बने मंदिर में भारतमाता की संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है।

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