अयोध्या भूमि विवाद : मध्यस्थता की प्रक्रिया के बाद आज सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई
मध्यस्थों की जो कमेटी में जस्टिस खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं.
highlights
- 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया था मध्यस्थता पैनल
- मध्यस्थता प्रक्रिया की मीडिया कवरेज होने से किया था मना
- जस्टिस खलीफुल्ला कर रहे मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता
नई दिल्ली:
मध्यस्थता पैनल को अयोध्या (Ayodhya) मामला सुपुर्द होने के बाद शुक्रवार को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है. 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अयोध्या मामले के हल के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था और दो माह में अपनी रिपोर्ट देने को कहा था. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच करेगी.
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मध्यस्थों की जो कमेटी में जस्टिस खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं. कमेटी के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर कोई मीडिया रिपोर्टिंग न होने देने का आदेश दिया था.
हालांकि मध्यस्थता कमेटी में श्रीश्री रविशंकर को शामिल किए जाने पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा था कि उम्मीद है कि मध्यस्थ अपनी जिम्मेदारी समझेंगे. मध्यस्थता को लेकर हिंदू पक्षकारों ने कहा था कि इस मामले को एक बार फिर लटकाने की कोशिश की गई है.
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क्या है अयोध्या मामला
मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट का क्या है फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन हिस्सों में 2.77 एकड़ जमीन बांटी थी. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा रामलला विराजमान को मिला, राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला. जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया.
सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं हुआ. पहले रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा और फिर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. बाद में कई और पक्षों ने अर्जी दायर की. अभी कुल 16 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
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