NetFlix और Amazon Prime के कंटेट को लेकर SC ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और हॉटस्टार के कंटेंट को रेग्युलेट करने की बात कही है.
नई दिल्ली:
हर घर में इंटरनेट की मौजूदगी ने मनोरंजन की दुनिया में एक क्रांति ला दी है. अब लोगों के पास मनोरंजन का साधन टीवी या सिनेमा ही नहीं बल्कि कई विकल्प है. जिसमें नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म ने दर्शकों के बीच अपनी एक अलग धाक जमा रखी है. इन प्लेटफॉर्म्स पर कुछ अलग शोज और वेब सीरीज देखने को मिलते है. लेकिन इन पर दिखाई जाने वाली फिल्मों और वेब सीरीज में अपशब्द, गाली-गलौच भी काफी दिखाई जाती है. सामाजिक धड़ल्ले पर फिट नहीं बैठने वाली चीज यानी कि अश्लीलता भी इसमें भरपूर मात्रा में मौजूद रहती है.
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सुप्रीम कोर्ट ने नेटफ्लिक्स और एमेजॅान प्राइम वीडियो जैसे आनलाइन मीडिया प्रसारण की सामग्री को नियंत्रित करने के लिये दिशा-निर्देश तय करने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र से जवाब मांगा.
Supreme Court issues notice to Centre on a plea seeking framing of guidelines by the government to regulate the functioning of online media streaming platforms like Netflix and Amazon Prime Video. pic.twitter.com/0lfaCDwEJP
— ANI (@ANI) May 10, 2019
आरोप है कि नेटफ्लिक्स और एमेजॅान प्राइम वीडियो 'बगैर प्रमाणन के अश्लील' सामग्री का प्रदर्शन करते हैं. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के आठ फरवरी के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय और संचार मंत्रालय को नोटिस जारी किए.
हाई कोर्ट ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के जवाब के बाद गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॅार राइट्स फाउण्डेशन की याचिका खारिज कर दी थी. मंत्रालय ने कहा था कि इस तरह के आनलाइन प्लेटफार्म को उससे किसी प्रकार का लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट में वकील एच एस होरा के माध्यम से दायर अपील में कहा गया है कि ये वेब प्लेटफार्म भारत में बगैर किसी लाइसेंस के ही चल रहे हैं और मंत्रालयों ने हाई कोर्ट में चार फरवरी को दाखिल अपने हलफनामे में इस तथ्य को स्वीकार किया है.
याचिका में कहा गया है कि लाइसेंस या इन्हें नियंत्रित करने वाली किसी संस्था के अभाव में सरकार अपनी निष्क्रियता से ब्राडकास्टरों में ही एक विशेष वर्ग पैदा कर रही है और इस तरह से उपभोक्ताओं, नियमित फिल्म निर्माताओं, केबल-टीवी आपरेटरों आदि के साथ भेदभाव कर रही है.
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