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भीमा कोरेगांव केस : सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट फाइल करने को लेकर महाराष्ट्र सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में चार्जशीट फाइल करने की सीमा को 90 दिनों तक बढ़ाए जाने की मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.

Updated on: 10 Jan 2019, 04:41 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में चार्जशीट फाइल करने की सीमा को 90 दिनों तक बढ़ाए जाने की मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष अदालत में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा इस मांग को खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने गुरुवार को कहा कि इस मामले में विभिन्न पक्षों के वकीलों की जिरह खत्म होने के बाद आदेश देगा. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी.

पुणे पुलिस ने जून में माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था.

पुणे में साल 2017 के 31 दिसंबर को एलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं के दफ्तरों और घरों पर छापेमारी के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी. पुलिस का दावा था कि इसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई.

महाराष्ट्र सरकार ने 25 अक्टूबर को बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इससे पहले, महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील निशांत काटनेश्वर ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि अगर उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन नहीं दिया गया तो हिंसा के मामले में आरोपी तय वक्त में आरोप पत्र दायर न हो पाने के चलते जमानत के हकदार होंगे.

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गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तारी के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होता है. अभियोजन हालांकि निचली अदालत में विलंब की वजह बताते हुए अतिरिक्त समय मांग सकता है. अगर अदालत संतुष्ट होती है तो वह आरोप पत्र दायर करने के लिये 90 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है.