BJP को झटका, असम में एनडीए की सहयोगी असम गण परिषद सरकार से बाहर हुई
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार के लिए यह एक और बड़ा झटका है. एजेपी पिछले काफी समय से असम नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का विरोध कर रही थी.
दिसपुर:
असम में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत एनडीए सरकार में सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने सरकार से बाहर आने का फैसला किया है. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार के लिए यह एक और बड़ा झटका है. एजेपी पिछले काफी समय से असम नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का विरोध कर रही थी. एजीपी असम में भाजपानीत गठबंधन सरकार में बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ सहयोगी थी और पार्टी के तीन विधायक मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं.
एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा, 'हमने इस विधेयक को खत्म करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत हर किसी से मिले लेकिन दुर्भाग्य से यह नहीं हो सका. चुंकि हम सरकार का हिस्सा थे, इसलिए सरकार के साथ बने रहने के लिए अपना बेहतरीन दिया था. लेकिन हमें लगा कि बीजेपी सरकार बिल पारित करने के लिए प्रतिबद्ध है. राजनाथ सिंह से मिलने के बाद यह सुनिश्चित हो गया.'
वहीं एजेपी के दिलीप पटगिरी ने कहा, 'हम लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि अगर नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को लोकसभा में लाया जाएगा तो हम बीजेपी के साथ अपना नाता तोड़ लेंगे. हमारे नेताओं ने गृह मंत्री से मुलाकात की और कहा कि हम गठबंधन तोड़ने जा रहे हैं.'
एजीपी के गठबंधन तोड़ने से हालांकि असम में गठबंधन वाली बीजेपी सरकार को कोई खतरा नहीं है. 126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में बीजेपी के 61 सदस्य हैं और उसे एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है जबकि इसके सहयोगी बीपीएफ के 13 सदस्य हैं, एजीपी के 14 विधायक, कांग्रेस के 24 और एआईयूडीएफ के 13 सदस्य हैं.
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गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी. इसे मंगलवार को लोकसभा में पेश किए जाने की उम्मीद है.
असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी.
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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.
पूर्वोत्तर के 8 प्रभावशाली छात्र निकायों के अलावा असम के 40 से ज्यादा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने के सरकार के कदम के खिलाफ मंगलवार को बंद बुलाया है.
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जेपीसी रिपोर्ट को बहुमत से तैयार किया गया है क्योंकि विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
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