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अखिलेश यादव के ये फैसले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा को पड़ गए भारी

फिलहाल भले ही इस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो, लेकिन इतना तय है कि बंद कमरे में अखिलेश के तीन फैसलों पर मंथन जरूर होगा, जिन्हें उन्होंने अकेले दम किया और मुंह की खाई.

Updated on: 24 May 2019, 07:06 PM

highlights

  • सबसे पहले संगठन पर पकड़ रखने वाले शिवपाल सिंह यादव को बाहर करना,
  • फिर 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से हाथ मिलाना.
  • 2019 में बसपा सुप्रीमो के साथ गठबंधन बनाना.

नई दिल्ली.:

इस लोकसभा चुनाव (2019 Loksabha Election Results 2019 ) में उत्तर प्रदेश के नतीजों ने न सिर्फ प्रमुख विपक्षी दलों समेत राजनीतिक पंडितों को चौकाने का काम किया है, बल्कि क्षेत्रीय दल सपा-बसपा को भी आत्ममंथन करने को मजबूर किया है. इसके साथ ही यूपी के लोकसभा चुनाव ने सपा नेता अखिलेश सिंह यादव (Akhilesh Yadav) के राजनीतिक भविष्य पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. फिलहाल भले ही इस पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो, लेकिन इतना तय है कि बंद कमरे में अखिलेश के तीन फैसलों पर मंथन जरूर होगा, जिन्हें उन्होंने अकेले दम किया और मुंह की खाई.

वंशवाद को मिली करारा शिकस्त
उत्तर प्रदेश की राजनीति में गठबंधन गणित इस कदर नाकाम रही कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की जीत भी फीकी पड़ गई. यही नहीं, वंशवाद को करारी शिकस्त देते हुए मतदाताओं ने यादव परिवार के चश्म-ओ-चिरागों को भी इस लोकसभा चुनाव में नाकार दिया. गौरतलब है कि मैनपुरी से मुलायम सिंह महज 94,389 मतों से ही जीत सके. वह भी तब जब उनकी रिकॉर्ड जीत के दावे किए जा रहे थे. मानो यही काफी नहीं था. मतदाताओं ने अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव समेत उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को भी क्रमशः कन्नौज और बदायूं से हरा दिया. ऐसे में अगर गठबंधन गणित नाकाम रहने की बात होगी, तो अखिलेश के उस फैसले पर भी बात होगी, जिसमें उन्होंने दशकों पुरानी दुश्मनी भुलाते हुए बसपा के साथ गठबंधन किया था.

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शिवपाल की नाराजगी पड़ रही भारी
कहने को कुछ भी कहा जाए, लेकिन इतना सच है कि यूपी की राजनीति में सपा को चमकता सितारा बनाने में मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) समेत शिवपाल का बड़ा हाथ है. इन दोनों ही की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. पारिवारिक लड़ाई में अखिलेश ने शिवपाल को राजनीतिक दरवाजा तो दिखा दिया, लेकिन और बंद दरवाजों को खोलने की चाबी शिवपाल से लेना भूल गए. उसके बाद से राज्य विधानसभा चुनाव समेत इस लोकसभा चुनाव (2019 Loksabha Election Results 2019 ) में अखिलेश ने मुखिया बतौर तीन फैसले किए, जो अपना रंग न दिखा सके.

शिवपाल को बाहर करना नहीं फला सपा को
2017 के विधानसभा चुनाव के समय यादव परिवार की कलह खुलकर सामने आई. उसके पहले अखिलेश ने शिवपाल (Shivpal Singh Yadav) के करीबी मंत्रियों को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस पर कलह बढ़ने पर उन्होंने अपने पिता समान चाचा को भी दरवाजा दिखाने में हिचक नहीं दिखाई. यह उनका पहला फैसला था, जिसकी दबे जुबान चर्चा पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) ने भी की. फिर भी अखिलेश नहीं पसीजे और शिवपाल से सारे राजनीतिक संबंध तोड़ लिए. इसकी वजह से सपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में ही ऐन विधानसभा चुनाव से पहले भारी भ्रम रहा.

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यूपी के लड़कों का साथ
पारिवारिक कलह (Family Feud) के तीखे आरोप-प्रत्यारोप के बीच अखिलेश सिंह ने 2017 विस चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया. नारा दिया गया यूपी के लड़कों का साथ, जो लोगों की जुबान पर चढ़ने पर नाकाम रहा. चुनाव परिणाम आने पर सपा 50 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी थी. राजनीतिक पंडितों का स्पष्ट मानना था कि अखिलेश का यह रवैया पार्टी के पुराने साथियों और कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया, जिसका खामियाजा सपा को बीजेपी के हाथों राज्य की सत्ता गंवा कर चुकाना पड़ा.

2019 में बुआ-बबुआ का साथ
विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त से सबक न सीखते हुए अखिलेश ने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले परंपरागत प्रतिद्वंद्वी बसपा (BSP) से हाथ मिला लिया. गेस्टहाउस कांड (Guest House Episode) की कड़वाहट भुला अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश की साइकिल पर बैठना स्वीकार कर लिया. हालांकि मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक तौर पर नाखुशी जाहिर की थी कि फैसला करने से पहले अखिलेश ने उनसे कोई राय शुमारी नहीं की थी. जैसी आशंका जताई जा रही थी परिणाम (2019 Loksabha Election Results 2019 ) सपा-बसपा गठबंधन के लिए चौंकाने वाले रहे. खासकर सपा के लिए तो सदमे से कम नहीं रहे.

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शिवपाल के न होने का दिखा असर
इस लोकसभा चुनाव में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन कर मैदान में उतरे शिवपाल ने यादव बेल्ट में सपा को अच्छा-ख़ासा नुकसान पहुंचाया. वह खुद तो फिरोजाबाद से हार गए, लेकिन सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव (Ramgopal yadav) के बेटे अक्षय यादव को हराने में अहम भूमिका निभाने से नहीं चूके. जैसा कहा जाता रहा था कि शिवपाल की सांगठनिक पकड़ का कोई जोड़ नहीं है, वह सच साबित हुआ. शिवपाल के बगैर कमजोर हुआ संगठन मोदी की सूनामी के आगे ठीक से खड़ा भी नहीं हो सका.

उठेंगे अखिलेश के फैसले पर सवाल
जाहिर है कि पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव (2019 Loksabha Election Results 2019 ) में मिली करारी हार के बाद अब अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल उठेंगे. भले ही यह मीडिया के सामने न आए. उनके नेतृत्व पर भी विश्लेषण होना तय है. अखिलेश के लिए इस चुनौती का सामना करना आसान नहीं होगा. एक तो उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य (Political Future) समेत सपा के लिए आगे का रास्ता तय करना होगा. दूसरे दूरदृष्टि से काम करते हुए उन्हें आपसी मनमुटाव दूर कर पार्टी को फिर से एकजुट बनाना होगा. लेकिन करने से कहीं ज्यादा आसान कहना होता है, तो तमाम प्रश्नों का जवाब समय की गर्त में ही छिपा है.